परम आत्मीय स्वजन
सादर प्रणाम,
हालिया समाप्त तरही मुशायरे का संकलन हाज़िर है| बहरे हज़ज़ मुसम्मन सालिम पर दिया गया मिसरा इतना आसान नहीं था जितना देखने में लग रहा था| बह्र आसान होने के बावजूद कवाफी की बंदिश और रदीफ़ इस ज़मीन को पथरीली बना रहे थे, परन्तु आप सबका जोशो खरोश इन सब पर भारी पडा| इसलिए सभी सदस्य बधाई के पात्र हैं| मैं इसे निरंतर समृद्ध होते हुए इस मंच की सफलता के रूप में भी देखता हूँ| कई सदस्य पिछले कई मुशायरों से शिरकत करते आ रहे हैं तो कई नए सदस्य भी जुड़े हैं, कुछ लोगों ने पहली बार ग़ज़ल कहने का प्रयास किया है| नए लोगों की सभी गलतियाँ माफ़ हैं पर पुराने सदस्य जो एक ही गलती बार बार हर मुशायरे में कर रहे हैं वह विशेष ध्यान दें, एक ही तरह की गलती बार बार दुहराने का अर्थ यही है की आप अपने कलाम के प्रति संजीदा नहीं है|
मिसरों में दो रंग भरे गए हैं| लाल अर्थात बेबह्र और नीला अर्थात ऐब वाले मिसरे| ऐब ए तानाफुर को नज़रंदाज़ किया गया है|
Saurabh Pandey
बहन-बेटी किसी की थी महज़ इक नाम से पहले
बहुत संगीन हैं हालात जाने कब यहाँ क्या हो
यही होता रहा है, योजनाएँ फैल जाती हैं
उसे मालूम है मस्का लगाया खूब जाता है--
सियासी आँकड़ों के अंक भी ज़ादू सरीखे हैं--
सुनोगे तो सुनायेगी, मकां की सीलती हर ईंट
ज़माने से कहे अपने गुनाहों पर अशोत्थामा-- **************************** CHANDRA SHEKHAR PANDEY
चलो मां बाप के चरणों को चूमो धाम से पहले, तुझे जिसने उतारा है यहां देकर लहू अपना, हथेली पर गिनो तुम बाल अपने लो अभी पागल,
लगा है आज सोफा साहिबानों के जो दफ्तर में,
अभी इक ‘बार’ छोटा सा मुझे घर में बनाना है,
तुम्हें शागिर्द अपना मैं बना लूं इल्म दे दूं तो, **************************** amit kumar dubey ansh
नहीं करता किसी से बात अपने काम से पहले
उन्हें फुर्सत नहीं है काम से वो रोज़ कहते हैं
मेरी तन्हाई मुझको बारहा अपना बनाती है
नहीं आसां यहाँ कुछ भी समझने की ज़रूरत है
दरिंदों शर्म तो आती नही तुमको न गैरत है **************************** sanju singh
वही बस याद आता है हमेशा ज़ाम से पहले
ज़माने में कभी मैं जब किसी को याद आऊंगा
दिये की लौ बहुत ही तेज़ थी बुझने से पहले ही ज़माना वो भी था जब मैं भी नज़रंदाज़ होता था
वो तेरा नाम लिख कर के हथेली में छिपा लेना
वो पागल हो चुका है खौफ़ वाला इश्क़ पाले जो ***************************** कल्पना रामानी
सदा सद्भाव हों मन में, जहाँ हर काम से पहले
दुखों के पथ पे चलकर ही, सुखों का द्वार है खुलता,
पसीना बिन बहाए तो, नहीं हासिल चबेना भी।
अगन में द्वेष की जलते, निपट मन मूढ़ जो इंसान,
कदम चूमेंगी खुद मंज़िल, तुम्हारे मन-मुदित होकर,
कभी भी मित्र या मेहमाँ, लुभाते वे नहीं मन को,
पुराणों से सुना हमने, बहाना प्रेम का था वो,
मेरी तन्हाइयों की जब, कभी होगी कहीं चर्चा,
महककर होगा मन चन्दन, यही है ‘कल्पना’ कहती, ***************************** Shijju Shakoor
मेरी उम्मीद की ढलती हुई इस शाम से पहले
लुटी इंसानियत इस दह्रे-इंसां में कहीं फँसकर
भटकती है तमन्ना दर-ब-दर मेरी फकीराना
रुखे-शब से छलकता ख़्वाब पैहम नूर सा दिलकश
वफा की राह में अक्सर हुआ है ये न जाने क्यूं
लिखूंगा जब कभी रूदादे-गम “तनहा” ये मुमकिन है ***************************** arun kumar nigam
इजाजत तो जरा ले लूँ छलकते जाम से पहले
अगर बिखरी दिखें जुल्फें परेशां तुम समझती हो
जो तुमसे रूबरू मिलना हुआ तो जिस्म यूँ काँपा
तुम्हारे बाप ने पीटा लिये मरहम चली आई
हटो जाओ भरी इस भीड़ में मत नाम पूछो तुम ***************************** राज लाली शर्मा (बटाला )
हथेली से मिटादो नाम तुम इलज़ाम से पहले !
