नव उत्सव
Added by mohinichordia on October 5, 2011 at 4:13pm — 2 Comments
प्रकृति और स्त्री
स्त्री और प्रकृति
कितना साम्य ?
दोनों में ही जीवन का प्रस्फुटन
दोनों ही जननी
नैसर्गिक वात्सल्यता का स्पंदन,
अन्तःस्तल की गहराइयों तक,
दोनों को रखता एक धरातल पर…
ContinueAdded by mohinichordia on September 29, 2011 at 10:35am — No Comments
तेरी प्यारी सी सूरत
ममता की मूरत
तेरी आँखों से झरती करुणा
स्नेह का झरना
माँ! तेरी आँखों से झरती वो करुणा,
कब, मेरे अन्दर रिस गई,
मैं नहीं जान पाई?…
Added by mohinichordia on September 21, 2011 at 8:30pm — 2 Comments
Added by mohinichordia on September 15, 2011 at 11:25am — 1 Comment
मैं स्त्री हूँ रत्नगर्भा ,धारिणी,
पालक हूँ, पोषक हूँ
अन्नपूर्णा,
रम्भा ,कमला ,मोहिनी स्वरूपा
रिद्धि- सिद्धि भी मैं ही ,
शक्ति स्वरूपा ,दुर्गा काली ,महाकाली ,…
Added by mohinichordia on September 14, 2011 at 1:00pm — 7 Comments
मुर्गे की बांग के साथ ही
प्रवेश किया मैंनें तुम्हारी नगरी में .
रुपहरी भोर ,सुनहरी प्रभात से ,
गले लग रही थी
लताओं से बने तोरणद्वार को पारकर आगे बढ़ी,
कलियाँ चटक रही थीं,
फूलों का लिबास…
ContinueAdded by mohinichordia on September 11, 2011 at 2:00pm — 10 Comments
हमने कुछ किया तो उसे फ़र्ज बताया गया
Added by mohinichordia on September 9, 2011 at 9:00pm — 1 Comment
कहते हैं
Added by mohinichordia on September 7, 2011 at 9:42pm — 1 Comment
Added by mohinichordia on September 7, 2011 at 8:48pm — 2 Comments
तुम करीब आये हो प्रियतम
मन बन गया मधुबन मेरा
तुमने प्रीत का रस उंडेला
Added by mohinichordia on September 7, 2011 at 5:10pm — No Comments
मौन निःशब्द रात्रि
चारों ओर सन्नाटा
नंगे पेड़ों पर गिरती बर्फ
रुई के फाहे सी
रात को और भी गंभीर बनाती
शायद तुम्हारे ही आदेश से |
गरजते समुद्र की उफनती लहरें …
ContinueAdded by mohinichordia on September 6, 2011 at 2:07pm — No Comments
हवा के पंखो पर चढ़कर
आती है तेरी खुशबू
नदियों के जल के साथ बहकर
कभी प्रपात बनकर, निनाद करती
अमृत सी झरती
आती है तेरी मिठास |
सूरज बनकर आता है कभी
सात घोड़ो के रथ पर सवार…
ContinueAdded by mohinichordia on September 6, 2011 at 11:30am — 1 Comment
मैं लिखना चाहती हूँ गीत
तेरी प्रशंसा में, प्रकृति
लेकिन तू तो स्वयं एक गीत है
जीता जागता संगीत है
लयबद्ध , तालबद्ध
छंद है ,गान है
एक अनवरत अनचूक सिलसिला है जीवन का |
तेरे मौसम…
ContinueAdded by mohinichordia on September 3, 2011 at 3:30pm — 5 Comments
Added by mohinichordia on August 30, 2011 at 12:47pm — 5 Comments
तुम्हारे प्यार की फुहार से
इस कदर भीगा तन-मन, कि,
जीवन में फैले शुष्क रेगिस्तान की तपन
झुलसा न सकी…
ContinueAdded by mohinichordia on August 23, 2011 at 9:00pm — 8 Comments
अपने मन को मुर्झाने मत देना
अपने बच्चों की दुनियाँ को कुम्हलाने मत देना
बच्चे यदि पापा से मिलने को मचलें ,तो उन्हें ,
समन्दर की लहरें दिखा लाना ,
बगीचे में जाकर फूलों की खुशबू सुंघा लाना |
क्या हुआ जो एक जिन्दगी ने
'अपने अनगिनत बसंत देश के नाम लिख दिए ?
लोग पतंगों की मानिंद जी कर…
ContinueAdded by mohinichordia on August 7, 2011 at 10:00am — 2 Comments
मौसम आया लुभावना मनभावना
चलो सखी झूला झूलें |
झूला झुलाने सखी पी मेरे आये
तन मन हुआ लुभावना
चलो सखी झूला झूलें |…
Added by mohinichordia on August 6, 2011 at 3:28pm — 3 Comments
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