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Aazi Tamaam
  • Male
  • Bareilly, UP
  • India
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Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कौन हुआ आजाद-(दोहा गीत)
"वाह वाह बेहतरीन गीत हुआ दोहा के रूप में आ धामी सर"
Aug 15
Aazi Tamaam posted a blog post

दोहे : बैठ एक की आस में, कब तक रहें उदास

बैठ एक की आस में, कब तक रहें उदासचल दिल चल के ढूँढ लें, दूजा और निवासये जग है मायानगर, कौन करे विश्वासइस झूठे बाजार में, टूटी सब की आसपल भर में मेला लगे, पल भर में वनवासअभी पराया हो गया, अभी हुआ जो खासरहते थे हम ठाठ से, सब था अपने पासछोड़ जिसे, आवारगी, हमको आई रासश्वेत रंग की प्रीत का, उनको क्या एहसासरंगों के शौकीन तो, बदलें रोज लिबास(मौलिक व अप्रकाशित) See More
Aug 11
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाबू जी (दोहे)
"बहुत सुंदर दोहे हुए आ धामी सर बेहतरीन मैंने पाँच दोहे लिखे नानी याद आ गयी 😊"
Aug 9
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post दोहे : बैठे एक की आस में, कब तक रहें उदास
"सहृदय शुक्रिया आ धामी सर आपकी इस्लाह का दिल से शुक्र गुज़ार हूँ आपने बेहतरीन सुझाव दिये हैं आ मैं दुरुस्त करता हूँ"
Aug 9
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post दोहे : बैठे एक की आस में, कब तक रहें उदास
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। दोहों का प्रयास अच्छा हुआ है। बधाई। कुछ दोहों में मात्राएँ अधिक हैं। देखिएगा... *** बैठ एक की आस में, कब तक रहें उदास चल दिल चल के ढूँढ लें, दूजा और निवास ये जग है मायानगर, कौन करे विश्वास इस झूठे बाजार में, टूटी सब की…"
Aug 8
Aazi Tamaam posted a blog post

दोहे : बैठ एक की आस में, कब तक रहें उदास

बैठ एक की आस में, कब तक रहें उदासचल दिल चल के ढूँढ लें, दूजा और निवासये जग है मायानगर, कौन करे विश्वासइस झूठे बाजार में, टूटी सब की आसपल भर में मेला लगे, पल भर में वनवासअभी पराया हो गया, अभी हुआ जो खासरहते थे हम ठाठ से, सब था अपने पासछोड़ जिसे, आवारगी, हमको आई रासश्वेत रंग की प्रीत का, उनको क्या एहसासरंगों के शौकीन तो, बदलें रोज लिबास(मौलिक व अप्रकाशित) See More
Aug 8
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post विरह के दोहे
"वाह वाह बहुत ख़ूब आ मज़ा आ गया धामी सर पढ़ कर दोहे "
Aug 6
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल : मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम
"बहुत बहुत शुक्रिया आ धामी सर इस ज़र्रा नवाज़ी का"
Jul 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल : मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम
"आ. भाई आज़ी तमाम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Jul 30
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल : मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम

१२१२ ११२२ १२१२ २२मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूमहमारे दर्द-ए-जिगर का भी किसको क्या मालूमकरेगा दर्द से आज़ाद या जिगर छलनीतुम्हारे तीर-ए-नज़र की किसे रज़ा मालूमन जाने कैसे थमेगा ये सिलसिला ग़म काकोई बताये किसी को हो गर ज़रा मालूमझुकाएं कौन से दर पर ज़बीं ये दीवानेवफ़ा का कौन सा घर है किसी को क्या मालूमक़फ़स में क़ैद परिंदे की बेबसी देखोन हश्र-ए-क़ैद पता है न है ख़ता मालूमडरेगा वो जो सतायेगा बेगुनाहों कोहमें ख़ुदा का पता है न कुफ़्र का मालूमफ़ज़ा में हमको महब्बत लुटाना आता हैकिसी दुआ का…See More
Jul 29
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
"सुधार- न जाने आज हुआ क्या है इस दिवाने को जला रहा है बदन दर्द-ए-दिल मिटाने को तबाहियों में नज़ाकत से मुस्कुराने को शराब चाहिए थोड़ी सी ग़म भुलाने को हम अपनी जान की बाजी लगा के खेलेंगे हमारे पास अभी कुछ नहीं गँवाने को वही रवाज़ वही जातियों की…"
Jul 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
"सहृदय शुक्रिया आ धामी सर ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का"
Jul 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
"सादर प्रणाम 🙏सहृदय शुक्रिया आ गुरु जी इस ज़र्रा नवाज़ी का ग़ज़ल पर अपने कीमती समय से वक़्त निकाल कर इस्लाह करने के लिए बहुत बहुत आभार गुरु जी ग़ज़ल न लिख पाने का कारण University में आज एक सेमिनार था व पिछले कई दिनों से Research Thesis तैयार करने व…"
Jul 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
"सहृदय शुक्रिया आ Euphonic Amit जी इस ज़र्रा नवाज़ी का ग़ज़ल पर अच्छी इस्लाह करने के लिए अलग से शुक्रिया"
Jul 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
"सहृदय शुक्रिया आ मिथिलेश जी ज़र्रा नवाज़ी का और ग़ज़ल अच्छे से पढ़ने के लिए आपकी इस्लाह पसंद आई बाक़ी गुणीजनों की रॉय भी देखते हैं"
Jul 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
"१२१२ ११२२ १२१२ २२ न जाने क्या हुआ है आज इस दीवाने को जला रहा है बदन दर्द-ए-दिल मिटाने को तबाहियों में नज़ाकत से मुस्कुराने को शराब चाहिए थोड़ी सी ग़म भुलाने को हम अपनी जान की बाजी लगा के खेलेंगे हमारे पास अभी कुछ नहीं गँवाने को वही रिवाज़ वही…"
Jul 27

