For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कंधों पर तू ढो रहा ,क्यों कागज का भार|
आरक्षण तुझको मिले,पढ़ना है बेकार||-------(व्यंग्य)


मन कागज पर जब चले ,होकर कलम अधीर|
शब्द-शब्द मिलते गले ,बह जाती है पीर||


भावों-शब्दों में चले,जब आपस में द्वंद|
मन के कागज पर तभी,रचता कोई छंद||


टूटे रिश्ते जोड़ दे ,सुन, नन्हीं सी जान|
कोप सुनामी मोड़ दे ,बालक की मुस्कान||


फूलों से साबित करें ,कैसी है ये रीत|
कागज का दिल दे रहे ,कैसे समझें प्रीत||


रिश्ते कागज पर बने ,कागज पर ही भस्म|
बिन फेरों के शादियाँ ,कैसी है ये रस्म||


तन की पाती सब पढ़ें ,मन की पढ़ें न कोय|
जो मन की पाती पढ़ें ,तो दुःख काहे होय||


अरमानो को बाँधती,रस्मों की जंजीर|
भीगे कागज पर लिखी ,नारी की तक़दीर||


कागज ही से धन मिले ,कागज ही से ज्ञान|
वृक्षों से कागज बने , कीमत तू पहचान||


पहले पत्तों पर लिखे ,फिर कागज पर ग्रन्थ|
अब कंप्यूटर पर दिखे ,लेखन के नव पंथ ||
*******************************************

Views: 818

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 17, 2013 at 3:38pm

आदरणीय संजीव जी, बहुत बहुत आभार,

इस प्रकार की समीक्षा से हम छोटी छोटी भूलों को जान सकते हैं, और भविष्य में निर्दोष छंद रच सकते हैं... बहुत कुछ सीखने को मिला.

पुनः आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 17, 2013 at 12:49pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, अच्छी दोहावली, आचार्य जी द्वारा प्रस्तुत समीक्षा से हम सबको बहुत कुछ जानने को मिल रहा है ।

Comment by Admin on February 17, 2013 at 12:47pm

//संचालक जी उपयुक्त समझें तो रचनाओं में दोष-सुधार संबंधी चर्चा हिदी पाठशाला में जोड़ सकें तो नवोदितों को सुविधा होगी.//

आदरणीय आचार्य जी, हिंदी छंदों / रचनाओं में पाये जाने वाले दोषों और निराकरण पर यदि विस्तृत लेख, "हिंदी की कक्षा" अथवा "भारतीय छंद विधान" समूह (जैसा उचित समझे) में आप प्रस्तुत करें तो सदस्यों को अत्यधिक लाभ हो सकता है । 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 17, 2013 at 11:16am

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम
बहुत सुन्दर बहुआयामी कागज़ पर लिखे दोहे मुग्ध कर रहे हैं

उसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई

गुनी जनों की प्रतिक्रिया पढ़ी

बड़े सहज ढंग से हमें सिखने मिल गया

इसके लिए सभी को साधुवाद

ये माहौल हमारे परिवार का यूँ ही बना रहे

जय हो

Comment by ram shiromani pathak on February 17, 2013 at 11:13am

मन कागज पर जब चले ,होकर कलम अधीर |

शब्द-शब्द मिलते गले ,बह जाती है पीर||

भावों शब्दों में चले,जब आपस में द्वंद|

मन के कागज पे तभी ,रच जाता इक छंद||

आदरणीया राजेश कुमारी जी,

 

अति सुन्दर! अति सुन्दर!

 

Comment by sanjiv verma 'salil' on February 17, 2013 at 11:06am

आत्मीय राजेश जी!
आप संवेदनशील और दक्ष रचनाकार हैं. आपसे सामान्य से अधिक की अपेक्षा स्वाभाविक है. दोहों के शिल्प से आप सुअवगत हैं. भाषा पर आपका अधिकार है. अतः, आपके सृजन में यत्किंचित चूक भी खटकती है. कृपया, अन्यथा न लें. दोहा रचना ही पर्याप्त नहीं है, उसे श्रेष्ठता के मानकों पर खरा भी होना चाहिए. अल्प विराम शब्द के तुरंत बाद में हो तथा विराम के बाद रिक्त स्थान स्पेस हो. एक पाठक के नाते अपनी बात विनम्र भाव से प्रस्तुत कर रहा हूँ, अनुपयुक्त प्रतीत हो तो कृपया, भुला दें.

कंधों पर तू ढो रहा ,क्यूँ कागज  का भार |
आरक्षण तुझको मिले,पढ़ना है बेकार  ||
'क्यूं 'अशुद्ध शब्द रूप, 'क्यों' सही.

मन कागज पर जब चले ,होकर कलम अधीर |
शब्द-शब्द मिलते गले ,बह जाती है पीर||
उत्तम दोहा.

भावों शब्दों में चले, जब आपस में द्वंद|
मन के कागज पे तभी, रच जाता इक छंद||
भावों-शब्दों दोनों शब्दों के बीच संयोजक चिन्ह आवश्यक है.
'पे' नहीं 'पर'

टूटे रिश्ते जोड़ दे ,इक नन्हीं सी जान|
कोप सुनामी मोड़ दे ,बालक की मुस्कान ||
'इक' हिंदी शब्द नहीं है, 'एक' है. तदनुसार दोहा सुधार चाहता है. 'इक' का प्रयोग उर्दू में किया जाता है, आप उर्दू रचनाकार नहीं हैं.
'मुस्कान मोड़ना' से कथ्य स्पष्ट नहीं होता.
 
