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ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक 64 में सम्मिलित सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ)

परम आत्मीय स्वजन 64वें तरही मुशायरे का संकलन हाज़िर है| मिसरों को दो रंगों में चिन्हित किया गया है, लाल अर्थात बहर से खारिज मिसरे और हरे अर्थात ऐसे मिसरे जिनमे कोई न कोई ऐब है|

"पाले हुए पंछी के, पर अपने नहीं होते"
221 1222 221 1222
मफ़ऊलु मुफाईलुन मफ़ऊलु मुफाईलुन
(बह्र: बहरे हज़ज़ मुसम्मन अखरब)
रदीफ़ :- अपने नहीं होते
काफिया :- अर (गर, घर, पर, दर आदि)

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मिथिलेश वामनकर

ये काम बदी वाले, गर अपने नहीं होते
खुशियों से भरे नैना, तर अपने नहीं होते

चल तेज मगर थोड़ा, रिश्तों को बचाकर रख
फिर याद तो आती है, पर अपने नहीं होते

बेटा ये किराए की छत अपना ठिकाना है
बिल्डर की दुकानों में, घर अपने नहीं होते

इक बार अगर हम भी सच, झूठ को कह देते
इल्जाम जमाने के, सर अपने नहीं होते

मैं सिर्फ इसी कारण संसद में नहीं जाता
गैरों के मकानों में, दर अपने नहीं होते

इतने से ही दिल खुद को, इस बार तसल्ली दो
क्यों पास खिसक आते, गर अपने नहीं होते

रिश्तों में दरारों से, हालात बदलते हैं
वो साथ तो होते हैं, पर अपने नहीं होते

बेख़ौफ़ उड़ानों का, मत इल्म सिखाओ तुम
"पाले हुए पंछी के, पर अपने नहीं होते"

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शिज्जु "शकूर"


इक मौन ही रहता है, गर अपने नहीं होते
घर होते हैं लेकिन वो, घर अपने नहीं होते

तब और पे हमले की, परवाह नहीं होती
तलवार की ज़द में जब, सर अपने नहीं होते

जो आड़ में औरों के, होते हैं छुपे अक्सर
उनके कभी दीवारो- दर अपने नहीं होते

तासीरे मुहब्बत है, उश्शाक़ के दिल में जो
डर दिखते हैं उनके वो, डर अपने नहीं होते

है जिसकी बदौलत इस दुनिया में हमारा नाम
हैं ज़र यही अपने वो, ज़र अपने नहीं होते

अफ़्लाक़ नहीं होते, परवाज़ नहीं मिलती
“पाले हुये पंछी के, पर अपने नहीं होते”

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Samar kabeer


दुश्मन की हिमायत में गर अपने नहीं होते
फिर ख़ून से दामन भी तर अपने नहीं होते

सैलाब जो आया तो ,अब सोच रहे हैं हम
ऐ काश किनारे पे घर अपने नहीं होते

दुनिया की ये रंगीनी हम को भी नज़र आती
सीनों में जो पोशीदा डर अपने नहीं होते

एहबाब ने मिल जुल कर साज़िश न रची होती
तो नेज़ों पे दुश्मन के सर अपने नहीं होते

ता उम्र भटकते हैं तक़दीर की वादी में
हम ख़ाना बदोशों के घर अपने नहीं होते

हम और कहें भी क्या,सच बात कही साहिब
"पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते"

ठोकर पे जो रख लेते नफ़रत के अंधेरों को
महरूम उजालों से दर अपने नहीं होते

रिश्ता है अजब उनसे,बस इतना "समर" सुन लो
नज़दीक-ए-रग-ए-जाँ हैं पर अपने नहीं होते

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Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"

वो जायें कहाँ जिनके, घर अपने नहीं होते।
ईटों की इमारत हो, पर अपने नहीं होते।।

सपने वो निगाहों में, मेरे न बुना करते।
जो उनके लिए हम भी, ग़र अपने नहीं होते।।

कुछ राज छिपा लेना, कहना न किसी से भी।
मुस्कान भरे चेहरे, हर अपने नहीं होते।।

सोने से बना पिंजर, भी कैदखाना होता।
पाले हुए पंछी के, पर अपने नहीं होते।।

दरबार के सज़दे में, होना न कलम सुन ले।
बेबाक बने रहना, डर अपने नहीं होते।।

बिकनें न कभी देना, अपना ये हुनर पंकज।
जब मोल लगा हो तब, कर अपने नहीं होते।।

हाँ तौल के ही कहना, हर हर्फ़ जो भी कहना।
जो चल पड़े तो फिर ये, दर अपने नहीं होते।।

