For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जमाना और था जब प्यार आँसू पोंछ देता था - लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

1222    1222     1222 1222
******************************
ये कैसी  हलचलें  नवयुग  बता  तेरी  रवानी में
बचे  भूगोल  में  नाले  नदी   किस्से  कहानी में
****
बनीं नित नीतियाँ ऐसी हुकूमत हो किसी की भी
नफा व्यापार  में  बढ़चढ़  रहे  फाका किसानी में
****
दिलों का जोश ठंडा है, उमर कमसिन उतरते ही
बुढ़ापा  हो गया हावी  सभी  पर  धुर  जवानी में
****
जमाना  और  था  जब  प्यार  आँसू पोंछ  देता था
मगर अब अश्क मिलते हैं मुहब्बत की निशानी में
****
कमी कंकड़ में  है  या  फिर  हमारा हाथ कच्चा है
लहर उठती नहीं जो अब कभी इस झील पानी में
****
सुना था  तुम  हुए मुंसिफ  उजालों  के  नगर  में अब
‘मुसाफिर’ आगये फिर क्यों तमस की हित बयानी में
****
मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

Views: 590

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on April 5, 2015 at 11:09pm
जनाब लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" जी,आदाब,वाह वाह वाह,क्या ही अच्छे जज़बात से भरपूर अशआर निकाले हैं आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 4, 2015 at 5:34pm

ये कैसी  हलचलें  नवयुग  बता  तेरी  रवानी में 
बचे  भूगोल  में  नाले  नदी   किस्से  कहानी में |---वाह ! अब तो नक्शें से भी गायब होते जा रहे है | सिर्फ कहानी किस्सों में ही मिएँगे 
जमाना  और  था  जब  प्यार  आँसू पोंछ  देता था
मगर अब अश्क मिलते हैं मुहब्बत की निशानी में --- वाह  ! बहुत खूब | उम्दा  भाव  | इस खूबसूरत गजल के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 3, 2015 at 6:55pm
यूँ तो सभी अश 'आर अच्छे हैं , ये तो कुछ बहुत ही अलग है ,
" बचे भूगोल में नाले नदी किस्से कहानी में "
बहुत बहुत बधाई ,आदरणीय लक्षमण धामी जी , सादर।
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 3, 2015 at 4:38pm

बहुत बढ़िया जनाब ...बधाई ...सादर 

Comment by Samar kabeer on April 3, 2015 at 2:58pm
जनाब लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर'जी,आदाब,वाह वाह वाह,क्या ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 3, 2015 at 12:23pm
अच्छे अश’आर हुए हैं आदरणीय लक्ष्मण जी, दाद कुबूल कीजिए
Comment by Shyam Narain Verma on April 3, 2015 at 12:15pm
"क्या बात है ..... बहुत खूब ... बधाई आप को "
Comment by Sushil Sarna on April 2, 2015 at 9:00pm

जमाना और था जब प्यार आँसू पोंछ देता था
मगर अब अश्क मिलते हैं मुहब्बत की निशानी में
****
कमी कंकड़ में है या फिर हमारा हाथ कच्चा है
लहर उठती नहीं जो अब कभी इस झील पानी में

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहिब आपकी इस ग़ज़ल ने तो हमें लूट ही लिया .... खासकर ये दो शे'र तो गज़ब ढा रहे है … कल्पना का चरम आपने दर्शाया है इनमें … आपकी इस बेहद उम्दा प्रस्तुति पर बन्दे की तहे दिल से दाद कबूल फरमाएं सर।

Comment by Shyam Mathpal on April 2, 2015 at 7:45pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,

कितने सुंदर शब्दों मैं आपने दर्द का चित्र खींचा है .उन सब की ओर से भी आपको ढेरों बधाई.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2015 at 5:05pm

आओ धामी जी

बहुत उम्दा गजल

.जमाना  और  था  जब  प्यार  आँसू पोंछ  देता था
मगर अब अश्क मिलते हैं मुहब्बत की निशानी में
****

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
yesterday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service