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ग़ज़ल : बात करते हैं मगर मर के दिखाते भी नहीं

बह्र : 2122 1122 1122 112/22

अश्क़ आँखों में कभी भूल के लाते भी नहीं
और बर्बादियों का शोक मनाते भी नहीं

पूछ कर ज़िन्दगी में लोग जो आते भी नहीं
इतने बेदर्द हैं जाएँ तो बताते भी नहीं

वो ख़ुशी थी कि जिसे रास नहीं आए हम
और वो ग़म हैं जो हमें छोड़ के जाते भी नहीं

लोग चाहत का गला घोंट तो देते हैं मगर
दफ़्न करते भी नहीं और जलाते भी नहीं

जाइए आपका मैख़ाने में क्या काम है जब
ख़ुद भी पीते नहीं औरों को पिलाते भी नहीं

हमसफ़र बन के मेरे साथ में वो चलते हैं
दो घड़ी साथ कभी वक़्त बिताते भी नहीं

लोग जिसके लिए कल जान भी दे सकते थे
सामने उस ख़ुदा के सर को झुकाते भी नहीं

जा रहा हूँ मैं, कभी फिर किसी से मत कहना
बात करते हैं मगर मर के दिखाते भी नहीं

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Mahendra Kumar on October 29, 2018 at 8:01am

ग़ज़ल को पसन्द करने के लिए आपका हृदय से आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी। बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 28, 2018 at 8:30am

आ. महेंद्र जी,
ख़ूब अच्छी ग़ज़ल हुई है ..एक दो जगह पर रदीफ़ के साथ न्याय नहीं हुआ ,,, भी नहीं में भी बहुत   सार्थक है.. आप स्वयं चिन्तन कीजिये लेकिन इस शेर 
लोग चाहत का गला घोंट तो देते हैं मगर
दफ़्न करते भी नहीं और जलाते भी नहीं... के लिए आप को दिल से ढेरों दाद..
आप स्वयं देखिये कि इस  शेर का भी  बाकी कुछेक भी के जितना ही दमदार है या नहीं
सादर 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 27, 2018 at 7:58pm

वाह क्या ही खूब ग़ज़ल कही है आदरणीय महेंद्र जी..वाकई पढ़ के मन प्रसन्न हो गया..सभी शे'र एक से बढ़ के एक।

Comment by नाथ सोनांचली on October 27, 2018 at 5:28pm

आद0 महेंद्र कुमार जी सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल कही आने। शैर दर शैर दाद के साथ बधाई कुबुल कीजिये

Comment by Samar kabeer on October 27, 2018 at 4:05pm

जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,ओबी ओ के तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on October 27, 2018 at 12:01pm

आदरणीय महेंद्र कुमार जी आदाब,

                             बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल । मुझे आपकी इस ग़ज़ल का हर शे'र पसंद है । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 27, 2018 at 11:49am

आ. भाई महेंद्र जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Ajay Tiwari on October 27, 2018 at 7:37am

आदरणीय महेंद्र जी, बहुत दिनों के बाद इधर आपकी ग़ज़लें देख कर आस्वस्ति हुई. खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.  

Comment by राज़ नवादवी on October 26, 2018 at 5:06pm

आदरणीय महेंद्र कुमार जी, आदाब, सुन्दर ग़ज़ल हुई है. दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें. 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on October 26, 2018 at 1:17pm

आदरणीय महेंद्र कुमार जी सादर नमस्कार 

शानदार गजल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको

एक से बढ़कर एक शेर 

वाह वाह 

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