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नादिर ख़ान


तामीर तो करते हैं पर अपने नहीं होते
मज़दूर के हिस्से में घर अपने नहीं होते

दिन रात खुले हैं तुम, जब चाहे चले आओ
जो बंद हो जायें वो दर अपने नहीं होते

परवाह नहीं करते इक पल के लिए अपनी
सरहद में सिपाही के सर अपने नहीं होते.

है कौन यहाँ अपना मुश्किल है पता करना
कुछ साथ में रहते हैं पर अपने नहीं होते

चुपचाप खड़े थे हम बस बन के तमाशाई
हम सबसे निपट लेते गर अपने नहीं होते

ये दोस्त को भी दुश्मन पलभर में बना देंगे
होते हैं पराये ये जर अपने नहीं होते

डोरी से बंधे उड़ते फिरते हैं हवाओं में
पाले हुये पंछी के पर अपने नहीं होते

दुश्मन से भी मिलते हैं, हम दिल से ही मिलते हैं
दिल में न जगह हो वो घर अपने नहीं होते

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ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi)


दीवारें नहीं होतीं दर अपने नहीं होते।
हम जैसे फकीरों के घर अपने नहीं होते।।

अल्लाह की राहों मे कुर्बा जो हुए उनके।
तन अपने नहीं होते सर अपने नहीं होते।।

क़ातिल जो कहीं अपना बन जाये मुहाफ़िज़ तो।
फिर दिल में किसी सूरत डर अपने नहीं होते।।

मज़बूरी ओ महकूमी किस्मत है गुलामों की।
"पाले हुए पंछी के पर अपने नही होते"।।

नादान तवंगर दे दे ये खबर कोई ।
हीरे हों कि मोती हों ज़र अपने नही होते।।

पी जाउूं भला कैसे आँखों में भरे आंसू ।
लगते तो ये अपने हैँ पर अपने नहीं होते।।

हम जिन पे दिलों जाँ से कुर्बान हुए हैं वो।
गैरों के तो होते हैं पर अपने नही होते।।

आँखों से निकले हैं जब अश्क लहू बन कर।
फिर क्यों ये भला दामन तर अपने नहीं होते।।

तुम ने हमें छोड़ा है जिस हाल में ऐ "गुलशन"।
हम मर भी चुके होते ग़र अपने नहीं होते।

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Mohd Nayab

आँखों से रवां आंसू गर अपने नहीं होते।
दामन ये किसी सूरत तर अपने नहीं होते।।

ये सोंच के पिंजरे से बाहर नहीं आता मैं।
"पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते"।।

सब उनकी ही जानिब से कोहराम है दुनियां में।
ये शोर ये दहशत ये शर अपने नहीं होते।

नाराज़ न हो जायें माँ बाप कभी अपने।
अल्लाह से डरते हैं डर अपने नहीं होते।।

बारिश से हमें कोई फिर खौफ़ नहीं होता।
ऐ काश कि मिट्टी के घर अपने नहीं होते।।

रिश्वत के ज़माने में सर्विस भी मिले कैसे।
हाथों में कभी इतने ज़र अपने नहीं होते।।