हमारी प्यास भी हमसे दगा करती है अब साकी,
गरीबों से पता करना गरीबी किस को कहते हैं !
सियासत ने बिठाया है हमारे प्यार पर पहरा ! पुकारें बेटियाँ किसको,कोई परेशान नहीं होता ,
घरोंदो को वोह लौटे हैं तो दाने चोंज में लेकर ,
तुम्हारा मन ही मन्दिर है खुदा खुद उस में है 'लाली' , ***************************** गिरिराज भंडारी
तुम्हारी याद क्या आई खुदा के नाम से पहले
इबादत मयकशी में भी करूंगा इस तरह यारों
मुलाकातें अगर हों तो कभी मै हाल भी कह लूँ
जमाने मे खुली थी बात क्या भूले हुये हो तुम किसी आवाज़ की उम्मीद दिल में रख नही प्यारे **************************** Tilak Raj Kapoor
दिखे लाचार के ही काम अपने काम से पहले
मुझे कब खौ़फ़ है रुस्वाई का लेकिन यही डर है
खुदा ऐसा, खुदा वैसा, जिसे देखो बताता है
मुहब्बत में ज़रुरी है यही दीवानगी लोगों
मिटा कर बस्तियॉं अब सोचना क्या राज किस पर हो
जरा सी बात पर क्यूँ आस्मॉं सर पर उठाते हैं
ये माना नब्ज़ वोटर की तुम्हें मालूम है, लेकिन ***************************** Jitender Kumar Jeet
ढलेगी रात अब हर रोज़ जामे शाम से पहले,
तेरा दीदार बस इक बार हो तो चाँद हम भूलें,
खता की थी कोई या भूल थी जो हो गई शायद, गुनाह लाखों किये मैंने मगर सारे तेरे सदके,
अगर नाराज़ हो जाओ कभी भी “जीत” से जाना, ***************************** Sarita Bhatia
मुझे अब माफ़ कर देना खुदा अंजाम से पहले
बनो सीता अगर तो साथ तुम देना हमेशा ही
तुम्हें राधा सा बनना श्याम की इस सूने जीवन में
अगर दुख सुख में यूँहीं साथ तुम मेरा निभाओगी बजी जो मुरलिया मेरी धुनों से प्यार निकलेगा
मिला जो साथ तेरा जिंदगी भर के लिए मुझको ***************************** shalini rastogi
तेरे दर पर झुका था मैं, किसी भी धाम से पहले .
नया रस्ता, नई चाहें , नई मंजिल, सफ़र बाक़ी.
