Added by Manan Kumar singh on September 1, 2017 at 10:00am — 10 Comments
Added by Manan Kumar singh on August 27, 2017 at 11:27am — 16 Comments
Added by Manan Kumar singh on August 10, 2017 at 9:30am — 20 Comments
Added by Manan Kumar singh on July 6, 2017 at 7:30pm — 17 Comments
Added by Manan Kumar singh on July 1, 2017 at 9:29pm — 12 Comments
Added by Manan Kumar singh on June 23, 2017 at 8:53am — 3 Comments
Added by Manan Kumar singh on June 2, 2017 at 8:24pm — 13 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 28, 2017 at 10:30pm — 9 Comments
2122 : 2122 212
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वह जमीं पर आग यूँ बोता रहा
और चुप हो आसमां सोया रहा।1
आँधियों में उड़ गये बिरवे बहुत
साँस लेने का कहीं टोटा रहा।2
डुबकियाँ कोई लगाता है बहक
और कोई खा यहाँ गोता रहा।3
पर्वतों से झाँकती हैं रश्मियाँ
भोर का फिर भी यहाँ रोना रहा।4
हो…
Added by Manan Kumar singh on May 22, 2017 at 8:27am — 7 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 14, 2017 at 8:00am — 14 Comments
2122 2122 2122 212
बेखुदी में यार मेरे याद आना छोड़ दो
मुस्कुराने की अदा है कातिलाना, छोड़ दो।1
सूखती-सी जो नदी उम्मीद की, बहती रही
कान में पुरवाइयों-सी गुनगुनाना छोड़ दो।2
ख्वाहिशों के दौर में थमती नहीं है जिंदगी
उँगलियों पर अब जरा मुझको नचाना छोड़ दो।3
चाँद ढलता जा रहा फिर है पड़ी सूनी गली
बेबसी में अब कभी मुझको बुलाना छोड़ दो।4
राह अपनी मैं चलूँ तुमको मुबारक रास्ते
अनकही बातें बता रिश्ते…
Added by Manan Kumar singh on May 10, 2017 at 9:11pm — 10 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 8, 2017 at 7:00am — 12 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 5, 2017 at 9:41am — 9 Comments
Added by Manan Kumar singh on April 26, 2017 at 7:31pm — 3 Comments
2122 2122 2122 212
पा लिया, खोया किसीने,चल रहा यह सिलसिला
ख्वाहिशें अनजान थीं जो कुछ मिला अच्छा मिला।1
गर्दिशों के दौर में अरमान मचले कम नहीं
पर सरे पतझड़ यहाँ उम्मीद का अँखुआ खिला।2
घाव देकर हँस रहे हैं आजकल बेख़ौफ़ वे
कौन अपनों से करेगा बोलिये फिर से गिला?3
डर गये जीते शज़र सब आँधियों के जोर से
सूखता-सा जो खड़ा है कब सका कोई…
Added by Manan Kumar singh on April 9, 2017 at 10:30am — 18 Comments
Added by Manan Kumar singh on March 29, 2017 at 7:31am — 13 Comments
Added by Manan Kumar singh on March 28, 2017 at 1:30pm — 5 Comments
#गजल#-103
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कुर्सियाँ किसकी हुई हैं बोलिये भी
गाँठ में क्या-क्या छिपा है खोलिये भी।1
आपको भी क्या न करना पड़ गया है
हो न सकते साथ जिनके,हो लिये भी।2
जानते सब कुर्सियों की कीमतें हैं
हम भुला खुद को जरा-सा तोलिये भी।3
घोलते आये फ़िजां में क्या नहीं कुछ
अब जहर फिरसे यहाँ मत घोलिये भी।4
कुर्सियों के ताव में कुछ कर गये थे
चोट खायी खूब हमने गो लिये। भी।5
@मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Manan Kumar singh on March 27, 2017 at 9:30am — 9 Comments
212 212 212 212
लोग सब पूछते, हम कहाँ जा रहे
आ गये दिन भले या अभी आ रहे।2
कौन क्या कह गया याद अब है कहाँ
रेवड़ी देखकर खूब ललचा रहे।2
कुल जमा देखिये बादलों की कला
हर बरस बूँद में खार बरसा रहे।3
रात के हाथ से बुझ गयीं बत्तियाँ
बोलते भी जरा कौन दिन ला रहे।4
जोर से पीटते ढ़ोर सब ढ़ोल हैं
कोकिला चुप हुई काग बस गा रहे।5
मौलिक व अप्रकाशित@
Added by Manan Kumar singh on March 7, 2017 at 8:00pm — 20 Comments
#गजल#
***
22 22 22 22
जैसे-तैसे आगे आता
मैं भी जनसेवक हो जाता!1
सेवा के आयाम बहुत हैं
अपनी सब करतूत गिनाता!2
नकली आँसू के छींटे दे
मन के माफिक मेवे खाता!3
पाँच बरस मुझको मिल जाते
चार पहर रोते फिर दाता!4
भाषा को हथियार बनाकर
जोर लगा मैं शोर मचाता!5
जात-धरम के पेड़ फफनते
थोड़े बिरवे और बढ़ाता!6
मेरी खातिर भींग कहें…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on February 26, 2017 at 11:08am — 4 Comments
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