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ये कैसी हलचलें नवयुग बता तेरी रवानी में
बचे भूगोल में नाले नदी किस्से कहानी में
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बनीं नित नीतियाँ ऐसी हुकूमत हो किसी की भी
नफा व्यापार में बढ़चढ़ रहे फाका किसानी में
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दिलों का जोश ठंडा है, उमर कमसिन उतरते ही
बुढ़ापा हो गया हावी सभी पर धुर जवानी में
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जमाना और था जब प्यार आँसू पोंछ देता था
मगर अब अश्क मिलते हैं मुहब्बत की निशानी में
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कमी कंकड़ में है या फिर हमारा हाथ कच्चा है
लहर उठती नहीं जो अब कभी इस झील पानी में
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सुना था तुम हुए मुंसिफ उजालों के नगर में अब
‘मुसाफिर’ आगये फिर क्यों तमस की हित बयानी में
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मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’
Comment
ये कैसी हलचलें नवयुग बता तेरी रवानी में
बचे भूगोल में नाले नदी किस्से कहानी में |---वाह ! अब तो नक्शें से भी गायब होते जा रहे है | सिर्फ कहानी किस्सों में ही मिएँगे
जमाना और था जब प्यार आँसू पोंछ देता था
मगर अब अश्क मिलते हैं मुहब्बत की निशानी में --- वाह ! बहुत खूब | उम्दा भाव | इस खूबसूरत गजल के लिए हार्दिक बधाई
बहुत बढ़िया जनाब ...बधाई ...सादर
"क्या बात है ..... बहुत खूब ... बधाई आप को " |
जमाना और था जब प्यार आँसू पोंछ देता था
मगर अब अश्क मिलते हैं मुहब्बत की निशानी में
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कमी कंकड़ में है या फिर हमारा हाथ कच्चा है
लहर उठती नहीं जो अब कभी इस झील पानी में
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहिब आपकी इस ग़ज़ल ने तो हमें लूट ही लिया .... खासकर ये दो शे'र तो गज़ब ढा रहे है … कल्पना का चरम आपने दर्शाया है इनमें … आपकी इस बेहद उम्दा प्रस्तुति पर बन्दे की तहे दिल से दाद कबूल फरमाएं सर।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,
कितने सुंदर शब्दों मैं आपने दर्द का चित्र खींचा है .उन सब की ओर से भी आपको ढेरों बधाई.
आओ धामी जी
बहुत उम्दा गजल
.जमाना और था जब प्यार आँसू पोंछ देता था
मगर अब अश्क मिलते हैं मुहब्बत की निशानी में
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