कहाँ ये होश की बातें, असर तेरा कहाँ वाइज़. तेरी फितरत से वाकिफ़ हूँ, पता है क्या लिखोगे तुम,
जुड़ा है नाम तेरा यूँ मेरी नाकामियों से कुछ
दिलों में बलबले, तूफ़ान सीने में हजारों हैं **************************** अरुन शर्मा 'अनन्त'
अयोध्या में न था संभव जहाँ कुछ राम से पहले,
बड़े ही प्रेम से श्री राम जी लक्ष्मण से कहते हैं,
समर्पित गोपियों ने कर दिया जीवन मुरारी को, हमारा प्रेम होता जो कँहैया और राधा सा,
भले लक्ष्मी नारायण कहता है संसार हे राधा, ****************************** Dr Ashutosh Mishra
जरा तबियत बहल जाए हमारी जाम से पहले
कभी चर्चा नहीं करना हँसी महफ़िल की घर पर तुम
खुदा का वास्ता तुमको कभी भी जी चुराना मत हवा का देख लेते रुख सफीने गर चलाने थे
ठहर जाओ जरा पल भर करो मत सौदे में जल्दी
तुम्हारे साथ ही गुजरी हमारी ज़िंदगी सारी हज़ारों लोग थे आशिक हसी गुल के जमाने से
हसी मंजर, हसी महफ़िल, हसी रुत ओ जवा दिल की
अगर कान्हा, सखी मैं हूँ यकीनन तुम मेरी राधा ********************************************** योगराज प्रभाकर
कभी आगाज़ से पहले, कभी अंजाम से पहले
यही दस्तूर है जो भी मिला हुक्काम से पहले
रियासत के किसी भी तुगलकी अहकाम से पहले
रचे है साजिशें गहरी, सियासत बाज़ अंधियारा
तुझे सरकार कहने में, मुझे भी फख्र हो जाता
जहाँ तमगाफरोशों की, तिजारत खूब चलती है
है मज़हब अम्न गर अपना, तो वाकिफ जारिहत से भी
अमीरे शह्र का नेजा हुआ जब खून का प्यासा
तेरी सूरत हुई ऐसी, लगे मनहूस ओसामा *********************************************** MAHIMA SHREE
जरा सी बात पर नाराज हो कर काम से पहले
सुनो जैसे है आता नाम राधा श्याम से पहले
जमाना जब नहीं देता वफ़ा मेरी सिलाओं का
बहुत कुछ बोलती हो तुम जरा ये मान लो कहना
ये ख़ामोशी किसी तूफाँ से पहले का है अंदेशा ********************************************** AVINASH S BAGDE
मिलेंगे चार नेता गण हमेशा शाम से पहले , |
SANDEEP KUMAR PATEL
तसल्ली जीत की हो हार के कुहराम से पहले
अगर पहचान लो खुद में छुपे इंसान को तुम तो
तरक्की की पतंगों से फसा के आसमाँ खींचा
कहो अच्छा बुरा बेशक मगर इतना रखो तुम याद
हमारे वीर हैं मुस्तैद सरहद में तो डरना क्या
छिड़कते चार बूँदें हैं खुदा को याद करते हैं
जलेंगे मर मिटेंगे रौशनी पर यूँ पतंगे आज ************************************ Sanjay Mishra 'Habib'
उफ़ुक़ के पार उतर पाये न सूरज शाम से पहले।
मेरे पर काटने वाले ज़मीं को जान पाया मैं,
मुझे मंजूर सब तोहमत मुहब्बत में, मगर डर है,
मुझे कब बिजलियों का खौफ सीना आसमां मेरा,
चुका कर उम्र, सीधी बात थी जो आज समझा हूँ,
हुये पत्थर भी फूलों से ‘हबीब’ उसको बुलाते हैं, *********************************** वीनस केसरी
हमारी दोस्ती के लाज़िमी अंजाम से पहले
मुआफ़ी मांग लूंगा मैं किसी अंजाम से पहले मेरे दिल में जो है कह लूँ ज़रा आराम से पहले
किसी हिदुत्व से पहले किसी इस्लाम से पहले हजारों रंग आ कर इस जगह पर ख़्वाब बुनते थे
नज़ारे कैसे दिखलाये, ज़रा सी भूल ने मुझको
निभाया है नफ़ासत को, रवायत को निभाएँ आप
न जाने क्या हुआ, इक शाम यूँ ही खुद से मिल बैठा
सजाए यूँ फिरोगे नाम 'वीनस' का लबों पर तो *************************** vandana
हुआ सम्मान नारी का यहाँ नर नाम से पहले समेटा है मेरा अस्तित्व धारोंधार जब तुमने
खिंची रेखा कोई जब भी बँटे आँगन दुआरे तो
ग़ज़ल का जिक्र जब होगा कशिश की बात गर होगी
बुझा ना आस का दीपक यकीनन भोर आएगी
अगर ममता ने बाँधी है परों से डोर कुछ पक्की
विरासत में मिली खुशबू खिले हैं रंग बहुतेरे ******************************* ram shiromani pathak
अज़ब है खेल उसका भी किसी परिणाम से पहले!!
