बह्र : 2122 1122 1122 112/22
अश्क़ आँखों में कभी भूल के लाते भी नहीं
और बर्बादियों का शोक मनाते भी नहीं
पूछ कर ज़िन्दगी में लोग जो आते भी नहीं
इतने बेदर्द हैं जाएँ तो बताते भी नहीं
वो ख़ुशी थी कि जिसे रास नहीं आए हम
और वो ग़म हैं जो हमें छोड़ के जाते भी नहीं
लोग चाहत का गला घोंट तो देते हैं मगर
दफ़्न करते भी नहीं और जलाते भी नहीं
जाइए आपका मैख़ाने में क्या काम है जब
ख़ुद भी पीते नहीं औरों को पिलाते भी नहीं
हमसफ़र बन के मेरे साथ में वो चलते हैं
दो घड़ी साथ कभी वक़्त बिताते भी नहीं
लोग जिसके लिए कल जान भी दे सकते थे
सामने उस ख़ुदा के सर को झुकाते भी नहीं
जा रहा हूँ मैं, कभी फिर किसी से मत कहना
बात करते हैं मगर मर के दिखाते भी नहीं
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
ग़ज़ल को पसन्द करने के लिए आपका हृदय से आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी। बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
आ. महेंद्र जी,
ख़ूब अच्छी ग़ज़ल हुई है ..एक दो जगह पर रदीफ़ के साथ न्याय नहीं हुआ ,,, भी नहीं में भी बहुत सार्थक है.. आप स्वयं चिन्तन कीजिये लेकिन इस शेर
लोग चाहत का गला घोंट तो देते हैं मगर
दफ़्न करते भी नहीं और जलाते भी नहीं... के लिए आप को दिल से ढेरों दाद..
आप स्वयं देखिये कि इस शेर का भी बाकी कुछेक भी के जितना ही दमदार है या नहीं
सादर
वाह क्या ही खूब ग़ज़ल कही है आदरणीय महेंद्र जी..वाकई पढ़ के मन प्रसन्न हो गया..सभी शे'र एक से बढ़ के एक।
आद0 महेंद्र कुमार जी सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल कही आने। शैर दर शैर दाद के साथ बधाई कुबुल कीजिये
जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,ओबी ओ के तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय महेंद्र कुमार जी आदाब,
बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल । मुझे आपकी इस ग़ज़ल का हर शे'र पसंद है । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
आ. भाई महेंद्र जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय महेंद्र जी, बहुत दिनों के बाद इधर आपकी ग़ज़लें देख कर आस्वस्ति हुई. खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.
आदरणीय महेंद्र कुमार जी, आदाब, सुन्दर ग़ज़ल हुई है. दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें.
आदरणीय महेंद्र कुमार जी सादर नमस्कार
शानदार गजल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको
एक से बढ़कर एक शेर
वाह वाह
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