For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्लस्टिक की श्रद्धा (लघुकथा) रवि प्रभाकर

“अरे ये क्या, प्लास्टिक का हार ?” काम से वापिस आए पति के थैले में से खाने का डिब्बा निकालते हुए उसने पूछा
“हां, मां-बाबू जी की फोटो पर रोज फूलों का हार चढ़ाने की बजाए ये हार पहना दो, मुरझाएगा भी नहीं और मैला होने पर धुल भी जाएगा।” उसने एक ही चारपाई पर फटे कंबल के सहारे ठंड से संघर्ष करते हुए अपने तीनों बच्चों की ओर देखकर कहा

Views: 758

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 8, 2014 at 3:48pm

एक तरफ श्रद्धा है और एक ओर महँगाई.... बीच की राह दिखाती सार्थक लघुकथा 

हार्दिक बधाई आ० रवि प्रभाकर जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 4:03am

श्रद्धा के प्रति कोई अहमन्यता हीं किन्तु जीना तो इसी जग में है.. इस भावदशा को जीती इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई रवि भाई.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2014 at 9:25am

आ0 भाई रवि प्रकाश जी लधुकथा बेहतरीन है । गरीब की विवशता को इस लधुकथा के माध्यम से जिस प्रकार आपने सफलतापूर्वक दर्शाया है वह अद्वितीय है । हार्दिक बधाई कबूलें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 1, 2014 at 9:08am

इंसान की मजबूरी कभी कभी उसके जज़्बात पर भारी पड़ जाती है। आदरणीय रवि प्रभाकर सर इस लघुकथा के लिये हार्दिक बधाई। 

Comment by बृजेश नीरज on July 1, 2014 at 7:29am
अच्छी लघुकथा। आपको बधाई।
Comment by अरुन 'अनन्त' on June 30, 2014 at 5:34pm

आदरणीय रवि जी वाह लघुकथा की प्रस्तुति देखते ही बनती है केवल तीन पंक्तियों में कितना कुछ कह दिया है. एक तीर से दो निशाने लगाये हैं आपने भाव पक्ष बहुत ही गंभीर एवं असरदार है. आपको दिल से बहुत बहुत बधाई प्रेषित है स्वीकार कीजिये.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 29, 2014 at 7:51pm

श्रद्धा तो है! गरीबी में भी यह अहसास कम नहीं .... वरना आजकल तो …… 

Comment by Maheshwari Kaneri on June 29, 2014 at 12:07pm

पिता के प्यार पर महंगाई की मार... बहुत ही मार्मिक भाव दर्शाए है..आदरणीय रवि जी आप ने..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 29, 2014 at 9:27am

कुछ ही शब्दों में आपका  बहुत सजीव सा चित्रण कर देना, नमन आपकी लेखनी को आदरणीय रवि जी

Comment by Shubhranshu Pandey on June 28, 2014 at 8:59pm

दो भाव एक साथ कथा में पिरोया है. आदरणीय

दोनो भाव उभर कर सामने आ रहे है...पिता के प्यार पर महंगाई की मार....

सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर  होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service