२१२२ १२१२ २२
इससे बढ़कर कोई अनर्गल क्या ?
पूछिये निर्झरों से - "अविरल क्या ?"
घुल रहा है वजूद तिल-तिल कर
हो रहा है हमें ये अव्वल क्या ?
गीत ग़ज़लें रुबाइयाँ.. मेरी ?
बस तुम्हें पढ़ रहा हूँ, कौशल क्या ?
अब उठो.. चढ़ गया है दिन कितना..
टाट लगने लगा है मखमल क्या !
मित्रता है अगर सरोवर से
छोड़िये सोचते हैं बादल क्या !
अब नये-से-नये ठिकाने हैं..
राजधानी चलें !.. ये चंबल क्या ?
चुप न…
Added by Saurabh Pandey on October 25, 2014 at 12:00pm — 40 Comments
१२१२ ११२२ १२१२ २२
सहज लगाव हृदय में हिलोड़ जाते हैं ।
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं ॥
किसी उदास की पीड़ा सजल हृदय में ले
निशा निराश हुई, चुप वृथा पड़ी-सी थी
तथा निग़ाह कहीं दूर व्योम में उलझी…
Added by Saurabh Pandey on October 21, 2014 at 5:30am — 20 Comments
आँक दूँ ललाट पर
मैं चुम्बनों के दीप, आ..
रात भर विभोर तू
दियालिया उजास दे..
संयमी बना रहा
ये मौन भी विचित्र है
शब्द-शब्द पी
करे निनाद-ब्रह्म का वरण..…
Added by Saurabh Pandey on October 5, 2014 at 11:30am — 34 Comments
संताप और क्षोभ
इनके मध्य नैराश्य की नदी बहती है, जिसका पानी लाल है.
जगत-व्यवहार उग आये द्वीपों-सा अपनी उपस्थिति जताते हैं
यही तो इस नदी की हताशा है
कि, वह बहुत गहरी नहीं बही अभी
या, नहीं हो पायी…
Added by Saurabh Pandey on September 15, 2014 at 3:00am — 41 Comments
अस्मिता इस देश की हिन्दी हुई
किन्तु कैसे हो सकी
यह जान लो !!
कब कहाँ किसने कहा सम्मान में..
प्रेरणा लो,
उक्तियों की तान लो !
कंठ सक्षम था
सदा व्यवहार में…
Added by Saurabh Pandey on September 1, 2014 at 5:30am — 39 Comments
लिख रही हैं यातनायें
अनुभवों से
लघुकथायें -
मौसम-घड़ी-दिक्काल की !
जय-जय कन्हैया लाल की !!
शासकों के चोंचले हैं
लोग गोवर्द्धन उठायें
हम लुकाठी…
Added by Saurabh Pandey on August 17, 2014 at 2:00am — 26 Comments
देश है नवीन किन्तु, राष्ट्र है सनातनी ये, मान्यता और संस्कार की लिये निशानियाँ
था समस्त लोक-विश्व क्लिष्ट तम के पाश में, भारती सुना रही थी नीति की कहानियाँ
संतति प्रबुद्ध मुग्ध थी सुविज्ञ सौम्य उच्च, बाँचती थी धर्म-शास्त्र को सदा जुबानियाँ
स्वीकार्यता चरित्र में, प्रभाव में उदारता, शांत मंद गीत में सदैव थीं…
Added by Saurabh Pandey on August 11, 2014 at 2:30am — 30 Comments
हामिद अब बड़ा हो गया है. अच्छा कमाता है. ग़ल्फ़ में है न आजकल !
इस बार की ईद में हामिद वहीं से ’फूड-प्रोसेसर’ ले आया है, कुछ और बुढिया गयी अपनी दादी अमीना के लिए !
ममता में अघायी पगली की दोनों आँखें रह-रह कर गंगा-जमुना हुई जा रही हैं. बार-बार आशीषों से नवाज़ रही है बुढिया. अमीना को आजभी वो ईद खूब याद है जब हामिद उसके लिए ईदग़ाह के मेले से चिमटा मोल ले आया था. हामिद का वो चिमटा आज भी उसकी ’जान’ है.
".. कितना खयाल रखता है हामिद ! .. अब उसे रसोई के ’बखत’ जियादा जूझना नहीं…
Added by Saurabh Pandey on July 29, 2014 at 3:00pm — 61 Comments
1.
