For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Nilesh Shevgaonkar's Blog (183)

नूर की हिंदी ग़ज़ल-बन गया वह राष्ट्र का सरदार क्या?

२१२२, २१२२,२१२ 
.
बन गया वह राष्ट्र का सरदार क्या?
हो गए हैं स्वप्न सब साकार क्या?
.

सत्य से बढ़कर तो ईश्वर भी नहीं,
राष्ट्र क्या फिर मित्र क्या परिवार क्या?
.

राष्ट्र की सेवा सभी का धर्म है,
कर रहे हो तुम कोई उपकार क्या?
.

देख कर इक कोमलांगी के अधर,   
कल्पना लेने लगी आकार क्या? 
.

आचरण में धर्मग्रंथो को उतार,
बाद में दे ज्ञान उनका सार क्या.  

.
निलेश "नूर"
.
मौलिक/ अप्रकाशित 

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 11, 2017 at 9:24am — 25 Comments

नूर की हिंदी ग़ज़ल ..दर्पणों से कब हमारा मन लगा

२१२२/२१२२/२१२ 

.

दर्पणों से कब हमारा मन लगा

पत्थरों के मध्य अपनापन लगा. 

.

लिप्त है माया में अपना ही शरीर

ये समझ पाने में इक जीवन लगा.

.

तप्त मरुथल सी ह्रदय की धौंकनी

हाथ जब उस ने रखा चन्दन लगा.

.

मूर्खता पर करते हैं परिहास अब

जो था पीतल वो हमें कुन्दन लगा.

.

प्रेम में भी कसमसाहट सी रही

प्रेम मेरा आपको बन्धन लगा.

.

जल रहे हैं हम यहाँ प्रेमाग्नि में

और उस पर ये मुआ सावन लगा.…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 9, 2017 at 10:00am — 37 Comments

ग़ज़ल नूर की -बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना

२१२२/२१२२/२१२२/२१२ 



बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना

बस्तियाँ जलती रहेंगी, तुम तमाशा देखना.

.

छाँव तो फिर छाँव है लेकिन किसी बरगद तले

धूप खो कर जल न जाये कोई पौधा, देखना.

.

देखने से गो नहीं मक़्सूद जिस बेचैनी का

हर कोई कहता है फिर भी उस को “रस्ता देखना”  

.

क़ामयाबी दे अगर तो ये भी मुझ को दे शुऊ’र 

किस तरह दिल-आइने में अक्स ख़ुद का देखना.

.

चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं   

जब से आधे चाँद में आया है कासा…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 9:00am — 54 Comments

ग़ज़ल नूर की-रोज़ जो मुझ को नया चाहती है

२१२२/११२२/२२ (११२)

रोज़ जो मुझ को नया चाहती है
ज़िन्दगी मुझ से तू क्या चाहती है?
.
मौत की शक्ल पहन कर शायद
ज़िन्दगी बदली क़बा चाहती है.
.
मशवरे यूँ मुझे देती है अना
जैसे सचमुच में भला चाहती है.
.
इक  सितमगर जो  मसीहा भी न हो,
नई दुनिया वो  ख़ुदा चाहती है.
.
“नूर’ बुझ जाये चिराग़ों की तरह
क्या ही नादान हवा चाहती है. 
.
निलेश"नूर"

मौलिक/ अप्रकाशित 

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 2, 2017 at 2:00pm — 34 Comments

ग़ज़ल नूर की - ज़रा सी देर में सूरज निकलने वाला

१२१२/ ११२२/ १२१२/ २२



अँधेरों!! “नूर” ने जुगनू अभी उछाला है,

ज़रा सी देर में सूरज निकलने वाला है.

.

बिदा करेंगे तो हम ज़ार ज़ार रोयेंगे,

तुम्हारे दर्द को अपना बना के पाला है. 

.

नज़र भी हाय उन्हीं से लड़ी है महफ़िल में,

कि जिन के नाम का मेरे लबों पे ताला है.  

.

शजर घनेरे हैं तख़लीक़ में मुसव्विर की

सफ़र की धूप ने उस पर असर ये डाला है.  

.

निकल के कूचा-ए-जनां से आबरू न गयी,

लुटे हैं सुन के…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 29, 2017 at 7:27pm — 20 Comments

ग़ज़ल-नूर की- ऐसा लगता है फ़क़त ख़ार सँभाले हुए हैं,

2122/1122/1122/22

.

