मृत्यु...
जीवन का वह सत्य
जो सदियों से अटल है
शिला से कहीं अधिक।
मृत्यु पूर्व...
मनुष्य बद होता है
बदनाम होता है
बुरी लगती हैं उसकी बातें
बुरा उसका व्यवहार होता है।
मृत्यु पूर्व...
जीवन होता है
शायद जीवन
नारकीय
यातनीय
उलाहनीय
अवहेलनीय।
मृत्यु पूर्व...
मनुष्य, मनुष्य नहीं होता
हैवान होता है
हैवान, जो हैवानियत की सारी हदें
पार कर देना चाहता है।
मृत्यु पश्चात्...
विश्राम, विश्रान्ति
आनन्द, परमानन्द।
मृत्य पश्चात्...
मनुष्य की सारी भूलें
भुला दी जाती हैं
याद रहती हैं
तो सिर्फ उसकी अच्छाइयाँ
अच्छाइयाँ, जो शायद उसने
कभी की भी नहीं थीं।
मृत्यु पश्चात्...
आजीवन रहा हैवान
बन जाता है भगवान
भगवान, क्योंकि अब वह
कुछ कर नहीं सकता
और जो कुछ कर नहीं सकता
वही तो भगवान होता है।
अन्ततः इस मृत्यु का
जाने यह कैसा सार है
पूर्व में दूसरों का जीवन
जिसने बना दिया था नारकीय
मृत्यु पश्चात् उसे भी
स्वर्गीय कहलाने का अधिकार है।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
अन्ततः इस मृत्यु का
जाने यह कैसा सार है
पूर्व में दूसरों का जीवन
जिसने बना दिया था नारकीय
मृत्यु पश्चात् उसे भी
स्वर्गीय कहलाने का अधिकार है। - वाह ! किन्तु म्रत्यु पश्चात स्वर्गीय को उसके कर्मानुसार ही सम्मान मिलता है साहब !
साश्वत सच्चाई | बहुत सुंदर रचना हुई है आदरणीय महेंद्र कुमार जी | बधाई स्वीकारें |
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