दोहा त्रयी :मैं क्या जानूं
मैं क्या जानूं आज का, कल क्या होगा रूप ।
सुख की होगी छाँव या , दुख की होगी धूप ।।
मैं क्या जानूं भोर का, होगा क्या अंजाम।
दिन बीतेगा किस तरह , कैसी होगी शाम ।।
मैं क्या जानूं जिन्दगी, क्या खेलेगी खेल ।
उड़ जाए कब तोड़ कर , पंछी तन की जेल ।।
सुशील सरना / 17-11-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 17, 2022 at 12:00pm — 6 Comments
बालदिवस पर चन्द दोहे :. . . .
बाल दिवस का बचपना, क्या जाने अब अर्थ ।
अर्थ चक्र में पीसते, बचपन चन्द समर्थ ।।
बाल दिवस से बेखबर, भोलेपन से दूर ।
बना रहे कुछ भेड़िये , बच्चों को मजदूर ।।
भाषण में शिक्षा मिले, भाषण ही दे प्यार ।
बालदिवस पर बाँटते, नेता प्यार -दुलार ।।
फुटपाथों पर देखिए, बच्चों का संसार ।
दो रोटी की चाह में , झोली रहे पसार ।।
गाली की लोरी मिले, लातों के उपहार ।
इनका बचपन खा गया, अर्थ लिप्त संसार ।।
बाल दिवस पर दीजिए,…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 14, 2022 at 3:30pm — 2 Comments
भिखारी छंद -
24 मात्रिक - 12 पर यति - पदांत-गा ला
साजन के दीवाने , दो नैना मस्ताने ।
कभी लगें ये अपने , कभी लगें बेगाने ।।
पागल दिल को भाते, उसके सपन सुहाने ।
खामोशी की बातें, खामोशी ही जाने ।।
=×=×=×=
रैन काल के सपने , भोर लगें अनजाने ।
अवगुंठन में बनते , प्यार भरे अफसाने ।।
बिन बोले ही होतीं , जाने क्या-क्या बातें ।
मन से कभी न जातीं , आलिंगन की रातें ।।
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 8, 2022 at 4:54pm — 4 Comments
दुर्घटना ....(लघुकथा)
"निकल लो उस्ताद । बहुत भयंकर दुर्घटना हुई है । लगता है वो शायद मर गया है ।" कल्लू हेल्पर ने ड्राइवर रघु से कहा ।
रघु ने व्यू मिरर से पीछे देखा तो दुर्घटना स्थल पर भीड़ दिखी । रघु ने ट्रक भगाने में भलाई समझी । रघु वहाँ से चला तो घर जा कर रुका।
"कल्लू ये घर पर भीड़ कैसी है ।" रघु ट्रक रोकते हुए बोला ।
भीड़ को चीरते हुए रघु जैसे ही अन्दर पहुंचा, तो देख कर सन्न रह गया । उसका 10 साल का इकलौता बेटा रक्तरंजित बीच आँगन में तड़प रहा…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 6, 2022 at 12:52pm — 2 Comments
दोहा त्रयी : सागर
सागर से बादल चला, लेकर खारा नीर ।
धरती को लौटा रहा, मृदु बूँदों का क्षीर ।।
जाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर ।
पीते -पीते हो गया , खारा उसका नीर ।।
लहरों से गीले सदा, रहते सागर तीर ।
बन कर कितने ही मिटे, यहाँ स्वप्न प्राचीर ।।
सुशील सरना / 31-10-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 31, 2022 at 12:51pm — 10 Comments
गीतिका
आधार छंद - चौपई (जयकरी छंद )-15 मात्रिक -पदात-गाल
साँसें जीवन का शृंगार ।
बिना साँस सजती दीवार ।
कब जीवित का होता मान ,
चित्रों को पूजे संसार ।
मिलता अपनों से आघात ,
इनका प्यार लगे बेकार ।
पल-पल रिश्ते बदलें रूप ,
मतभेदों से पड़ी दरार ।
बड़ा अजब जग का दस्तूर ,
भरे प्यार में ये अंगार ।
सुशील सरना / 17-10-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 17, 2022 at 5:40pm — 10 Comments
दशहरा पर्व पर कुछ दोहे. . . .
सदियों से लंकेश का, जलता दम्भ प्रतीक ।
मिटी नहीं पर आज तक, बैर भाव की लीक।।
सीता ढूँढे राम को, गली-गली में आज ।
लूट रहे हर मोड़ पर, देखो रावण लाज ।।
मन के रावण के लिए, बन जाओ तुम राम।
अंतस को पावन करो,हृदय बने श्री धाम।।
कहते हैं रावण बड़ा, जग में था विद्वान ।
पर नारी के मोह ने, छीनी उसकी जान ।।
माँ सीता का कर हरण, इठलाया लंकेश ।
मिटा दिया फिर राम ने, लंकापति…
Added by Sushil Sarna on October 5, 2022 at 1:00pm — 6 Comments
असली -नकली . . . .
