परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 121वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब शकील बदायूंनी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"दिन तो होता है मगर रात नहीं होती है "
2122 1122 1122 22
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन/फइलुन
(बह्र: रमल मुसम्मन मख्बून मक्तुअ )
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 जुलाई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 जुलाई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
Tags:
Replies are closed for this discussion.
आद0 समर कबीर साहिब सादर प्रणाम। आपकी ग़ज़ल पर उपस्थिति एक पुरस्कार है। बहुत बहुत शुक्रियः आपका। सादर
जनाब सुरेन्द्र नाथ साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, मुबारक बाद कुबूल फरमाएं l
आद0 तस्दीक अहमद खान जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति का बहुत बहुत शुक्रियः। सादर
आ. भाई सुरेन्द्र नाथ जी, सादर अभिवादन । उत्तम गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई क़ुबूल करें
आदरणीय सुरेंद्र नाथ जी, अच्छी ग़ज़ल हेतु बधाई स्वीकार करें।
उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी ....
जनाब सुरेन्द्रनाथ सिंह कुशछत्रप साहब बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई |
ग़ज़ल
कौन कहता है मुलाक़ात नहीं होती है l
उनसे मिलते हैं मगर बात नहीं होती है l
कह रहे हैं वो दरख्तों पे चला कर आरी
अर्ज़ पर पहले सी बरसात नहीं होती है l
तुम ही गीबत करो पीछे से किसी की यारो
मुझसे लेकिन ये खुराफात नहीं होती है l
उनके आ जाने से होती है करामत शब में
दिन तो होता है मगर रात नहीं होती है l
गुफ़्तगू होती है हर रोज़ ही उनसे लेकिन
मेरी उलफत की शुरुआत नहीं होती है l
यक बयक रुख से हवाओं ने हटाया पर्दा
रोज़ तो ऐसी करामात नहीं होती है l
इश्क़ की बाज़ी तो सब लोग लगाते हैं मगर
इनमें कुछ वो हैं जिन्हें मात नहीं होती है l
ख़ुश नसीबों को ही मिलती है वफा की जन्नत
सब की क़िस्मत में ये सौगात नहीं होती है l
वो तसव्वुर में न रह रह के सताऐं आ कर
ऐसी तस्दीक कोई रात नहीं होती है l
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
भाई तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब
आदाब
एक बेहद उम्दा तरही ग़ज़ल के लिए दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ.सादर.
संयोग से हमारी तरही ग़ज़ल का मतला मिलता जुलता दिख रहा है.
जनाब सालिक साहिब, ग़ज़ल पसंद करने और आप की इस हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब, इस उम्दा ग़ज़ल पर आपको हार्दिक बधाई पेश करता हूँ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |