सखि,चैत्र गया अब ताप बढ़ा।
धरती चटकी सिर सूर्य चढ़ा।
ऋतु के सब रंग हुए गहरे।
जल स्रोत घटे जन जीव डरे।
फिर भी मन में इक आस पले।
सखि पाँव धरें चल नीम तले।
इस मौसम में हर पेड़ झड़ा।
पर, मीत यही अपवाद खड़ा।
खिलता रहता फल फूल भरा।
लगता मन मोहक श्वेत हरा।
भर दोपहरी नित छाँव मिले।
सखि झूल झुलें चल नीम तले।
यह पेड़ बड़ा सुखकारक है।
यह पूजित है वरदायक है।
अति पावन प्राणहवा इसकी।
मन भावन शीतलता इसकी।
इक दीप धरें हर शाम ढले।
सखि, गीत गुनें चल नीम तले।
यह जान बड़े गुण हैं इसके।
नित सेवन पात करें इसके।
यह खूब पुरातन औषध है।
कड़वा रस शोणित-शोधक है।
हर गाँव शहर यह खूब फले।
हर रोग मिटे सखि नीम तले।
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना रामानी
Comment
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .पूर्णतया सहमत बिल्कुल सही कहा है आपने .>
आ0 रामानी मैम जी, आप जब भी लिखती हैं, बहुत अच्छा लिखती है। वाह क्या बात है! आपने सवैया के विधा पर अतिसुन्दर गुणकारी गीत लिखा है। तहेदिल से हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
बहुत बढ़िया गीत के माध्यम से नीम के गुणों का सुन्दर बखान किया है आदरणीय कल्पना जी बहुत- बहुत बधाई आपको |
यह पेड़ बड़ा सुखकारक है।
यह पूजित है वरदायक है।
अति पावन प्राणहवा इसकी।
मन भावन शीतलता इसकी।
इक दीप धरें हर शाम ढले।
सखि, गीत गुनें चल नीम तले।
आदरणीया बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने//हार्दिक बधाई ///महिने की श्रेष्ठ रचना कि लिये बधाई. /सादर /
यह जान बड़े गुण हैं इसके।
नित सेवन पात करें इसके।
यह खूब पुरातन औषध है।
कड़वा रस शोणित-शोधक है।
हर गाँव शहर यह खूब फले।
हर रोग मिटे सखि नीम तले।......बहुत सुन्दर गीत कल्पना जी बधाई
फिर भी मन में इक आस पले।
सखि पाँव धरें चल नीम तले।... आदरणीय कल्पना जी ... बहुत बहुत भाया मन को आपका यह कड़वा नीम !
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए …………….. |
यह जान बड़े गुण हैं इसके।
नित सेवन पात करें इसके।
यह खूब पुरातन औषध है।
कड़वा रस शोणित-शोधक है।
हर गाँव शहर यह खूब फले।
हर रोग मिटे सखि नीम तले।
aadrniyaa kalpna jii सादर
रचना सुन्दर भाव की
नीम के गुण अनमोल
बैठ छांव तरु के
जिव बंधन खोल
बधाई
बढि़या गीत एवं सुंदर संदेश भी, हार्दिक बधाई कल्पनादी
neem ke vruksh ka sundar varnan...is mahine ki shreshth rachna ke liye badhaiyan...
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