तीन दोहें....
बाहर रावण फूँक कर ,मानव तू इतराय |
नष्ट करेगा कब जिसे ,उर में रहा छुपाय ||
सच्चाई की जीत हो ,झूठ का हो विनाश |
कष्ट ये तिमिर का मिटे ,मन में होय प्रकाश ||
सत स्वरूपी राम है ,दर्प रूप लंकेश |
दशहरा पर्व से मिले ,यही बड़ा सन्देश ||
दो रोलें...
दैत्यों का हो अंत ,मिटे जग का अँधेरा
संकट जो हट जाय,वहीँ बस होय सवेरा
अपना ही मिटवाय ,छुपाकर अन्दर धोखा
लंका को ज्यों ढाय,बता कर भेद अनोखा
इंसा को दे मार ,अहम् का सर्प विषैला
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Comment
सुन्दर और सार्थक दोहे-रोले के लिए बधाई स्वीकारे आदरणीया राजेश जी
आदरणीया राजेश कुमारी जी, बहुत बढ़िया दोहे हैं
इक रावण को फूंक के ,मानव तू इतराय |
नष्ट करेगा कब जिसे ,उर में रहा छुपाय ||...यह दोहा तो लाजवाब है, हार्दिक बधाई आपको
रोले और दोहे तो अच्छे हैं ही-
विषय और प्रस्तुतीकरण भी बढ़िया ||
बधाई दीदी ||
इक रावण को फूंक के ,मानव तू इतराय |
नष्ट करेगा कब जिसे ,उर में रहा छुपाय ||...sach kahaa
विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें
आदरणीय राजेश कुमारी जी बहुत ही
सुन्दर एवं सार्थक दोहे कहे गए हैं
सभी उत्तम कोटी के हैं| आपकी भावना
एवं आपके जज्बात को नमन करता हूँ
रोला भी बहुत अच्छे बन पड़े हैं|
इक रावण को फूंक के ,मानव तू इतराय |
नष्ट करेगा कब जिसे ,उर में रहा छुपाय || वाह है
बहुत बहुत बधाई
आदरणीया राजेश कुमारी जी, दशहरा के उपलक्ष्य में अच्छी अभिव्यक्ति, शिल्प के सम्बन्ध में आदरणीय सौरभ भईया इशारा कर ही दिए है, रोला तो एक ही है, या तो गलती से एक (रोला) अंकित है अथवा दो (रोलें) :-)
इस अभिव्यक्ति पर बहुत बधाई और दशहरा पर्व की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार हो |
बहुत सुन्दर व् सार्थक अभिव्यक्ति .आपको विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें
आदरणीया राजेश कुमारी जी, विजयादशमी के शुभ अवसर पर इससे सम्यक शुभकामना नहीं हो सकती थी.
इक रावण को फूंक के ,मानव तू इतराय
नष्ट करेगा कब जिसे ,उर में रहा छुपाय ...
दूसरे पद को देखते हुए पहले पद में राण का जलना भौतिक क्रिया भर लगती है. बहुत सही तथ्य उभर रहा है. बहुत-बहुत बधाई. वैसे इसे ऐसे भी हम करें तो दोनों पद एक दूसरे को संतुष्ट करते दीखेंगे- बाहर रावण फूँक कर, मानव तू इतराय.. यदि उचित लगे तो अवश्य साझा करियेगा.
सच्चाई की जीत हो ,झूठ का हो विनाश
कष्ट ये तिमिर का मिटे ,मन में होय प्रकाश.. . दूसरा पद, आदरणीया, कुछ और समय मांग रहा है.
सत स्वरूपी राम है ,दर्प रूप लंकेश
दशहरा पर्व से मिले ,यही बड़ा सन्देश...... बहुत सही. अत्यंत पगा हुआ दोहा बन पड़ा है. इस दोहे के लिये हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
आपका दूसरा रोला छंद कहा है, राजेश कुमारी जी ? लगता है वह पोस्ट होने से रह गया है. कृपया उसे भी पोस्ट कर दें.
सादर
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