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गठरी
कुछ दिनों के लिए मायके आई कोकिला की बेटी सुहाना ने बराबर ध्यान दिया कि दादी का बात-बात पर सलाह देना,काम मन माफिक ना होने पर झिड़क देना।
अपनी माँ के प्रति इस तरह का दुर्व्यवहार देख आखिर एकदिन माँ से दादी के प्रति नाराजगी जताते हुये पूछ लिया, 'आखिर आप यह सब को सहन करती रहती हो।और साथ में पिताजी भी दादी की हां में हां मिलाते हुये आपकी उतारते रहते हैं। कैसे आप सह लेती हैं...और फिर आपको सब कुछ आता हुआ भी हर बात की सलाह दादी से क्यों लेनी होती हैं। यहां तक कि रोज सुबह के नाश्ता से लेकर रात के खाने तक की।'
बीच में ही सुहाना को शांत करते हुये कोकिला ने हंसते हुये समझाया, 'तो इसमें हर्ज ही क्या हैं, वो हमारे.....!'
'कोई भी खाने की चीज बनानी हो या पूजा-पालाकी ..कैसे बनाई जाती हैं.कितना बनाना हैं ..इस पूजा में और क्या-क्या लगता हैं ...किसको कितना क्या देना हैं? आपकी कोई अपनी अहमियत नहीं। पहनना ओढ़ना घूमना पिताजी के मन का!'
'ठंडे दिमाग से सोचो बेटा, उनसे सलाह लेना तो बहाना होता हैं आपस में बात करने का।दादी को बताते हुये तुमने केवल उनका सख्त लहजा देखा पर उसके पीछे उनके चेहरे के पीछे छिपी खुशी को नहीं देखा।उनको सुकून भरा एहसास होता हैं कि झुर्रीदार चेहरे के अनुभवों की आज भी पहले जितनी जरूरत हैं। '
अपनी ओर विस्फरित नेत्रों से सुहाना को देखते हुये कोकिला ने उसका हाथ पकड़कर बाहर बगीचे में लगे बरगद के पेड़ की तरह इशारा करते हुये कहा, 'बेटा हमारे बुजुर्ग इस वृक्ष की तरह बूढ़े जरूर हो गये हैं, कही अवहेलना से शुष्कता ना आ जाए इसलिए उनको अपनत्व से...स्नेहमयी बातों से सिंचित करना चाहिये।उनको गठरी खोलने में अपरंपार खुशी के साथ गर्व होता हैं अपनी गठरी पर...समझी!'
धैर्यता से बातें सुनती सुहाना बचपन की गलियों को याद करने लगी कि कैसे दादी-बाबा के कहानी-किस्सों में सीखें छुपी होती थी।कैसे लड़ाई-झगड़े चुटकियों में सुलझा देते थे।
विचारमग्न सुहाना सिर पर कोकिला की प्यार से मारी थपकी से चेती।सुहाना ने अपनी गलती मानते हुये कहा, 'हां मां, किसी की भी बातों में आकर अपनी गूगल दादी से ज्ञान लेने में कभी कोताही नही बरतना।
स्वरचित व अप्रकाशित हैं।
बबीता गुप्ता
बुजुर्गों के अनुभव की बात ही अलग होती है, बढ़िया रचना विषय पर. बहुत बहुत बधाई आ बबिता गुप्ता जी
बहुत-बहुत धन्यवाद, आदरणीय सरजी।
आदरणीया बबिता जी, नमस्कार।
बहुत ही ह्रदयस्पर्शी लघुकथा, हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
बहुत-बहुत धन्यवाद, आदरणीया दी।
बहुत खूब कही गूगल दादी।
आ. बबीता बहन अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई।
सादर नमस्कार। इस महत्वपूर्ण गोष्ठी का बढ़िया रचना से आग़ाज़ करने.हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता गुप्ता जी। कहा भी गया है कि 'बोलो कम, सुनो ज़्यादा'। अपने अनुभवों के आधार पर बिन माँगे सलाह देने वाले दोस्त और परिवारजन और अनुभव पर आधारित बुज़ुर्गों की टोका-टाकी, भाषण, मार्गदर्शन... सब कुछ हमारे लिए महत्वपूर्ण होते हैं। उनकी बातों पर एक बार शांत मन से चिंतन-मनन ज़रूर करना चाहिए।
आज की पीढ़ी को सबक़ सिखाती बहुत बढ़िया रचना।
//आपकी उतारते रहते हैं// ...इन शब्दों की.जगह //आपको जलील(अपमानित) करते रहते हैं// ...या ऐसा ही कुछ और लिखना साहित्य में बेहतर रहेगा। हालांकि यह एक आम अभिव्यक्ति है संवादों में।
दूसरी बात यह कि रचना का अंतिम भाग बोधकथा जैसा हो गया है। उस भाग को हटा कर लघुकथा विधा अनुसार उसका सारांश इशारों में कम शब्दों में कहा जा सकता है.मेरे विचार से।
शीर्षक अच्छा है। लेकिन 'गूगल दादी' या 'घर का गूगल' जैसे शीर्षक भी अच्छे लगते। सादर।
भरता घड़ा
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कौवों की पंचायत में बगुलों द्वारा पक्षी -समूह पर किए जा रहे अत्याचार, उनके हकों की लूट - खसोट पर आपत्ति जाहिर की गई। फिर धरने -प्रदर्शन शुरू हुए। पक्षियों का कारवां बन चला।
अंततोगत्वा, तय हुआ कि पक्षी - समुदाय के राजा का फिर से चुनाव हो।चुनाव हुआ।कौवा चुन लिया गया।उसने अपनी शासन - मंडली बनाई। राज काज शुरू हुआ।पक्षियों द्वारा एकत्र दाने ज्यादातर जलसे और धूम धड़ाके में खर्च होने लगे। जीने की जरूरतें मुंह बाये खड़ी रहतीं। चहुं ओर हाय तौबा मच गई।
'राजा क्या कर रहा है?खाने पीने के लाले पड़े हैं।बच्चे बीमार हैं।दवाइयां नहीं मिलती।हमारे चुग्गे इसने जमा करा लिए हैं।' हर तरफ इस तरह की आवाजें उठतीं।
'पहले तो कम से कम ऐसा नहीं था।' कोई दूसरा फरमाता।
'हां,नहीं था।पर लूट मची थी तब।'। कोई अन्य रोब जमाता।
'और अब?'सवाल उठता।
'अब यह कौवा भूखा है।तब के बगुले बड़े पेटवाले हो चुके थे।' फिरकी उभरती।
'तो यह बार बार कैसे चुन लिया जाता है?'
'इसलिए कि इसके पाप का घड़ा अभी भरा नहीं है।'
'और हमलोग क्या कर रहे हैं?'
' अपनी आक्रोश की लाठी बड़ी कर रहे हैं। आकाश में टंगा घड़ा फोड़ेंगे कैसे?'
'मौलिक व अप्रकाशित '
वाह, बार बार छली जाती है पर गलती भी करती है जनता. बहुत बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर, बहुत बहुत बधाई आ मनन कुमार सिंह जी
लघुकथा आपको पसंद आई,अपने मेरी हौसला आफजाई की;इसके बहुत बहुत धन्यवाद,आदरणीय विनय जी।
प्रदत विषयान्तर्गत बेहतरीन रचना।बहुत-बहुत बधाई, आदरणीय सरजी।
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