फूलों से साबित करें ,कैसी है ये रीत
कागज का दिल दे रहे ,क्या समझेंगे प्रीत ||
'क्या समझेंगे प्रीत' को 'कैसे समझें प्रीत' करने से 'कैसे' पर जोर पड़ता है, जो दोहे का उद्देश्य है.

रिश्ते कागज पे बने ,कागज में ही भस्म
बिन फेरों के शादियाँ ,कैसी है ये रस्म||
'कागज में ही भस्म' यहाँ 'में' का प्रयोग गलत है. 'में' = के अन्दर जैसे कमरे में = कमरे के अन्दर.
पर = के ऊपर, पे / में के स्थान पर 'पर' हो तो बेहतर.

तन की पाती सब पढ़ें ,मन की पढ़ें न कोय|
जो मन की पाती पढ़ें ,तो दुःख काहे होय ||
कोय, होय जैसे शब्द प्रयोग अपभ्रंश के हैं जो 'सधुक्कड़ी' में उपयुक्त किन्तु हिंदी खडी बोली में दोष माने जाते हैं.
अरमानो को बाँधती,रस्मों की जंजीर. दोहे में संयोजक शब्द यथा जो, तो आदि का प्रयोग कथ्य को शिथिल करता है. इनके प्रयोग कम से कम तथा अत्यावश्यक हो तो ही करें.

अरमानो को बाँधती,रस्मों की जंजीर|
भीगे कागज पे लिखी ,नारी की तक़दीर ||
अच्छा दोहा.
कागज ही से धन मिलें ,कागज  ही से ज्ञान|
वृक्षों से कागज मिलें , कीमत तू पहचान||
वृक्षों से कागज मिलें तथ्य दोष, वृक्षों से कागज़ बने
मिला = प्राकृतिक रूप से प्राप्त, बने = सप्रयास बनाया गया .

पहले पत्तों पर लिखे ,फिर कागज पे ग्रन्थ|
अब कंप्यूटर पर दिखे ,लेखन ज्ञान अनंत||
पदांत में 'थ' तथा 'त' होना दोष है.

*

गत दिनों अजय जी ने मुझसे मार्गदर्शन की अपेक्षा की थी. वे तथा अन्य साथी इसे देखें,  जिज्ञासा हो तो पूछें. संचालक जी उपयुक्त समझें तो रचनाओं में दोष-सुधार संबंधी चर्चा हिदी पाठशाला में जोड़ सकें तो नवोदितों को सुविधा होगी.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 17, 2013 at 11:04am

अति सुन्दर दोहे - कुछ सन्देश लिए, कुछ व्यंग तो कुछ यथार्थ व्यक्त करते, हार्दिक बधाई राजेश कुमारी जी 

रिश्ते कागज पे बने ,कागज में ही भस्म

बिन फेरों के शादियाँ ,कैसी है ये रस्म||   ---- बिन फेरों के कसमे वादों पर करारे  व्यंग कदोहा 

पहले पत्तों पर लिखे ,फिर कागज पे ग्रन्थ|

अब कंप्यूटर पर दिखे ,लेखन ज्ञान अनंत|| --- विज्ञान से ज्ञान के विकास की मुहं बोलती कहानी -एक दोहे में 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 17, 2013 at 10:03am

बहुत सुन्दर दोहावली आदरणीया राजेश जी...

हर दोहा ख़ास है...

अरमानो को बाँधती,रस्मों की जंजीर|

भीगे कागज पे लिखी ,नारी की तक़दीर ||....यह दोहा तो सीधे दिल में उतर गया.

बहुत बहुत बधाई.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 17, 2013 at 9:36am

कागज़ के बहु रूप हैं, साझा हुआ बखान

मुग्ध हुआ मन कर रहा, दोहों का सम्मान .. .

आदरणीया राजेशकुमारीजी, प्रस्तुत हुए दोहे न केवल उच्च भावों से भरे हैं बल्कि उनसे निस्सृत संदेश संप्रेष्य भी हैं. यह अवश्य है कि कई दोहे थोड़ा और समय चाहते थे जबकि दो दोहे तो ओबीओ के व्यक्तिगत पन्नों में भी विशिष्ट स्थान पाते दिख रहे हैं. ऐसे दो दोहों को उद्धृत कर रहा हूँ -

मन कागज पर जब चले ,होकर कलम अधीर |

शब्द-शब्द मिलते गले ,बह जाती है पीर||

अरमानो को बाँधती,रस्मों की जंजीर|

भीगे कागज पे लिखी ,नारी की तक़दीर || ..  

बहुत सुन्दर  !! इन कालजयी दोहों पर हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीया राजेश कुमारीजी. 

लेकिन पहला दोहा .. . भ्रमित हुआ. यह बयान है, व्यंग्य है.. या फिर उपालंभ ?

कुछ संयत शब्द अच्छे भाव-संप्रेषण का उचित कारण बन सकते हैं.

सादर

Comment by वेदिका on February 17, 2013 at 1:10am

अरमानो को बाँधती,रस्मों की जंजीर|
भीगे कागज पे लिखी ,नारी की तक़दीर ||

सही रचना!  सुंदर रचना!  सरल रचना !  सहज रचना !

सहस्त्र शुभकामनायें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
10 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
11 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service