हम दोस्त बनाते हैं "नायाब" सभी ऐसे।
दुश्मन हैं जो दुनिया के पर अपने नहीं होते।।

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Tasdiq Ahmed Khan


आते हैं नज़र अपने पर अपने नहीं होते
हर खूबरू उलफत के दर अपने नहीं होते

दंगाइयों मैं शामिल गर अपने नहीं होते
आतिश के निशाने पर घर अपने नहीं होते

दुनिया मेरी उलफत की बर्बाद नहीं होती
शाज़िश मैं गनिमों की अर् अपने नहीं होते

पड़ती ना अगर नज़रें उनके रूखे मुज़तर पर
लिल्लाह कभी नैना तर अपने नहीं होते

सैयाद के पिंजरे से आज़ादी मिले कैसे
पाले हुए पन्छि के पर अपने नहीं होते

खसलत तो कभी ज़ालिम बदली है न बदलेगी
खाँ हर एक चौखट पर सर अपने नहीं होते

न जाने दुआ केसे वो माँगते हैं रब से
जिन लोगों के दोनो ही कर अपने नहीं होते

होते हैं सितारे जब गर्दिश मैं मोहब्बत के
दिलबर के तसवउर मैं छर अपने नहीं होते

क्या ज़र है ये शोहरत भी उसने मुझे बख़्शी है
मैं केसे यॅकिन कर लूँ हर अपने नहीं होते

तस्दीक़ ये अख़लाक़ ए हसना का करिश्मा है
वरना वो कभी जीवन भर अपने नहीं होते
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गिरिराज भंडारी


ये ठीक, बग़ावत से , दर अपने नहीं होते
लेकिन सही है, अन्दर , डर अपने नहीं होते

हम गाँव भुला देते , हो जाते नगर के भी
जो कर्ज़ इन गाँवों के , सर अपने नहीं होते

जो खोखली मुस्कानें , ले हाथ मिलाते हैं
कितना भी लिपट जायें , पर अपने नहीं होते

तिश्ना लबी सदियों की, दो बूँद मिली हमको
होठ ऐसे, कहें किससे ?, तर अपने नहीं होते

जिस दिन से मेरी सूरत , दर्पण हुई जाती है
वो दोस्त हों या दुश्मन , बर अपने नहीं होते

जो होके भी अपनों में , बेगाना खू होते हैं
उनके दिलों में यारो, घर अपने नहीं होते

नादान परिन्दों को , अब कौन ये समझाये
"पाले हुए पंछी के, पर अपने नहीं होते"

आँसू को, लगा कह लूँ ,जज़्बात की रग़बत मैं
बहते कहाँ हैं ? ज़ज्बा , गर अपने नहीं होते

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rajesh kumari


कुछ लोग कभी जीवन भर अपने नहीं होते
कितना भी उन्हें चाहो पर अपने नहीं होते

दो हाथ करें मिलकर तामीर घरौंदे का
कमजोर किवाड़ों के घर अपने नहीं होते

हालात गुलामी के करते हैं बयाँ सब कुछ
अपने हैं बदन लेकिन सर अपने नहीं होते

करते न हिफ़ाजत जो खुद अपनी इमारत की
दीवार तो क्या उनके दर अपने नहीं होते

कब चाक करें किसको उनपर है भरोसा क्या
हालात-ए-समर में खंजर अपने नहीं होते

हासिल न हुई खुशियाँ दौलत भी न काम आई
कांधा भी न मिल पाता गर अपने नहीं होते

अपने ही तगाफ़ुल से ग़मगीन किया सागर
उस पर ये शिकायत, लब तर अपने नहीं होते

बेख़ौफ़ रहा करते शैतान बनाते घर
आबाद अगर दिल में डर अपने नहीं होते

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Majaz Sultanpuri


ईमानो यकीं मोहकम, गर अपने नहीं होते
जो ख़म है तेरे दर पर, सर अपने नहीं होते

नाकाम हुई होतीं, सब साज़िशें दुश्मन की
सूली पे चढ़ाने को, गर अपने नहीं होते

जिस्मों का तआल्लुक है, अरवाह से कुछ ऐसा
जैसे कि किराए के, घर अपने नहीं होते

सैय्याद ने क़ैंची से, फिर इनको कतर डाला
" पाले हुए पंछी के, पर अपने नहीं होते"

हमने ही बनाया है, डरपोक इन्हें  वरना
सहमे हुए बच्चों में, डर अपने नहीं होते

क्या मरिका आराई, में कोई कमी है जो
क्यों दोस्त मुहाज़ आखिर, सर अपने नहीं होते

मालूम है चिंगारी, खिरमन में रखी किसने
फिर भी वो यह कहते हैं, शर अपने नहीं होते

मैंने तो 'मजाज़' इतना, समझा है कि दुनिया में
ये माल, ये दौलत ये, ज़र अपने नहीं होते