बड़ा शातिर खिलाड़ी है वो हँसके क़त्ल करता है! यूँ आपस में लड़ें दिन रात बेमतलब की बातों से !
घुसा है डर न जाने क्यूँ दिखे हर बाप में मुझको !
कहेगा जब ज़माना वो बड़ा ही नेक बन्दा था . ************************** रमेश कुमार चौहान
मेरे माता पिता ही तीर्थ हैं हर धाम से पहले उठा मै भाल चिरता चला हर घूप जीवन का,
झुकाया सिर कहां मैने किही भी धूप से थक कर,
सुना है पर कहीं देखा नही भगवान इस जग में
पिताजी कहते मुझसे पुत्र तुम अच्छे से करना काम ***************************** Kewal Prasad
जमाने ने दिये हैं घाव, जो अंजाम से पहले।
शराफत और खुददारी, यहां बेचैन रहती है।
हजारों लोग रोते हैं, जरा सी बात नफरत पर,
कभी नाला समन्दर औ, कभी इन्सा सिकन्दर है।
वजीफा भी करें क्या हम, कहानी संगणक से है।
इरादे भी कहां पक्के, विचारों में अड़ंगे हैं।
सियासत में मरी महिला, बहाकर खून का कतरा।
सभी तो जी रहे हैं अब, बिना उददेश्य के 'सत्यम।
सफर जितना भी लम्बा हो, वतन पैगाम आयेगा। ***************************** ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi)
मैं बिस्मिल्लाह पढ़ लेता हूँ हर इक काम से पहले l
हुए अरमान पूरे सब दिले नाक़ाम से पहले l
मुझे मालूम है बेचैन होगी मेरी ख़ातिर माँ l
सभी ने डाल दी मिट्टी ख़ुदा का नाम ले ले कर l
उठेंगी उंगलियाँ मुझ पर तो इतना सोंच लेना तुम l
हमारा फ़र्ज़ है बढ़ते रहें बढ़ते रहें पैहम l
मुहब्बत मे दिए हैं तूने मुझको ग़म बहुत 'गुलशन' l ****************************** Safat Khairabadi
न कोई नाम हो लब पर ख़ुदा के नाम से पहले
यही तो पूछता हर शख्स आसाराम से पहले
वतन के उन शहीदों में लिखा है नाम भी उसका
उठा कर हाथ करता हूँ दुआ मैं ऐ ख़ुदा तुझसे
जिधर भी देखिए अब गर्म है बाज़ार रिश्वत का
कटेंगी किस तरह अपनी शबे तनहाईयाँ आख़िर
लिखी जाएगी जब भी दास्तां मेरी मुहब्बत की
शफ़ाअत दूसरों की अएबज़ोई बाद में करना ******************************** मोहन बेगोवाल
कभी आते नहींअपने यहाँ घर शाम से पहले
अभी मौस्म है जख्मों का अभी खामोश ही रहना , न साहिबा का बनू मिरजा, बनु तो हीर का राँझा,
यहाँ कैसे रहेगा तेरे बिन ये दिल बता देना, करे कोई कैसे तेरे यहाँ संसार की बातें,
**************************** D.K.Nagaich
बहुत मसरूर था जो गर्दिश-ए-अय्याम से पहले,
उसे तुम क्या बताओगे, उसे मालूम है सब कुछ,
उठेंगी उँगलियाँ मेरी तरफ़ जब भी ज़माने की,
रवायत मैकशी की मुझ को वाइज़ ने सिखाई है,
मिरा जो हाल है सो है, सुकूं थोड़ा तो आएगा,
उसे इस बात का बिल्कुल नहीं था इल्म भी यारों,
बहुत दिल खोल कर मिलता रहा हर शख्स से रोशन, *************************** कवि - राज बुन्दॆली
नहीं जानॆं यहाँ कॊई, कभी अंज़ाम सॆ पहलॆ !!
