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गिरिराज भंडारी's Blog – December 2014 Archive (7)

एक तरही ग़ज़ल - देखता हूँ इस चमक में बेबसी सोई हुई ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122    2122    212 

" मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई -

( इस मिसरे पर गज़ल कहने की मैने भी कोशिश की है , आपके सामने रख रहा हूँ )

**************************************************************************** 

ग़म सभी बेदार लगते , हर खुशी सोई हुई

जग गई लगती है फिर से, बेकली सोई हुई  -

 

बेदार -जागे हुये, बेकली - अकुलाहट  

 

फैलती ही जा रही बारूद की बदबू जहाँ

बे ख़ुदी में लग रही बस्ती वही सोई…

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Added by गिरिराज भंडारी on December 30, 2014 at 11:00am — 23 Comments

ग़ज़ल - जी रहा इंसान था वो मर गया क्या ? ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122     2122 

खूब बोला ख़ुद के हक़ में, कुछ हुआ क्या ?

तर्क भीतर तक तुझे ख़ुद धो सका क्या ?

 

खूब तड़पा , खूब आँसू भी बहाया

देखना तो कोई पत्थर नम हुआ क्या ?

 

मिन्नतें क्या काम आई पर्वतों से

तेरी ख़ातिर वो कभी थोड़ा झुका क्या ?

 

जब बहलना है हमें फिर सोचना क्यों

जो बजायें, साज क्या है, झुनझुना क्या ?

 

लोग सुन्दर लग रहे थे मुस्कुराते

वो भी हँस पाते अगर, इसमें बुरा क्या…

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Added by गिरिराज भंडारी on December 29, 2014 at 9:30am — 40 Comments

ग़ज़ल - कल पराया जो लगा था, आज प्यारा हो गया ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122     2122     212

अश्क़ ऊपर जब उठा, उठ कर  सितारा हो  गया

जा मिला जब अश्क़ सागर से, वो खारा हो गया

 

चन्द  मुस्कानें  तुम्हारी शक़्ल में  जो पा लिये

आज दिन भर के  लिये अपना ग़ुजारा  हो गया

 

चाहतें जब  इक हुईं , तो  दुश्मनी  भूले  सभी   

कल पराया जो लगा था, आज  प्यारा  हो गया

 

ढूँढ  कर  तनहाइयाँ  हम  यादों  में मश्गूल थे

रू ब रू आये  तो  यादों  का  खसारा हो  गया

 …

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Added by गिरिराज भंडारी on December 24, 2014 at 6:00pm — 40 Comments

गीत - आने वाला नया, नया कब रह पाता है ( गिरिराज भंडारी )

नया कहूँ तो, वैसे तो हर पल होता है

नया जागता तब है जब पिछला सोता है 

पर सोचो तो नया , नये में क्या होता है

हर पल पिछला, आगे को सब दे जाता है

 

आने वाला नया, नया कब रह पाता है

 

वही गरीबी , भूख , वही है फ़टी रिदायें 

वही चीखती मायें , जलती रोज़ चितायें

वही पुराने घाव , वही है टीस पुरानी

वही ज़हर, बारुद, धमाका रह जाता है

 

आने वाला नया, नया कब रह पाता है

 

वही अक़्ल के अंधे , जिनके मन जंगी…

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Added by गिरिराज भंडारी on December 21, 2014 at 11:48am — 25 Comments

गीत / नवगीत - बर्तन भांडे चुप चुप सारे ( गिरिराज भंडारी )

बर्तन भांडे चुप चुप सारे

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बर्तन भांडे चुप चुप सारे

चूल्हा देख उदासा है

टीन कनस्तर खाली खाली

माचिस देख निराशा है

 

लकड़ी की आँखें गीली बस 

स्वप्न धूप के देख रही 

सीली सीली दीवारों को

मन मन में बस कोस रही

 

पढा लिखा संकोची बेलन 

की पर सुधरी भाषा है

बर्तन भांडे चुप चुप सारे

चूल्हा देख उदासा है

 

स्वाभिमान बीमार पडा है

चौखट चौखट घूम रहा

गिर…

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Added by गिरिराज भंडारी on December 17, 2014 at 11:00am — 26 Comments

अतुकांत - स्वीकार हैं मुझे तुम्हारे पत्थर ( गिरिराज भंडारी )

अतुकांत - स्वीकार हैं मुझे तुम्हारे पत्थर

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स्वीकार हैं मुझे आज भी

कल भी थे स्वीकार , भविष्य मे भी रहेंगे

तुम्हारे फेके गये पत्थर

तब भी फल ही दिये मैनें

आज भी दे रहा हूँ , और मेरा कल जब तक है देता रहूँगा

मैं जानता हूँ  और मानता हूँ , इसी में तो मेरी पूर्णता है

यही मेरी नियति है , और उद्देश्य भी

चाहे मेरी जड़ों को तुमने पानी दिया हो या नहीं

मैं अटल हूँ , अपने उद्देश्य में

पर आज…

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Added by गिरिराज भंडारी on December 8, 2014 at 4:30pm — 20 Comments

ग़ज़ल - चलो कर लें निकलने का बहाना अब ( गिरिराज भंडारी )

१२२२        १२२२       १२२२

अकेले पन को कर ले तू , ठिकाना  अब

क़सम ली है, तो उस चौखट न जाना अब

समय बदला तो वो बदले , नज़र बदली

चलो कर लें  निकलने का  बहाना अब

 

वही आंसू , वही आहें  , वही   ग़म है

कहीं  पे  ख़त्म हो जाये  फ़साना  अब

 

झिझक ये ही हरिक दिल में, यही डर है

कहेगा क्या जो  जानेगा  ज़माना  अब

 

सुनो तितली , सुने  पंछी  बहारें   भी

मेरे उजड़े  हुये घर में , न  आना…

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Added by गिरिराज भंडारी on December 4, 2014 at 11:00am — 32 Comments

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