ऐसा लगता है फ़क़त ख़ार सँभाले हुए हैं,

शाख़ें, पतझड़ में भी क़िरदार सँभाले हुए हैं.

.

जिस्म क्या है मेरे बचपन की कोई गुल्लक है  

ज़ह’न-ओ-दिल आज भी कलदार सँभाले हुए हैं.   

.

आँधियाँ ऐसी कि सर ही न रहे शानों पर,

और हम ऐसे में दस्तार सँभाले हुए हैं.

.

वक़्त वो और था; तब जान से प्यारे थे ख़ुतूत

अब ये लगता है कि बेकार सँभाले हुए हैं.

.

टूटी कश्ती का सफ़र बीच में कुछ छोड़ गए,  

और कुछ आज भी पतवार सँभाले हुए…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 24, 2017 at 8:59pm — 20 Comments

ग़ज़ल नूर की -कहीं सजदा किया, पूजा कहीं पत्थर तेरा,

२१२२/११२२/११२२/२२

.

कहीं सजदा किया, पूजा कहीं पत्थर तेरा,

अपने अंदर ही मगर मुझ को मिला घर तेरा. 

.

मेरी आँखों में उतरना तो उतरना बचकर,

ख़ुद में तूफ़ान छुपाए है..... समंदर तेरा.  

.

यूँ ही पीछे नहीं चलता है ज़माना तेरे,

नापता रहता है क़द ये भी बराबर तेरा.

.

दिल को आदत सी पड़ी है कि ख़ुदा ख़ैर करे,

ढूँढ लाता है कहीं से भी ये नश्तर तेरा.



तर्क  अब इस से ज़ियादा मैं करूँ क्या ख़ुद को

ये अना तेरे हवाले ये मेरा सर ....तेरा.…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2017 at 10:53am — 14 Comments

नख़्ल-ए-दिल रेगज़ार करना था-ग़ज़ल नूर की

नख़्ल-ए-दिल रेगज़ार करना था,

इक तसव्वुर ग़ुबार करना था.

.

तेरी मर्ज़ी!!! ये ज़ह’न दिल से कहे,

बस तुझे होशियार करना था.

.

वो क़यामत के बाद आये थे

हम को और इंतिज़ार करना था.

.

हाल-ए-दिल ख़ाक छुपता चेहरे से

जिस को सब इश्तेहार करना था.

.   

लुत्फ़ दिल को मिला न ख़ंजर को

कम से कम आर-पार करना था.

.

चंद यादें जो दफ़’न करनी थीं

अपने दिल को मज़ार करना था.

.

बारहा दुश्मनी!! अरे नादाँ .....

इश्क़ भी बार बार करना…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2017 at 8:40pm — 13 Comments

जब नज़र से उतर गया कोई

2122/1212/22

.

जब नज़र से उतर गया कोई,

यूँ लगा मुझ में मर गया कोई.

.

इल्म वालों की छाँव जब भी मिली

मेरे अंदर सँवर गया कोई.

.

उन के हाथों रची हिना का रँग

मेरी आँखों में भर गया कोई.

.

बेवफ़ाई!! ये लफ्ज़ ठीक नहीं,

यूँ कहें!!! बस,…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 16, 2017 at 8:00am — 16 Comments

गजल के पाँव दाबे हैं तभी कुछ सीख पाये हैं ...तंज-ओ-मज़ाह

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२ 

.

हमारा साग बांसी है तुम्हारी भाजी ताजी है

जो इस में ऐब ढूँढेगा तो वो आतंकवादी है.

.

गजल के पाँव दाबे हैं तभी कुछ सीख पाये हैं 

इसे पाखण्ड कहना आप की जर्रानवाजी है.

.

तलफ्फुज को लगाओ आग, है ये कौन सी चिड़िया

हमारा राग अपना है हमारी अपनी ढपली है.

.

बहर पर क्यूँ कहर ढायें लिखे वो ही जो मन भाये

मगर इतना समझ लें, ये अदब से बेईमानी है.

.