बुजुर्गॊं की नसीहत है, हमॆशा नॆकियाँ करना,
कदम चूमॊ करॊ सॆवा,जरा उनकी,दुआ लॆ लॊ,
ज़मानॆ नॆं किसी कॊ भी,नहीं छॊड़ा हक़ीक़त है, हमॆशा चॊट खाई है,उसी नॆ फल दिया जिसनॆ,
जरा खुद कॆ गिरॆबां मॆं,कभी झांकॊ भलॆ लॊगॊ,
कहा माँ नॆं ख़ुदा तॆरी, गनीमत सॆ भली-खासी, यहाँ महफ़ूज़ हैं अब भी,सती सीता कहॆं कैसॆ,
खुदा की है इबादत यॆ,उसी का है करम जानॊ, लतीफ़ॊं कॊ बिठातॆ हॊ,गज़ल कॆ"राज"आसन पॆ, **************************** आशीष नैथानी 'सलिल' मिलूँगा गाँव के चौराह पर कल शाम से पहले कई लोगों की आँखों में खटकती है मुहब्बत ये
यहाँ से दूर जाकर इक नई दुनिया बनानी है
किया कीजे न शक इतना जबीं की इन लकीरों पर
नफ़ा-नुकसान कुछ भी हो मेरे इस दाँव में लेकिन *************************** बृजेश नीरज
तके है राह ये किसकी नज़र हर शाम से पहले
सितम हर एक सह लेंगे मगर तुम याद ये रखना
बुझाने प्यास को अपनी परिंदा इक भटकता है
नज़र में छवि तुम्हारी है तुम्हारा ख्याल हरदम है
किसे अपना कहें किसको पराया ही समझ लें हम **************************** rajesh kumari
चले आओ हमारे पास ढलती शाम से पहले
नहीं ये वक़्त आएगा दुबारा फिर यही सोचूं
जफ़ा करके समझते हो तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा
हुनर को बाद में जिनके दिए जाते यहाँ मैडल
जहां जिस डाल पर बैठो उसी को काटना चाहो
निवाला आज अपनों ने तेरे खाया नहीं खाया
बिना कोशिश भला मिलता कहाँ कुछ क्या समझते हो
यहाँ कीमत किसानो की जरा आकर कभी देखो
गवाही ‘राज’ अब कैसे भला दे बे गुनाही की ******************************
Ajeet Sharma 'Aakash'
नतीज़ा सोच लेना चाहिए हर काम से पहले .
सितम ढायेंगे काली रात के लम्हे न जाने क्या
है महिला वैद्य से क्या काम असली, जेल में इसको
जहां भर में ये भारतवर्ष की नारी का रुतबा है
लबों पर किसके कितनी प्यास बाक़ी रह गयी है अब
शरारत पर है आमादा, ये दिल हरगिज़ न मानेगा
ज़माना लाख समझाये, नहीं सुधरेंगे लेकिन हम
मोहब्बत की बला रास आये, या ना आये अब मुझको
करो बदनाम मुझको ख़ूब पर इतना समझ लेना
बहाना चल न पायेगा कोई 'आकाश' हमसे अब ********************************************* shashi purwar
जतन करना पड़ेगा आज ,फिर हर काम से पहले
कभी तो दिन भी बदलेंगे ,मिलेंगी सुख भरी रातें
बिना मांगे नहीं मिलती ,कभी कोई ख़ुशी पल में
बढ़ो फिर आज जीवन में ,मुझे मत याद करना तुम
वफ़ा मैंने निभाई है ,तुम्हारे साथ हर पल ,पर
|
किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो अथवा कहीं मिसरों को चिन्हित करने में गलती हुई हो तो अविलम्ब सूचित करें|
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इंतज़ार की घड़िया समाप्त !
