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मक्खियाँ (लघुकथा) राहिला

सौम्या की खास सहेली काफ़ी जतन के बाद भी लन्दन से शादी के एक दो दिन पहले ना पहुँच, ठीक उसी दिन पहुँच पायी।अपनी प्रिय सखी की पसंद को लेकर उसके मन में काफ़ी सवाल थे,जो मौका पाते ही निकल पड़े।

"तू बस एक वजह बता दे इस कोयले की खान से शादी करने की?"उसने एक नज़र स्टेज पर खड़े उसके दूल्हे डाल कर कहा।

"तमीज से बोल रमा!इतना तो याद रख ,तू मेरे पति के बारे में बात कर रही है।"

"अच्छा!!खूब ,जरा देख..,अपने पूरे कुटुंब को एक नज़र।इतनी हेठी शख्सियत तो तेरे ड्राइवर की भी नहीं।"

"शक्ल सूरत ही तो सब कुछ नहीं है।फिर शहर की  जानीमानी हस्तियों में गिनती है उनकी।और इन सब से अहम बात ये कि वो मुझसे बेइंतिहा मुहब्बत करते है, मेरी इज्जत करतेहै ।एक लड़की को और क्या चाहिए।" 

"मुहब्बत..!!, वो तो राकेश भी तुझसे बेपनाह करता था।उस जैसे सुंदर, सजीले नौजवान को तूने बिना बात ठुकरा दिया।जबकि शायद ही कॉलेज की कोई लड़की हो जो उसपर ना मरती हो।"

"इसी लिये तो, सारी उम्र भर उस गुड़ से मक्खियाँ कौन हटाता फिरता।मैं माँ की तरह सहनशील भी तो नहीं।"

स्टेज से दूर खड़े, महिलामित्रों से घिरे, अपने सुदर्शन पिता की ओर एक नजर फेंक कर वो बोली।

.

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Rahila on July 3, 2016 at 10:49am
बहुत शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सर जी!सादर प्रणाम
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 3, 2016 at 8:11am
पारिवारिक माहौल का सन्तानों की सोच, मनोविज्ञान पर बहुत प्रभाव पड़ता है। कथा की पात्रा देखी व सुनी बातों का असर है, इसलिए काफी सोच समझकर जीवन साथी का चयन किया है। लेकिन सुदर्शन हो या बदसूरत, नामी व्यक्तित्व हो, सामान्य या बदनाम व्यक्तित्व हो, शादी के पहले प्राप्त जानकारी व परिचय कई बार शादी के बाद विपरीत छाप भी छोड़ सकता है। सुदर्शन लोगों के व्यक्तित्व भी बहुत सुंदर होते हैं और काले-कलूटे बदसूरत से लोग भी रसिक, भ्रष्ट या ज़ुल्मी जीवन साथी साबित हो सकते हैं। यहाँ पात्रा का अपना अनुभव है अतीत व वर्तमान का, भविष्य अभी सपनों की तरह ही है। बहुत अच्छी कहावत के इर्द-गिर्द बुनी गई कथा पुनः गागर में सागर ही है। कुछ पंक्तियाँ कहे व अनकहे में बहुत कुछ कह रही हैं। नकारात्मक संदेश भी है, सकारात्मक भी! इसलिए पाठकों को एक विचारणीय मुद्दाव संदेश तो देती है । बहुत बढ़िया सुंदर लघु प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत बहुत मुबारकबाद आपको मोहतरमा राहिला साहिबा।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2016 at 9:18pm

राहिला जी मैं सोचता हूँ सुन्दर लड़की से शादी करना भी ऐसा ही जोखिम है भवरों से बेचारा पति कब तक निपटेगा . सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2016 at 6:30pm

इसी लिये तो, सारी उम्र भर उस गुड़ से मक्खियाँ कौन हटाता फिरता---वाह वाह क्या पंच लाइन जबरदस्त कहीं पहले भी सुनी है --हाँ याद आया अपने बेटी से ही सुनी है ..हालाँकि वो भी गुड से कमतर  नहीं है और आपकी लघु कथा की नायिका की तरह आज की ही लड़की है\हाहाहा कई बार लघु कथा के किरदार अपने से लगने लगते हैं यही तो खूबी होती एक अच्छी लघु कथा की जो इस लघु कथा में भी है |

बहुत बहुत बधाई प्रिय राहिला जी | 

Comment by Nita Kasar on July 1, 2016 at 8:55pm
बेहद धीर गंभीर बात कही है आपने कथा के ज़रिये,इसलिये तो सारी उम्र भर उस गुड से मक्खियाँ कौन हटाता फिरता,मैं माँ की तरह सहनशील भी तो नही ।यहाँ कथा में सार्थक संदेश की प्रस्तुति हुई है बधाई आपको आद०राहिला जी ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 1, 2016 at 8:48pm

शानदार कथा  हुई है आदरणीय राहिला जी बधाई स्वीकारें |

Comment by Sushil Sarna on July 1, 2016 at 8:15pm

शानदार अादरणीया राहिला जी शानदार  ... बहुत ही गहरी सोच ओर चोट की इस लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by TEJ VEER SINGH on July 1, 2016 at 7:42pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला जी!बहुत शानदार प्रस्तुति!

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