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Male
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Uttar Pradesh
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CHANDAUSI
Profession
Poet, Lawer, Engineer
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दोहे : बैठ एक की आस में, कब तक रहें उदास

बैठ एक की आस में, कब तक रहें उदास

चल दिल चल के ढूँढ लें, दूजा और निवास

ये जग है मायानगर, कौन करे विश्वास

इस झूठे बाजार में, टूटी सब की आस

पल भर में मेला लगे, पल भर में वनवास

अभी पराया हो गया, अभी हुआ जो खास

रहते थे हम ठाठ से, सब था अपने पास

छोड़ जिसे, आवारगी, हमको आई रास

श्वेत रंग की प्रीत का, उनको क्या एहसास

रंगों के शौकीन तो, बदलें रोज लिबास

(मौलिक व अप्रकाशित) 

Posted on August 6, 2024 at 12:00am — 2 Comments

ग़ज़ल : मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम

१२१२ ११२२ १२१२ २२

मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम

हमारे दर्द-ए-जिगर का भी किसको क्या मालूम

करेगा दर्द से आज़ाद या जिगर छलनी

तुम्हारे तीर-ए-नज़र की किसे रज़ा मालूम

न जाने कैसे थमेगा ये सिलसिला ग़म का

कोई बताये किसी को हो गर ज़रा मालूम

झुकाएं कौन से दर पर ज़बीं ये दीवाने

वफ़ा का कौन सा घर है किसी को क्या मालूम

क़फ़स में क़ैद परिंदे की बेबसी देखो

न हश्र-ए-क़ैद पता है न है ख़ता…

Continue

Posted on July 14, 2024 at 11:30am — 10 Comments

ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी

२१२२ २१२२

ग़मज़दा आँखों का पानी

बोलता है बे-ज़बानी

मार ही डालेगी हमको

आज उनकी सरगिरानी

आपकी हर बात वाजिब

और हमारी लंतरानी

जाने किसकी बद्दुआ है

वक़्त-ए-गर्दिश जाँ-सितानी

दर्द-ओ-ग़म रास आ रहे हैं

बुझ रही है ज़िंदगानी

कौन जाने कब कहाँ से

आये मर्ग-ए-ना-गहानी

ले के फागुन आ गया फिर

फ़स्ल-ए-गुल की छेड़खानी

कैसे मैं समझाऊँ ख़ुद…

Continue

Posted on April 1, 2024 at 5:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल: सही सही बता है क्या

1212 1212

सही सही बता है क्या

भला है क्या बुरा है क्या

न इश्क़ है न चारागर

तो दर्द की दवा है क्या

लहू सा लाल लाल है

ये आँख में जमा है क्या

बुझे बुझे से लोग हैं

ये ज़िंदगी सज़ा है क्या

अजीब कशमकश सी है

ये दिल तुझे हुआ है क्या

सुकून है न चैन है

यूँ जीने में मज़ा है क्या

जो खाक़ हो रहे हैं हम

किसी कि बद्दुआ है क्या

जला दिया तो…

Continue

Posted on March 6, 2024 at 7:00pm

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At 10:44am on April 9, 2024, Erica Woodward said…

I need to have a word privately, please get back to me on ( mrs.ericaw1@gmail.com) Thanks.

At 1:08pm on January 16, 2021, लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' said…

आ. भाई आज़ी तमाम जी, सादर अभिवादन । मेरी गजलें आपको अच्छी लगीं यह हर्ष का विषय है । आपके इस स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद।

मंच पर अपनी रचनाओं का आनन्द लेने का अवसर प्रदान करें और अन्य रचनाकारों का भी अपनी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करते रहिए ।

At 8:15pm on January 12, 2021, Samar kabeer said…

जनाब आज़ी साहिब,तरही मुशाइर: में शामिल सभी ग़ज़लों पर लाइव ही तफ़सील से गुफ़्तगू होती है, शिर्कत फ़रमाएँ, और कोई उलझन हो तो मुझसे 09753845522 पर बात कर सकते हैं ।

 
 
 

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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . असली - नकली
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
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