सोच समझ कर पुष्प पर, अलि होना आसक्त ।
नकली इस मकरंद पर , प्रेम न करना व्यक्त ।।
गुलदानों में आजकल, सजते नकली फूल ।
सच्चाई के तोड़ते, नकली फूल उसूल ।।
गुलशन सूने से लगें, भौंरे लगें उदास ।
नकली फूलों से भला, कब बुझती है प्यास ।।
मरीचिका सी जिन्दगी, यहाँ प्यास ही प्यास ।
पतझड़ के परिधान में, मुस्काता मधुमास ।।
अब कागज के फूल से, गुलशन है गुलज़ार ।
नकली फूलों का नहीं, मुरझाता संसार…
Added by Sushil Sarna on October 2, 2022 at 10:01pm — 6 Comments
श्राद्ध पक्ष के कुछ दोहे. . . . .
घर- घर पूजे श्राद्ध में, पितरों को संतान ।
श्रद्धा पूरित भाव से, उनको दे सम्मान ।।
श्राद्ध सनातन रीत है, श्राद्ध पितर सम्मान ।
सच्चे मन से मानिए, श्राद्ध शास्त्र विधान ।।
श्राद्ध पक्ष में पूजती, पुरखों को सन्तान ।
श्रद्धा से तर्पण करें, उनका कर के ध्यान ।।
श्राद्ध पक्ष विचरण करें , पितर धरा के पास।
आकर दें आशीष वो , ऐसा है विश्वास ।।
जीते जी माँ बाप का, सदा करो सम्मान ।
जा…
Added by Sushil Sarna on September 19, 2022 at 5:20pm — 6 Comments
पाँच दोहे. . .
कल में कल की कल्पना, कल में कल की प्यास ।
कल में साँसें ले रहा, जीवन का विश्वास ।।
तिमिर लोक में प्रेम का, अद्भुत है इतिहास ।
सुर्ख साँझ के साथ ही, बढ़े मिलन की प्यास ।।
सब जानें ये जिन्दगी , केवल है आभास ।
फिर भी क्यों आभास का, जीव करे विश्वास ।।
हर लकीर पर है लिखा, जीवन का संघर्ष ।
तकलीफों के जलजले, डूबा जिसमें हर्ष ।।
हर तम का संसार में, होता एक प्रभात ।
सुख की छोटी सी किरण…
Added by Sushil Sarna on September 17, 2022 at 8:30pm — 4 Comments
हिन्दी दिवस पर कुछ दोहे :
हिन्दी अपने देश में, माँगे अपना मान ।
अंग्रेजी के ग्रहण से, धूमिल इसकी शान ।।
अंग्रेजी को देश में, इतना क्यों सम्मान ।
हिन्दी का अपमान तो, भारत का अपमान ।।
हिन्दी हिन्दुस्तान के, माथे का सरताज ।
हिन्दी तो है हिन्द के , जन-जन की आवाज ।।
हिन्दी से अच्छा नहीं, करना यूँ परहेज ।
अंग्रेजी के तेज को, हिन्द करे निस्तेज ।।
कण -कण में अब हिन्द के , हिन्दी गूँजे आज ।
नहीं चलेगा…
Added by Sushil Sarna on September 14, 2022 at 8:37pm — 6 Comments
दोहा मुक्तक-मुफलिसी ..........
चौखट पर ईमान की, झूठे पहरेदार ।
भूख, प्यास, आहें भरे, रुदन करे शृंगार ।
नीर बहाए मुफलिसी, जग न समझा पीर -
फुटपाथों पर भूख का, सजा हुआ बाजार ।
* * * * *
मौसम की हैं झिड़कियाँ, तानों का उपहार ।
मुफलिस की हर भोर का , क्षुधा करे शृंगार ।
क्या आँसू क्या कहकहे, सब के सब है मौन -
दो रोटी के वास्ते, तन बिकता सौ बार ।
सुशील सरना / 4-9-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on September 4, 2022 at 2:51pm — 4 Comments
वरिष्ठ नागरिक दिवस पर कुछ दोहे :
अपने बेगाने हुए, छोड़ा सबने साथ ।
हाथ काँपते ढूँढते, अब अपनों का हाथ ।1।
बरगद बूढ़ा हो गया, पीत हुए सब पात ।
मौसम बीते दे गए, अश्कों की सौगात ।2।
वृद्धों को बस चाहिए, थोड़ा सा सम्मान ।
अवसादों को छीन कर , उनको दो मुस्कान ।3।
बहते आँसू कह रहे, व्यथित हृदय की बात ।
जरा काल में ही दिए, अपनों ने आघात ।4।
कौन मानता है भला, अब वृद्धों की बात ।
बात- बात पर अब मिले,…
Added by Sushil Sarna on August 21, 2022 at 1:00pm — 4 Comments
मन्द -मन्द मुस्का रहे, पलने में गोपाल ।
देख - देख गोपाल को, जीवन हुआ निहाल।।
ढोल नगाड़े घंटियाँ, जयकारे का शोर ।
दिग दिगंत से देवता, देखें नन्द किशोर ।।
माँ से माखन माँगता, जग का पालनहार ।
माँ अपने गोपाल को, माखन दे सौ बार ।।
माखन खाते लाल को , मैया रही निहार ।
उसकी तुतली बात पर, माँ को आता प्यार ।।
पाप हरन के वास्ते, हुआ कृष्ण अवतार ।
कान्हा अपने भक्त का, सदा करें उद्धार ।।
ठुमक - ठुमक…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 19, 2022 at 3:00pm — 4 Comments
आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर कुछ दोहे .....
