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दर्द भूख का यारो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

मौत   बेटियों   को  बस,  दाइयाँ  समझती  हैं

पीर  के  सबब  को  सब  माइयाँ  समझती  हैं

**

सोच  आज  तक  भी जब,  है  गुलाम जैसी ही

मुल्क  की  अजादी  क्या, बेडि़याँ  समझती हैं

**

दो  बयाँ  भले  ही  तुम  देश  की  तरक्की के

हर खबर है सच कितनी सुर्खियाँ समझती हैं

**

आप   के  बयानों  में    खूब   है  सफाई  पर

बेवफा  कहाँ  तक  हो,   पत्नियाँ  समझती हैं

**

दोष  तुम  निगाहों   को  बेरूखी  की  देते  हो

कान  कौन  भरता  है  बालियाँ  समझती  हैं

**

पायलों को छमछम  की आदतें  जनम से ही

कब  किसे  रिझाना  है  चूडि़याँ  समझती  हैं

**

जिश्म  को  बिछाया  है लाल के  बिलखने से

दर्द   भूख   का  यारो   रोटियाँ   समझती  हैं

**

क्या कहें ‘मुसाफिर’ को चुप रहा सफर में गर

मौन  क्यों जुबाँ  है ये  तल्खियाँ  समझती हैं

**

212   1222  212  1222

**

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 27, 2014 at 5:25pm

आ० लक्ष्मण धामी जी 

मैं मतले में काफिया निर्धारण पर अटक गयी ..आपने काफिया 'आइयाँ' लिया है पर हमकवाफी शब्द 'इयाँ' पर हैं....

अश'आर सुन्दर हुए हैं 

हार्दिक बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 23, 2014 at 3:42am

एक अच्छी ग़ज़ल पर मेरी दाद लीजिये. आदरणीय 

आपकी ग़ज़ल इस माह के तरही मुशायरे में सम्मिलित हो सकती थी. खैर..

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 21, 2014 at 10:47am

आदरणीय लक्ष्मण जी, गज़ल का हर अश'आर उम्दा है. इस लाजवाब गज़ल के लिए बधाइयाँ................


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 20, 2014 at 9:43pm

आदरणीय लक्ष्मणजी बह्र क्या खूब निभाया है आपने बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by vijay nikore on May 20, 2014 at 11:42am

//

//पायलों को छमछम  की आदतें  जनम से ही

कब  किसे  रिझाना  है  चूडि़याँ  समझती  हैं//

इस अच्छी गज़ल के लिय बधाई, आदरणीय।

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 19, 2014 at 9:16pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब अच्छी ग़ज़ल कही है , खूब सारी बधाइयाँ ॥

Comment by Meena Pathak on May 19, 2014 at 8:45am

क्या बात है .. दिली दाद कबूल करें | सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 19, 2014 at 8:39am

जिश्म  को  बिछाया  है लाल के  बिलखने से

दर्द   भूख   का  यारो   रोटियाँ   समझती  हैं............बहुत मार्मिक, बधाई आदरणीय लक्ष्मण जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2014 at 12:42pm

sundar ghazal likhi hai ...bahut- bahut badhaai. 

Comment by coontee mukerji on May 16, 2014 at 11:52pm

पायलों को छमछम  की आदतें  जनम से ही

कब  किसे  रिझाना  है  चूडि़याँ  समझती  हैं...क्या नज़ाकत है.....बहुत बहुत बधाई...सादर.

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