खर्चा-आमद एक सा, क्या नफरत क्या प्यार
छाना-फूँका पी लिया, फिर चिंता क्या यार
फिर चिंता क्या यार, गजब हूँ धुन का पक्का
रह-रह चढ़े तरंग, जगत भी हक्का-बक्का
रहता मस्त-मलंग, फाड़ता रह-रह पर्चा
और खुले ये हाथ, यहीं हर…
Added by Saurabh Pandey on July 4, 2014 at 10:00pm — 24 Comments
आज सुबह-सुबह दरवाजे पर दस्तक हुई.
रोज की तरह..
वर्तमान ही होगा..
विगत के द्वार से आया
दुरदुराया गया हुआ.. / फिर से.
एक विगत…
Added by Saurabh Pandey on June 29, 2014 at 6:00pm — 32 Comments
दिनांक 22 जून की शाम इलाहाबाद के अदबघर, करेली में अंजुमन के सौजन्य से आयोजित तरही-मुशायरे में मेरी प्रस्तुति तथा कुछ अन्य शेर --
2122 2122 212
यदि सुशासित देश-सूबा चाहिये..
शाह क्या जल्लाद होना चाहिये !?…
Added by Saurabh Pandey on June 23, 2014 at 1:00am — 64 Comments
1.
शेल्फ़ किताबों के लिए हो सकती है
किताबें शेल्फ़ के लिए नहीं होतीं
शेल्फ़ में किताबों को रख छोड़ना
किताबों की सत्ता का अपमान है.
2.
कुछ पृष्ठों के कोने वो मोड़ देता है…
Added by Saurabh Pandey on June 6, 2014 at 5:30pm — 43 Comments
१.
चिलचिलाती धूप सिखाती है
प्रेम करना..
तबतक वन
महुआ-पलाशों में बस
उलझा रहता है.
२.
तुम्हारी उंगलियों ने दबा कर मेरी हथेलियों को…
Added by Saurabh Pandey on April 28, 2014 at 8:00pm — 27 Comments
सिर चढ़ आया
फिर से दिन का
भीतर धमक मलालों में..
ऐसे हैं
संदर्भ परस्पर..
थोथी चीख.. उबालों में !
जहाँ साँझ के
गहराते ही…
Added by Saurabh Pandey on April 25, 2014 at 5:00pm — 28 Comments
चौपई छंद - प्रति चरण 15 मात्रायें चरणान्त गुरु-लघु
====================================
किसी राष्ट्र के पहलू चार । जनता-सीमा-तंत्र-विचार ॥
जन की आशा जन-आवाज । जन का जन पर जनता-राज ॥
प्रजातंत्र वो मानक मंत्र । शोषित आम जनों का तंत्र ॥
किन्तु सजग है…
Added by Saurabh Pandey on April 22, 2014 at 2:00pm — 17 Comments
(कामरूप छंद 9-7-10 की यति)
======================
सेवक कभी थे अब ठगें ये नाम ’नेता’ तंज !
भोली प्रजा की भावना से खेलते शतरंज !!
हर चाल इनकी स्वार्थ प्रेरित ताकि पायें राज ।
पासा चलें हर सोच कर ये हाथ आये ताज ॥…
Added by Saurabh Pandey on April 22, 2014 at 1:30pm — 14 Comments
हर चूहा चालाक है, ढूँढे सही जहाज
डगमग दिखा जहाज ग़र, कूद भगे बिन लाज
सजी हाट में घूमती, बटमारों की जात
माल-लूट के पूर्व ही, करती लत्तमलात
नाटक के इस…
Added by Saurabh Pandey on March 24, 2014 at 12:30am — 19 Comments
राजनीति में पार्टियाँ निभा रहीं पहचान
डंडे पत्थर गालियों का आदान-प्रदान
जो बोले तू झूठ वो मैं बोलूँ वो तथ्य
लफ़्फ़ाज़ी के रंग में लिपा-पुता हर कथ्य
झंडे टोपी भीड़ से रोचक दिखे प्रसंग
देख जमूरा नाचता पब्लिक होती दंग …
Added by Saurabh Pandey on March 6, 2014 at 6:30pm — 20 Comments
पूछता है द्वार
चौखट से --
कहो, कितना खुलूँ मैं !
सोच ही में लक्ष्य से मिलकर
बजाता जोर ताली
या, अघाया चित्त
लोंदे सा,
पड़ा करता जुगाली.…
Added by Saurabh Pandey on March 3, 2014 at 2:30pm — 41 Comments
उमा-उमा मन की पुलकन है
शिव का दृढ़ विश्वास
मिले अब !
सूक्ष्म तरंगों में
सिहरन की
धार निराली प्राणपगी है
शैलसुता तब
क्लिष्ट मौन थी …
Added by Saurabh Pandey on February 7, 2014 at 6:30pm — 44 Comments
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