सुना भगवानों के पास धन बहुत,
और अपने देश में निर्धन-बहुत !
मंदिरों में जमा है अकूत सोना ,
वहीँ द्वार पर भूखी भीड़,दो,ना !
…
ContinueAdded by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 12, 2013 at 9:30pm — 8 Comments
गिरा दे बूँदें
प्रतीक्षारत हम
नयन मूंदे
*
और न कस
हर कोई बेबस
अब बरस
*
चली जो हवा
उड़ गए बादल
हम नि:शब्द
*
मन बहका
आवारा बादल सा
उड़ गया लो
*
बरसे धार
बढे -उमड़े प्यार
हर्ष अपार
*
सब है वृथा
काश, घन सुनते
हमारी व्यथा
*
सलोने घन
या तो डुबो देते हैं
या जाते डूब
*
आये बौछार
बजें मन के…
ContinueAdded by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 11, 2013 at 2:27pm — 7 Comments
ज़िंदगी इतने दिन तूफ़ान रही,
कभी बारिश,कभी मुस्कान रही
मिर्च थी खूब,मसाले भी बहुत
सौदा-सुलुफ की ये दुकान रही
लोग चेहरे लगाये ,आये ,गए
कौन रिश्ते थे बस पहचान रही
आसमां पर निरी सलाखें थीं
अपनी आँगन में ही उड़ान रही
खूब ढोया है उम्र को हमने
इसलिए दोस्त,कुछ थकान…
Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 10, 2013 at 10:55pm — 12 Comments
गाँव बदले हुए हैं ,शहर हो गए ,
स्वार्थ की आत्म-केंद्रित नहर हो गए,
सूर्य में थीं यहीं नेह की रश्मियाँ
रिश्ते सब गर्म अब दोपहर हो गए !
*
आओ मिलकर मोड दें पन्ने किताब के ,
और ढूँढें फूल कुछ सूखे गुलाब के ,
सकपकाई उम्र ,वो बारिश सवालों की
खूबसूरत झूठ ,वो किस्से जवाब के !
*
दर्द को खूब लिखा ,
गहरे जा डूब लिखा ,
पाँव जब जलने लगे
पथ को हरी दूब लिखा !
*
रूप की एक नदी बहती है,,
खूबसूरत ए हंसी लगती है,
फूल,घाटी…
Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 9, 2013 at 10:00pm — 8 Comments
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