इस मंच का एक अत्यंत क्लिष्ट लेकिन उतना ही प्रतीक्षित पोस्ट है यह ! यह पोस्ट एक तरह से मानक है कि सभी प्रतिभागी ग़ज़लकार देख लें कि उनके प्रयास की क्या प्रगति है.. !
भाई राणाजी, आपको इस निष्ठा के लिए हृदय से बधाई.
शुभ-शुभ
आदरणीय राणा जी, तरही मुशायरा समापन पश्चात् "चिन्हित संकलन" की उसी तरह से प्रतीक्षा रहती है जैसे किसी परीक्षा या प्रतियोगिता के बाद परिणाम की प्रतीक्षा होती है. इस श्रम-साध्य कार्य हेतु हृदय से आभार.............
एक से बढ़कर एक कलाम पेश किये गए हैं ..वाह ... सभी शायरों को दिली मुबारकबाद और आपको भी बहुत बधाई और शुभकामनायें आदरणीय श्री राणा जी मुशायरों के सफल सञ्चालन के लिए !
आदरणीय राणा प्रताप जी मुशायरे की ग़ज़लों के संकलन को इस पोस्ट में देखना ऐसा लगता है जैसे किसी परीक्षा का नतीज़ा नोटिस बोर्ड पर देख रहे हों ,आपने इस श्रम साध्य काम को बाखूबी अंजाम दिया है ,जिसके कारण जो ग़ज़लें छूट गई थी उन्हें अब पढने को मिल रहा है ,आपको बहुत बहुत बधाई एवं हार्दिक आभार
तरही मुशायरा में प्रस्तुत गज़लों की "चूकी" हुई मिसरों को चिन्हित कर प्रस्तुत किया जितना कठिन कार्य है, मुझ जैसे विद्यार्थियों के लिए उतना ही कीमती भी... इनके बीच से गुजरते हुये कितनी ही बातें स्वतः स्पष्ट हो जाती हैं...
आदरणीय राणा प्रताप जी सफलतम आयोजन तथा बहुमूल्य संकलन हेतु सादर बधाई एवं आभार स्वीकारें
आदरणीय मंच संचालक सर
आपके इस श्रम साध्य कार्य को नमन करते हुए पहले तो मैं इस बात के लिए सभी से क्षमा प्रार्थी हूँ कि आयोजन के दौरान व्यस्तता के कारण सक्रिय रूप से भाग नहीं ले पायी
अब सबसे पहले अपनी गलती जो समझ आई उसके बारे में .....
"समेटा है मेरा अस्तित्व धारोंधार जब तुमने" ( तकाबुल-ए-रदीफैन दोष)
इसे यदि यूँ किया जाए -
समेटा है मेरा अस्तित्व धारोंधार तुमने जब
तो क्या यह दोषमुक्त होगी या अन्य और भी गलती है ?
और दूसरे शेर में ग़लती शायद यूँ दूर हो सकेगी
बुझा ना आस का दीपक यकीनन भोर आएगी
जला तू आस का दीपक यकीनन भोर आएगी
कृपया मार्गदर्शन कीजियेगा बहुत बहुत आभार सहित
दोनों मिसरे आपने बखूबी दुरुस्त कर लिए हैं| दूसरे मिसरे में अगर बुझा लफ्ज़ ही इस्तेमाल करना चाहें तो ना की जगह मत इस्तेमाल करके देखिये|
सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय राणा सर आपके मशविरे के लिए
वाह भाई जी सुन्दर संकलन के लिए बधाई स्वीकारें ,,,,,
आदरणीय राणा सर जी , चिन्हित संकलन को शीध्र उपलब्ध कराने के लिये आपका बहुत बहुत आभार !!!
इस बार बहुत सी ग़ज़ल छूट गयी थीं, अब मिल गयीं। धन्यवाद।
बहुत उम्दा..उम्दा संग्रह, कठिन कार्य को सफलतापूर्वक संपादित करने हेतु राणा जी को मेरी तरफ से कोटिश: बधाई....नमन
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