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Rana Pratap Singh


ये सच है हिफाज़त में गर अपने नहीं होते
दिन रात सुलगते ये घर अपने नहीं होते

टकरा के कफस में ही उनको है बिखर जाना
"पाले हुए पंछी के, पर अपने नहीं होते"

झुक जाना बहुत आसां जो कहते हैं वो सुन लें
जो खुद को झुका लें वो सर अपने नहीं होते

हम तुझपे ग़ज़ल कह कर तुझको ही सुनाते, गर
अशआर ये अश्कों से तर अपने नहीं होते

अब शेर वही मुझको अच्छे बड़े लगते हैं
अपने से जो लगते हैं पर अपने नहीं होते

इक कैद परिंदे ने जो मुझसे कहा था सुन
ज़िन्दां की दीवारों में दर अपने नहीं होते

मस्नूई ये चेहरे हैं मस्नूई है चश्मे नम
जो दिखते हैं आँखों में डर अपने नहीं होते

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HAFIZ MASOOD MAHMUDABADI

अगयार के आगे ख़म सर अपने नहीं होते
तो बंद किसी सूरत दर अपने नहीं होते

हम जंग के मैदां में काफी थे अकेले ही
हमराज़ रक़ीबों के गर अपने नहीं होते

गर ख़ून पसीने की मेहनत से बनाते हम
मिसमार हवाओं में घर अपने नहीं होते

रखते जो भरम क़ायम हम अपनी वफाओं का
इल्ज़ाम जो आए हैं सर अपने नहीं होते

उड़ते हैं तो बस अपने मालिक के इशारों पर
"पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते"

फुटपाथ पे मेहनत कश थक हार के सोते हैं
इन खानाबदोशों के घर अपने नहीं होते

हम दिल मे अगर रखते एहसास ग़रीबों का
"मसऊूद" निवाले यूं तर अपने नहीं होते

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Jayprakash Mishra

साया ए सुकूँ देते ,पर अपने नहीं होते ,
राहों में जो मिलते हैं , घर अपने नहीं होते

किसकी मजाल हमको , घायल यूँ कर जाता ,
दुश्मन की टोली में गर अपने नहीं होते

रखना मेहमानों पर , कुछ ख़ास निगहबानी ,
अपने ही मकानो के, दर अपने नहीं होते

रख दें न कहीं रिश्ते , नाते बाज़ारों में ,
झुकते हैं जो दौलत पर , सर अपने नहीं होते

क़ानून के रखवाले , कुछ कातिल हैं ऐसे ,
करते हैं क़त्ल मगर ,कर अपने नहीं होते


ढाबों की बंदिश में , बच्चे ही बताएँगे ,
पाले हुए पंछी के, पर अपने नहीं होते

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Manoj kumar Ahsaas


अहसास,दुआ,दौलत,जर अपने नहीं होते
सीने में वफ़ा हो तो सर अपने नहीं होते

इस बात से ही मेरे दिल में भी ज़रा दम है
गम भी नहीं मिल पाते ग़र अपने नहीं होते

मालिक की नज़र में सब इंसान बराबर है
कीमत पे दुआ दें जो दर अपने नहीं होते

देखा है उन्हें हमने लड़ते हुए गद्दी पर
वो मंचो से कहते है घर अपने नहीं होते

ये मिसरा मेरी खातिर उलझन का सबब है बस
पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते

इस मिसरे को रखने को लिक्खी ये ग़ज़ल होगी
पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते

तहरीर उन्हें दी थी पढ़ने से ज़रा पहले
पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते

लिखने की हो आज़ादी परवाज़ की या बातें
पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते

