ऐसे वीर शेर हैं अपने छाती ताने ठाढ़े
घर में घुस कर घेर लिए हैं दुश्मन को ललकारें
गीदड़ – गीदड़ भभकी देता बोल नहीं कुछ पाए
बिल में घुसकर दौड़ डराता अन्दर ही छुप जाये
साँसे अटकी हैं उन सब की भ्रष्टाचारी जो है
क्या मुंह ले वे सामने आयें फाईल यहाँ भरी है
ऐसे वीर शेर हैं अपने छाती ताने ठाढ़े
नमन तुम्हे हे वीर हमारे कल तुम दुनिया जीते !!
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कहते हैं तुम थाने जाओ कोर्ट कचहरी बाहर देश
शर्म नहीं…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 26, 2012 at 1:52pm — 6 Comments
कोख को बचाने को भाग रही औरतें
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ये कैसा अत्याचार है
'कोख' पे प्रहार है
कोख को बचाने को
भाग रही औरतें
दानवों का राज या
पूतना का ठाठ …
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 14, 2012 at 10:30pm — 12 Comments
मृगनयनी कैसी तू नारी ??
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मृगनयनी कजरारे नैना मोरनी जैसी चाल
पुन्केशर से जुल्फ तुम्हारे तू पराग की खान
तितली सी इतराती फिरती सब को नाच नचाती
तू पतंग सी उड़े आसमाँ लहर लहर बल खाती
कभी पास में कभी दूर हो मन को है तरसाती
इसे जिताती उसे हराती जिन्हें 'काट' ना आती
कभी उलझ जाती हो ‘दो’ से महिमा तेरी न्यारी
पल छिन हंसती लहराती औंधे-मुंह गिर जाती
कटी पड़ी भी जंग कराती - दांव लगाती
'समरथ' के हाथों में पड़ के लुटती हंसती…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 5, 2012 at 6:30am — 25 Comments
बिटिया रानी खिली कली सी
सागर चीरे- परी सी आई
बांह पसारे स्वागत करती
जन मन जीते प्यार सिखाई !
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कदम बढ़ाओ तुम भी आओ
धरती अम्बर प्रकृति कहे
गोद उठा लो भेद भाव खो
सोन परी हिय मोद भरे !
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हहर-हहर…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 20, 2012 at 12:56am — 16 Comments
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 16, 2012 at 1:01pm — 39 Comments
नेता की शादी में
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नेता की शादी में
गरीब भी आये
पानी भरे -अंखियों से
लड्डू- मन में खाए !
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डांट खाए दुत्कार
कुत्ते के पीछे वे
गालियों का प्रसाद
झोली भर लाये !
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चकाचौंध फुलझड़ी
नींद में सताए
बिटिया जवान हुयी
कब तक छिपाए !
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बेटे ने देख लिया
नेता का डेरा
मोह हम से कम हुआ
छोरा-छिछोरा !…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 19, 2012 at 10:00pm — 19 Comments
असीमित विस्तार
ममता अपार
माँ का प्यार !
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सुख की मेह
करुना सागर
माँ का नेह !
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त्याग वलिदान
सुख की खान
"माँ" एक नाम !
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ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 13, 2012 at 1:00pm — 13 Comments
मै ६ दिसंबर हूँ
मै ११ सितम्बर हूँ
२६ नवम्बर हूँ
आंसुओं का
महासागर हूँ मै !
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गोल-गोल
बूँद भरी
पूर्ण हो
निकल पड़ी
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ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 6, 2012 at 10:09pm — 5 Comments
गोरी के आंचल में
झिलमिल सितारे हैं
चंदा को सूरज भी
छिप के निहारे है
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रेत के समंदर में
बूँद एक उतरी तो
ललचाई नजरों ने
सोख लिया प्यारी को
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उदय अंत में त्रिशंकु -
बन ! मै लटकता हूँ
राहु -केतु से कटे भी
दंभ लिए फिरता हूँ
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चार दिन की जिन्दगी है
चार पल की यारी है
चाँद भी खिसक…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 14, 2012 at 9:24pm — 16 Comments
जंग से जमीन में
घाव बहुत होते हैं
जख्म गर भरे भी तो
रोम-रोम रोते हैं !
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इन्सां ने इन्सां को
इन्सां सा प्यार दिया
स्वर्ग धरा लाये आज …
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 12, 2012 at 10:30pm — 12 Comments
दूर क्षितिज छाये है लाली
पक्षी-पर -ना रुकता देखो कैसे उड़ता जाता !!
नीचे -सागर विस्तृत कितना पानी -पानी
माझी-नौका -तूफाँ -लड़ते फिर पतवार चलाता !!
मंजिल कितनी दूर -न जाने -पीता पानी
राही पल -पल जोश बढ़ाये डग तो भरता जाता !!
पर्वत नाले पार किये बढ़ जाती धरती
कहीं छुएगी आसमान को साहस बढ़ता जाता !!
बीज दबा है बोझ से फिर भी
टेढ़ी - मेढ़ी राह धरे दम भरते निकला आता !!
अपनी मंजिल सब पाए जब आस बंधी
हारे ना - दृढ निश्चय जब हो !
एक आँख…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 9, 2012 at 5:49pm — 4 Comments
अहसास
श्वेत वसन में लिपटा जीवन
जन गण का सम्मान लिए !
चूसें रक्त सदा वे विचरें
कानून न उन पर हाथ धरे !!
भले दीखते ऊपर ही चंगे
जब मन को साफ रखे ना !…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 6, 2012 at 10:00pm — 12 Comments
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