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विश्व के एकमात्र लघुकथा के लाइव महोत्सव पर आपका स्वागत है मित्रवर । आपकी रचना थोड़े और समय की मांग कर रही है। बहरहाल इस प्रयास हेतु आपको शुभकामनाएं । सादर
बच्चे सच्चे व मासूम होते हैं, उनके बाल मन में तरह तरह के सवाल उठते हैं, और जवाब भी मन में गहरी पैठ बना लेते हैं। सुन्दर कथा धीरज झा जी।
आ० धीरज जी, बहुत ही बढ़िया रचना हुई है, सुधीजनों की बात संज्ञान में अवश्य लें| हम सभी की रचनाओं पर ऐसे ही सुधार आ पाता है|
प्रत्युत्तर
‘क्या लेकर आई है? भुनगा सा मसल दूंगा’ - महिमा अपने दो साल के बच्चे की अंगुलि थामे चली जा रही थी और ससुर जी के कहे ये शब्द , आज भी उसके कानों में गरम सीसा बन घुले जा रहे थे ।
मन में घमासान मचा हुआ था । आज फिर एक बार , वो कड़वी यादें चलचित्र की भांति निगाहों में घूमने लगीं थीं।
कैसे गर्भाशय में रसौली होने के कारण, उसे ऑपरेशन कर निकाल देना पड़ा था। बांझपन का दंश व लोगों के तानों ने उसका जीना मुहाल कर रखा था। वहीं घर वालों ने भी सीधे मुंह बात करना बंद कर दिया था। वह अपने आप से ही प्रश्न पूछती ‘ क्या संतान न हो तो नारी , नारी नहीं रहती ? मन विरक्ति से भर गया था व ज़बान पर तो जैसे ताला ही लग गया था।
एक स्त्री का कोमल मन कब तक सहता? विक्षिप्त सी स्थिति हो गई थी उसकी।
तभी पति ने उसकी खुशी की खातिर बच्चा गोद लेने का निर्णय लिया व अपनी साली के घर उत्पन्न दूसरी संतान को उनकी सहमति से, उसकी गोद में डाल दिया। महिमा को तो जैसे नया जीवन ही मिल गया। किन्तु घर वालों के विरोध के चलते घर छोड़ना पड़ा।
आज सुबह ही ससुरजी को पक्षाघात होने की खबर मिली व कोमल हृदया नारी चल दी उन्हें देखने ।
आंखों ही आंखों में उनके समक्ष अनेकों प्रश्न कर डाले पल भर में उसने।
उनकी आखों से बहती अश्रुधारा शायद हर प्रश्न का उत्तर दे रही थी।
“ इसे ही मसलना चाहते थे न आप?” पुत्र को आगे कर फट पड़ी वह ।
उन्होंने कांपते हुए दूसरे हाथ से बालक के सिर पर हाथ फेरा व एक लिफाफा पकड़ाकर सभी प्रश्नों को सदा सदा के लिए विराम दे दिया।
मौलिक व अप्रकाशित
खूब कहा आपने दी _/\_
आदरणीय नीरज जी नारी मन को बहुत ही सुन्दरता से व्यक्त किया है आप ने. इस शानदार व जानदार लघुकथा के लिए मेरी बधाई स्वीकार कीजिएगा. केवल एक सुझाव है. // वसीयत का लिफाफा पकड़ा कर // होता तो ज्यादा स्पष्ट हो जाती .
पुन: एक बार बधाई.
जब इंसान मुसीबत में होता है ,बीमार होता है या मरणावस्था में होता है तब उसका मस्तिष्क अपने व्यवहार की समीक्षा करता है वो अपने गिरेबान में झांकता है तथा अपनी गलतियों को अपनी अवस्था का कारण मानने लगता है जैसे लघु कथा में ससुर को अपनी गलती का आभास हुआ |अच्छी लघु कथा हुई बहुत बहुत बधाई आपको आ० नीरज जी.
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