दिल में वही रहते हैं पढ़ते हैं ग़ज़ल मेरी
धड़कन की रवानी हैं पर अपने नहीं होते

उनको मेरी चाहत की गर थोड़ी अना होती
उस काँधे के तरकश में शर अपने नहीं होते

रहता है बड़े महलो की बंद दीवारो में
मुझको ये नसीहत है घर अपने नहीं होते

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दिनेश कुमार


हाथों में लिए ख़ंजर , गर अपने नहीं होते
दहशत में कभी इतने घर अपने नहीं होते

गर क़ाफ़िले यादों के दर अपने नहीं होते
अश्क़ों से यूँ दामन फिर तर अपने नहीं होते

हर काम समय पर ही, जो हमने किया होता
तो वक़्त के कदमों में, सर अपने नहीं होते

चोरी से कमाएगा मोरी में ही जायेगा
मेहनत के बिना, भाई, ज़र अपने नहीं होते

साँसों के सफ़र तक ही, रह सकते बदन में हम
दुनिया में किराये के घर अपने नहीं होते

इक उम्र गुज़रने पर, अहसास हुआ मुझको
"पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते"

दुनिया में दिनेश उनके सायों से भी बचना तू
जो साथ तो रहते हैं पर अपने नहीं होते

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D.K.Nagaich 'Roshan'

अश्कों से कभी दामन तर अपने नहीं होते,
क्यूं दर्द कभी होता ग़र अपने नहीं होते.

धड़कन न बढ़े दिल की रस्ते से गुज़र जाएं,
समझो तो मियाँ फिर वो दर अपने नहीं होते.

महफ़ूज़ अगर हम हैं ये उसकी इनायत है,
मौजूद वगरना ये सर अपने नहीं होते.

इतना है यक़ीं हमको करते न मुहब्बत तो,

बेख़ौफ़ रहे होते डर अपने नहीं होते.

उड़ने का हुनर अब तो वो भूल गया होगा,
"पाले हुए पंछी के, पर अपने नहीं होते"

ख़ुर्शीद क़मर उसके दामन से निकलते हैं,
क्या है ये सबब रोशन घर अपने नहीं होते.

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डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव

दो चार हमारे भी गर अपने नही होते
तो हैं रहते जिसमे घर अपने नहीं होते

मस्त हजारों हैं रंगीन है ये दुनियां
हम भी हंस लेते यदि डर अपने नहीं होते

भरते न उजालों से जो जिन्दगी खुद अपनी
उनका तन हो तो हो कर अपने नहीं होते

मुक्त नहीं अब भी है भारत की नारी
पाले हुए पंछी के, पर अपने नहीं होते

रिश्ते यदि सच्चाई की ताब न रख पाएं
तो लाख बनें अपने पर अपने नही होते

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NAFEES SITAPURI


लगते हैं ये अपनों से पर अपने नहीं होते
हर चन्द मुज़य्यन हों घर अपने नहीं होते

रस्मन भी चले जाते हैं लोग ज़माने में
हमराह जनाज़े के सर अपने नहीं होते

हम जिनकी मोहब्बत में तड़पे हैं बहर सूरत
कहने को तो अपने हैं पर अपने नहीं होते

ना साया फिग़न होती अपनों की मोहब्बत तो
हिज़रत कहीं कर जाते गर अपने नहीं होते

कमज़र्फ पे एहसाँ है यूँ जैसे सराबो पर
तुम करते रहो जीवन भर अपने नहीं होते

महरुमिये आसूदा ख़ातिर है मुक़द्दर भी
लब खुश्क़ हैं दरिया में तर अपने नहीं होते

करते हैं ज़बीं साई हम हुस्ने अक़ीदत से
वर्ना है ख़बर सबको दर अपने नहीं होते

वो लोग गुलूकारी करते हुए डरते हैं
जो इतना समझते हैं स्वर अपने नहीं होते

नाहक़ हो नफीस अपनी परवाज़ पे तुम नाज़ां
पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते

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ZIA KHAIRABADI


नेज़ों पे सरे मक़्तल सर अपने नहीं होते
दुश्मन की हिमायत में गर अपने नहीं होते

यूँ दर्द की शिद्दत से खुश्क अपनी हुई आंखें
रोने से भी अब दामन तर अपने नहीं होते

आज़ाद फ़ज़ा मे वो परवाज करें कैसे
पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते

लालच की इमारत से मुश्किल है पलटना भी
इस भूलभुलैया के दर अपने नहीं होते

ईमान ओ अमल जज़्बा सब कुछ है तो फिर सोचो
क्यूँ सख्त मराहिल अब सर अपने नहीं होते

उड़ती है हर इक दिल को एहसास दिलाती है
खुशबू के बज़ाहिर तो पर अपने नहीं होते

सीता को उठाने की जुरअत न कभी करता
रावन के जो तन पे दस सर अपने नहीं होते

आबाद नहीं होते हम लोग जो धरती पर
तूफां की निगाहों में घर अपने नहीं होते

वो रिश्ते ज़िया जिनको तुम अपना समझते हो
कहने को तो अपने है पर अपने नहीं होते

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NISAR AHMAD


ये दोस्तनुमा दुश्मन गर अपने नहीं होते
मजरूह कभी इतने पर अपने नहीं होते

ग़ाफ़िल जो कभी होते यादों से तेरी पल भर
ये मारिके उल्फत के सर अपने नहीं होते

मिल जाए रिहाई भी गर इनको तो क्या हासिल
"पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते"

रह जाती गुलामी ही भारत के मुकद्दर में
नेज़ोंं पे जो दुश्मन के सर अपने नहीं होते

पहचान अगर होती कुछ रहजनों रहबर की
वीरान कभी ऐसे घर अपने नहीं होते

हम कब के गुजर जाते इस आलमे फानी से
ये रन्जो अलम साथी गर अपने नहीं होते

एहसास से खाली दिल होते जो 'निसार' अपने
दामन कभी अश्क़ों से तर अपने नहीं होते

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मोहन बेगोवाल

जो छोड़ कि भागे वो नर अपने नहीं होते |
जो झुक जाए हर दर सर अपने नहीं होते |

वो छोड़ जो आए थे हो अब न कहें किस के,
जब याद हमें आएं तो घर अपने नहीं होते |

कुछ तो हमारा तुम से भी नाता रहा होगा ,
दामन ऐसे तो कोई तर अपने नहीं होते |

हो लाख हमारे पर अपने जो न लगते हैं,
कोई न फिर हो अपना गर अपने नहीं होते |

वो कह गए हम को जो तुम खूंटे से हो बंधे,
पाले हुए पंछी के, पर अपने नहीं होते |

मैं जो दिखाए खुद को अब तक न खुले मुझ से,
वो कौन से हैं दर जो दर अपने नहीं होते |

एक बात बता दी धीरे से आ कि उस मुझ को,
डरते हैं जो खुद से वो डर अपने नहीं होते|

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laxman dhami


हो भीड़ भले बेढब हर अपने नहीं होते
परदेश में रहने को घर अपने नहीं होते

वैसे तो छलकती हैं पहले सी बहुत आँखें
दामन ये मगर अब क्यों तर अपने नहीं होते

देती है सियासत ये अपनी ही गरज भर को
धर्मों से जुड़े जितने डर अपने नहीं होते

जब चाहे भगा कर वो फुटपाथ पे ला देगा
लिबइन के रिलेशन में घर अपने नहीं होते

कहने को कहो कितना आजाद वतन है पर
मालूम है फदली के कर अपने नहीं होते

बेख़ौफ उड़ानों में नजरों को भी रख चौकस
छूटें वो कहीं से भी शर अपने नहीं होते

हों ख्वाब सितारे जब ये सोच जरा भी मत
" पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते"

जा लौट के घर पंछी समझाना ‘मुसाफिर’ को
ये रैन बसेरे जो घर अपने नहीं होते

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Pradeep Garg


जांबाज जवानों के सर अपने नही होते
सीमा पे मिलेंगे वो घर अपने नहीं होते|

का़फिर ही कहे जाएं इस्लाम मे वो बन्दे
जिनके लिए खुदा के दर अपने नहीं होते|

किसके लिए जीते हम मर जाते कहीं घुटकर
जीना मुहाल होता गर अपने नही होते|

उड भी कहां वो पाएं पिंजर में बंद हैं जो
पाले हुए पंछी के पर अपने नही होते|

बच्चे सदा ही उनके कव्वों ने ही तो पाले
कोयल के कहीं भी तो घर अपने नही होते|

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Amit Kumar "Amit"