शहर भर का जहर पीने के आदी हो चुके हैं…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 13, 2017 at 11:18am — 12 Comments

ये तमाशा तो मेरे ज़ह’न के अन्दर निकला, ग़ज़ल नूर की

गा ल गा गा (ललगागा) / लल गागा/ ललगागा / गा गा (ललगा) 

.

ये तमाशा तो मेरे ज़ह’न के अन्दर निकला,

मैं बशर मैं ही ख़ुदा मैं ही पयम्बर निकला.

.

ये ज़मीं चाँद सितारे ये ख़ला.... सारा जहान, 

वुसअत-ए-फ़िक्र से मेरी ज़रा कमतर निकला.


.

संग-दिल होता जो मैं आप भी कुछ पा जाते,

क्या मेरी राख़ से पिघला हुआ पत्थर निकला?
 …

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 11, 2017 at 7:00pm — 26 Comments

ग़ज़ल-नूर की - इस तरह हर इक गुनह का सामना करना पड़ा,

२१२२/२१२२/२१२२/२१२ 

.

इस तरह हर इक गुनह का सामना करना पड़ा,

हश्र में ख़ुद के किये पे तब्सिरा करना पड़ा.

.

सुल्ह फिर अपने ही दिल से यूँ हमें करनी पड़ी,

फ़ैसले को टालने का फ़ैसला करना पड़ा. 

.

क़ामयाबी की ख़ुशी में चीखता है इक मलाल,

सोच कर निकले थे क्या कुछ और क्या करना पड़ा.

.

एक मुद्दत से कई चेहरे थे आँखों में असीर,

आँसुओं की शक्ल में सब को रिहा करना पड़ा.

.

झूठ के नक्क़ारखाने में बला का शोर है,…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 5, 2017 at 9:16am — 18 Comments

ग़ज़ल-नूर की - जैसी उस ने सौंपी थी वैसी मिले,

२१२२/२१२२/२१२ 

.

जैसी उस ने सौंपी थी वैसी मिले,

ये न हो चादर उसे मैली मिले.

.

इस सफ़र में रात जब गहरी मिले

शम’अ कोई या ख़ुदा जलती मिले.

.

याद रखने के लिये दुनिया रही

भूल जाने के लिये हम ही मिले. 

.

ये बग़ावत है तो हम बाग़ी सही,

सच कहेंगे, फिर सज़ा इस की मिले.


.

हाँ! शुरू में रोज़ मिलते थे.. मगर

बाद में कुछ यूँ हुआ कम ही मिले.

.

सर…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 31, 2017 at 8:35am — 16 Comments

ग़ज़ल नूर की-- तेरी दुनिया में हम बेकार आये.

.

समझ पाये जो ख़ुद के पार आये,

तेरी दुनिया में हम बेकार आये.

.

बहन माँ बाप बीवी दोस्त बच्चे,

कहानी थी.... कई क़िरदार आये. 

.

क़दम रखते ही दीवारें उठी थीं,  

सफ़र में मरहले दुश्वार आये.

.

शिकस्ता दिल बिख़र जायेगा मेरा,

वहाँ से अब अगर इनकार आये.

.

उडाये थे कई क़ासिद कबूतर,   

मगर वापस फ़क़त दो चार आये.

.

समुन्दर की अनाएँ गर्क़ कर दूँ,

मेरे हाथों में गर पतवार आये.

.

अगरचे…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2017 at 6:00pm — 28 Comments

"नूर" ....कब चुना हमने मुसलमान या हिन्दू होना

२१२२/११२२/११२२/२२

कब चुना हमने मुसलमान या हिन्दू होना

न तो माँ बाप चुनें और न घर ही को चुना

हम ने ये भी न चुना था कि बशर हो जायें.



हम को इंसान बना कर था यहाँ भेजा गया,

कैसे मज़हब के कई ख़ानों में तक्सीम हुए?

क्यूँ सिखाये गए हम को ये सबक नफरत के?

.

हम ने दहशत से परे जा के बुना इक सपना

अपनी दुनिया न सही, काश हो आँगन अपना

ऐसा आँगन कि जहाँ साथ पलें राम-ओ-रहीम.

.

जुर्म ये था कि जलाया था अँधेरों में चराग़

हम ने नफ़रत की हवाओं के…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 14, 2017 at 9:30pm — 8 Comments

ग़ज़ल-नूर की -क्या है ज़िन्दगी,

२१२२,२१२२, २१२२, २१२ 

.

