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2122 2122 212
लोग कब दिल से यहाँ बेहतर मिले ।
जब मिले तब फ़ासला रखकर मिले ।।

है अजब बस्ती अमीरों की यहां ।
हर मकाँ में लोग तो बेघर मिले ।।

तज्रिबा मुझको है सापों का बहुत ।
डस गये जो नाग सब झुककर मिले ।।

कर गए खारिज़ मेरी पहचान को ।
जो तसव्वुर में मुझे शबभर मिले ।।

मैं शराफ़त की डगर पर जब चला ।
हर कदम पर उम्र भर पत्थर मिले ।।

मौत से डरना मुनासिब है नहीं ।
क्या पता फिर जिंदगी बेहतर मिले ।।

भुखमरी के दौर से गुजरे हैं वो ।
खेत सारे गाँव के बंजर मिले ।।

आप से उम्मीद अच्छे दिन की थी ।
हाथ में क्यों आपके ख़ंजर मिले ।।

है बहुत इल्ज़ाम उन पर आपका ।
आप भी उनसे कहाँ कमतर मिले ।।

सिर्फ दौलत तक नज़र सबकी रही ।
अब तलक भी जो हमें रहबर मिले ।।

जब भी माँगा पांच सालों का हिसाब ।
आपके बदले हुए तेवर मिले ।।


--- नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on June 8, 2018 at 11:13pm

आ0 गंगा धर शर्मा जी हार्दिक आभार

Comment by Naveen Mani Tripathi on June 8, 2018 at 11:11pm

आ0 गुमनाम पिथौरा गढ़ी साहब शुक्रियः।

Comment by gumnaam pithoragarhi on June 8, 2018 at 9:42am

वाह खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई,,,

Comment by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on June 7, 2018 at 3:57pm

तज्रिबा मुझको है सापों का बहुत ।
डस गये जो नाग सब झुककर मिले ।।..........वाह....आदरणीय त्रिपाठी जी .....बहुत ही उम्दा ग़ज़ल  लिए हार्दिक बधाई............

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 7, 2018 at 1:37pm

आ. भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by TEJ VEER SINGH on June 7, 2018 at 10:58am

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी।लाज़वाब गज़ल।

आप से उम्मीद अच्छे दिन की थी ।
हाथ में क्यों आपके ख़ंजर मिले ।।

Comment by Shyam Narain Verma on June 7, 2018 at 10:54am
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!
Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 7, 2018 at 10:04am

वाह लाजबाब गजल के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय नवीन जी 

Comment by Ravi Shukla on June 6, 2018 at 9:06pm

आदरणीय नवीन जी अचछी गजल कही अापने बघाई स्वीकार करें 

Comment by रक्षिता सिंह on June 6, 2018 at 8:43pm

आदरणीय नवीन जी, 

कर गए खारिज़ मेरी पहचान को ।
जो तसव्वुर में मुझे शबभर मिले ।।

बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ ....बधाई स्वीकार  करें ।

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