सीमा पर छलनी हुए, भारत के जो वीर ।
याद करें उनको जरा, भर आँखों में नीर ।।
रक्त लिप्त कुर्बानियां ,मिटने के उन्माद ।
फाँसी चढ़ कर दे गए, हमें वतन आजाद ।।
आजादी की जंग के, वीर रहेंगे याद ।
उन वीरों के स्वप्न का, ध्वज करता अनुवाद ।।
केसरिया तो रंग है, साहस की पहचान ।
श्वेत शान्ति का दूत है, हरा धरा की शान ।।
रंग तिरंगे के बने, भारत की पहचान ।
घर-घर…
Added by Sushil Sarna on August 15, 2022 at 2:47pm — 2 Comments
राखी पर कुछ दोहे. . . .
भाई बहिन के प्यार का, राखी है त्योहार ।
पावन धागों में छुपी , बहना की मनुहार ।।
बहना भेजे डाक से, भाई को सन्देश ।
राखी भैया बाँधना, मैं बैठी परदेश ।।
रंग बिरंगी राखियाँ, रिश्तों का संसार ।
धागों में है छुपी हुई, बहना की मनुहार ।।
राखी ले कर भ्रात के, बहना आई द्वार ।
तिलक लगाती माथ पर, देती दुआ हजार ।।
बहना चाहे भ्रात का, सुखी रहे परिवार ।
रिश्तों में चलती रहे, मीठी मधुर…
Added by Sushil Sarna on August 11, 2022 at 1:02pm — 2 Comments
गीत रीते वादों का ......
मैं गीत हूँ रीते वादों का , मैं गीत हूँ बीती रातों का।
जो मीत से कुछ भी कह न सका,वो गीत हूँ मैं बरसातों का ।
हर मौसम ने उस मौसम की
बरसातों को दहकाया है ,
बीत गया वो मौसम दिल का
लौट के फिर कब आया है ,
जश्न मनाता हूँ मैं अपनी , भीगी हुई मुलाकातों का ।
जो मीत से कुछ भी कह न सका,वो गीत हूँ मैं बरसातों का ।
कैसे अपने स्वप्न मिटा दूँ…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 27, 2022 at 3:01pm — No Comments
दोहा त्रयी : फूल
कागज के ये फूल कब, देते कोई गंध ।
भौंरों को भाता नहीं, आभासी मकरंद ।।
इस नकली मकरंद पर, मौन मधुप गुंजार ।
अब कागज के फूल से, गुलशन है गुलज़ार ।।
अब कागज के पुष्प दें, प्रीतम को उपहार ।
मुरझाता नकली नहीं, फूलों का संसार ।।
सुशील सरना / 15-7-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 15, 2022 at 3:17pm — No Comments
मुक्तक : गाँव .....
मिट्टी का घर ढूँढते, भटक रहे हैं पाँव।
कहाँ गई पगडंडियाँ, कहाँ गए वो गाँव ।
पीपल बूढ़ा हो गया, मौन हुए सब कूप -
काली सड़कों पर हुई, दुर्लभ ठंडी छाँव ।
*******
कच्चे घर पक्के हुए, बदल गया परिवेश ।
छीन लिया हल बैल का, यंत्रों ने अब देश ।
बदले- बदले अब लगें , भोर साँझ के रंग -
वर्तमान में गाँव का, बदल गया है पेश ।
(पेश =रूप, आकार )
********
गाँवों…
Added by Sushil Sarna on July 11, 2022 at 1:00pm — No Comments
बुढ़ापा ....
तन पर दस्तक दे रही, जरा काल की शाम ।
काया को भाने लगा, अच्छा अब आराम ।1।
बीते कल की आज हम, कहलाते हैं शान ।
शान बुढ़ापे की हुई, अपनों से अंजान ।2।
झुर्री-झुर्री पर लिखा, जीवन का संघर्ष ।
जरा अवस्था देखती ,मुड़ कर बीते वर्ष ।3।
देख बुढ़ापा हो गया, चिन्तित क्यों इंसान ।
शायद उसको हो गया, अन्तिम पल का भान ।4।
काया में कम्पन बढी , दृष्टि हुई मजबूर ।
अपनों से अपने हुए, जरा काल में दूर…
Added by Sushil Sarna on July 6, 2022 at 12:30pm — 4 Comments
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