सोचने लगता हूँ अक्सर मैं कि क्या है ज़िन्दगी,

आग पानी आसमां धरती हवा है ज़िन्दगी.

.

मौत जो मंज़िल है उसका रास्ता है ज़िन्दगी,

या कि अपने ही गुनाहों की सज़ा है ज़िन्दगी.

.

बिन तुम्हारे इक मुसलसल हादसा है ज़िन्दगी,

सच कहूँ! ज़िन्दा हूँ लेकिन बेमज़ा है ज़िन्दगी.

.

ज़िन्दगी की हर अलामत यूँ तो आती है नज़र,

शोर है शहरों में फिर भी लापता है ज़िन्दगी.

.…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 4, 2017 at 2:37pm — 10 Comments

ग़ज़ल नूर की : इश्क़ हुआ है क्या?

22. 22. 22. 22. 22. 22. 2



तन्हा शाम बिताते हो
तुम, इश्क़ हुआ है क्या?

मंज़र में खो जाते हो तुम, इश्क़ हुआ है क्या?

.

बारिश से पहले बादल पर अपनी आँखों से,

कोई अक्स बनाते हो तुम, इश्क़ हुआ है क्या?



ज़िक्र किसी का आये तो फूलों से खिलते हो,

शर्माते सकुचाते हो तुम, इश्क़ हुआ है क्या?

.

होटों पर मुस्कान बिना कारण आ जाती है,

बेकारण झुँझलाते हो तुम, इश्क़ हुआ है क्या?-…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 1, 2017 at 7:00pm — 12 Comments

ग़ज़ल नूर की : ये नहीं है कि हमें उन से मुहब्बत न रही,

२१२२, ११२२, ११२२, २२



ये नहीं है कि हमें उन से मुहब्बत न रही,

बस!! मुहब्बत में मुहब्बत भरी लज्ज़त न रही. 

.

रब्त टूटा था ज़माने से मेरा पहले-पहल,

रफ़्ता-रफ़्ता ये हुआ ख़ुद से भी निस्बत न रही.

.

ज़ह’न में कोई ख़याल और न दिल में हलचल,

ज़िन्दगी!! मुझ में तेरी कोई अलामत न रही.

.

उन से नज़रें जो मिलीं मुझ पे क़यामत टूटी,

वो क़यामत!! कि क़यामत भी क़यामत न रही.

.

याद गर कीजै मुझे, यूँ न…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on February 21, 2017 at 12:00pm — 17 Comments

ग़ज़ल नूर की ..

ग़ज़ल 

मात्रिक (22)



संघर्षों के जीवन रण में अपना हिस्सा हार गया,

मान के मिथ्या इस आँगन को, कोई इस के पार गया. 

.

विद्वत्ता से श्रेष्ठ कहाई सत्कर्मों की पुण्याई,

अहँकार के फेर में रावण! तेरा जीवन सार गया. 

.

प्रश्न हमारे सच्चे थे पर उत्तर झूठे थे उनके,

जब से सच का बोध हुआ है, धर्मों का आधार गया. 

.

ईश्वर पूजा, अल्लाह पूजा, ख़ुद के तन को कष्ट दिए,

उस जीवन की आस में मानव, ये जीवन बेकार गया. 

.

ईश्वर तेरे साथ चलेगा बस…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on October 20, 2016 at 8:15pm — 13 Comments

ग़ज़ल-नूर की ...हय

२१२२/१२१२/२२ (११२)

.

उन की गर्दन लगे सुराही, हय!!

उन को लगता हूँ मैं शराबी, हय!!

.

मैंने भेजा सलाम महफ़िल में,

उस ने भेजी नज़र जवाबी, हय!!

.

मुझ को कोई चुड़ैल फाँस न ले,

गाहे-गाहे मेरी तलाशी, हय!!

.

जिस नज़र से ये दिल तमाम हुआ,

हाय चाकू, छुरी, कटारी, हय!! 

.

सारी अच्छाइयाँ उदू में थीं,

मेरी हर बात में ख़राबी, हय!! 

.

भींच लेती हैं तेरी यादें मुझे,

“नूर” हर शाम ये कहानी, हय!!    

.

मौलिक /…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on July 1, 2016 at 7:30pm — 10 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service