तुम मेरे कौन हो?
तुम मेरे कौन हो ?
उषा सिंदूरी या चाँदनी रात
उषा जिससे ज़िन्दगी का अन्धेरा जाता है
जिसके स्पर्श से जीवन लहराता है
खिल उठते हैं जिसके दर्शन से बेल-बूटे
पशु मचल उठते हैं छुड़ाने को खूटे
विह्ग कलरव गातें हैं पंख पसार
क्या तुम्ही हो वो मेरी उषा नार
याकि तुम हो चाँदनी-रात
स्निग्ध शीतल करुणामयी
हरती मेरा पीड़ा संताप
भूल जाता हूँ एकाकीपन, ठहर जाता है मन
होते हो जब भी पास|
क्या तुम ही हो मेरी चाँदनी रात?|
तुम मेरे कौन हो ?
स्वस्थ सपन या निर्बोझ नींद
सपन जिससे नींद की ठनती रही है
कितनी मृग-मरीचिका पलती रही हैं
हो छलावा लेकिन क्षणों का खुशनुमा अहसास
तो बताओं हो क्या तुम मेरा सलोना सपन
याकि तुम हो मेरी वो नींद जो लोटती है
तो करवटें गिनती नहीं
अपने अस्तित्व के सिवाय कुछ गुनती नहीं
वो नींद जिसका होना है रंग भर आकाश
जिसमें स्वपन का ज्वार भी ले आता है तुम्हारे पास
तो क्या तुम्ही हो मेरी वो गुनगुनी नींद |
तुम मेरे कौन हो ?
मेरी निश्छल आत्मा या मेरी ग़ात
आत्मा जो मुझमें रहती है ओझल
जैसेकि हवा बहती है, रखती है मुझको-मुझ सा
यूँ जैसे काली निशा में दिव –प्रकाश
याकि तुम हो मेरी ग़ात
जो वास्तविकता है स्पष्ट दिखता है
पर धोखा है जिसका आभास
तो तुम बताओं तुम मेरे कौन हो ?
.
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित ) (२१/०८/२००८)
Comment
बहुत खूब भाई सोमेश कुमार जी।
सभी विद्वान् मित्रों /अग्रजों को रचना को पढ़ने और उत्साहवर्धन के लिए तहे दिलसे शुक्रिया
pyaaree rachnaa
बहुत सुन्दर रचना आदरणीय सोमेश जी..दोनों पक्षों में कितना कुछ मिल रहा स्नेह में,,,सुन्दर चित्रण..बधाई आपको.
सोमेश जी
बहुत सुन्दर , भावपूर्ण कविता i आपको बधाई i
अति सुंदर हार्दिक बधाई ।
सोमेश भाई ,सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई !
सुन्दर प्रस्तुति ..बहुत खूब
सुन्दर रचना के लिए बधाई | सर
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