यादों के तरानों मैं तर अपने नहीं होते I
सर काटने वाले जो शर अपने नहीं होते I I

चाहें तुम अपनी जां भी इन पर लुटा दो पर I
ज़ोरू ये ज़मीं 'औ' ये ज़र अपने नहीं होते I I

हर रोज़ जो बज्में सजती और उजड़ती हैं I
उनकी महफ़िल मैं हर नर अपने नहीं होते I I

मालिक ने बनाया है ऐसा ही गुलामों को I
ये सच है गुलामों के सर अपने नहीं होते I I

हत्यारे के चंगुल से बचकर ये "अमित" समझा I
पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते I I

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Sheikh Shahzad Usmani


कुछ कर सकें कैसे वे, ग़र सपने नहीं होते,
मंज़िल, दरो-दरवाज़े, भर अपने नहीं होते।

सब कुछ लुटा दो पढ़ने लिखने पर अभी तो तुम,
नाकाम होने पर तो, घर अपने नहीं होते।

हर भ्रष्ट ने दिखलाया है रास्ता गुनाहों का,

बदनाम रास्तों पर फिर, दर अपने नहीं होते।

किस दुष्ट ने बतलायीं राहें वो कुसंस्कृति की,
लाचार बच्चों के ज़र, घर अपने नहीं होते।

"शहज़ाद" घर बैठे ही, बेटी करे तो क्या,
पाले हुए पंछी के, पर अपने नहीं होते।

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Safat Khairabadi


अश्कों से अगर दामन तर अपने नहीं होते
इल्जाम मोहब्बत के सर अपने नहीं होते

रह रह के सताती है मुझको शबे तनहाई
क्यों इतना तड़पते हम गर अपने नहीं होते

बस छानते रहते है वह खाक ही सेहरा की
दीवानों के दुनिया में घर अपने नहीं होते

परवाज़ की ख्वाहिश तो रखता है बहुत लेकिन
"पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते"

बे खौफ-ओ-खतर होकर रहते है वो दुनिया में
मर्दाने-ए-मुजाहिद के सर अपने नहीं होते

अब कौन "शफाअत" है भाई से बड़ा दुश्मन
हो जाते हैं गैरों के पर अपने नहीं होते

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Ravi Shukla 


रहने के मशागिल से घर अपने नही होते
लगते है मकीं अपने पर अपने नही होते

मेहमान परिंदों को मैं गैर कहूँ क्योंकर
रुकते वो यहाँ पर क्यूँ गर अपने नहीं होते

ये बात बड़े होकर सब मान ही लेते है
अपने ही दिमागों के डर अपने नहीं होते

आखो में नज़ारे की दो बूँद नही काफी
दीदार के तशना लब तर अपने नही होते

हालात से घबराकर डर कर मैं कहाँ जाता
अगयार की बस्ती में गर अपने नही होते

कोशिश का तकाजा है हालात मुनासिब हों
उम्मीद से भी रोशन दर अपने नही होते

खुशियों के हसीं पैकर मस्नूई मुहब्बत से
ख़्वाबों में तो आते हैं पर अपने नही होते

तारीफ़ कसीदों से मगरूर हुए तन कर
दस्तार गिरा दें जो सर अपने नहीं होते

गर छोड़ दिया होता सच्चाई के दामन को
यूँ दार की रस्सी पर, सर अपने नहीं होते

आकाश को हसरत से बस ताकता रहता है
पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते

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Ganga Dhar Sharma 'Hindustan'


कहने को घरोंदें हैं पर अपने नहीं होते
आजाद परिंदों के घर अपने नहीं होते

पगड़ी जो पराई हो सर अपने नहीं होते
पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते

था ठीक अँधेरों का ना होना यकीनन ही
ख्वाबों से भरे दीदे गर अपने नहीं होते

गर माल है खीसे में तो खल्क तुम्हारा है
खाली भर होने से घर अपने नहीं होते

श्री कृष्ण की बंशी में साँसें सब राधा की
बंशी के कलेजे में स्वर अपने नहीं होते

'हिन्दुस्तान' की गजलें बेसार रहीं होती
जज्बात भरे उनमें गर अपने नहीं होते

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जयनित कुमार मेहता


आँखों में बसे सपने गर अपने नहीं होते
टूटे से गए नैना भर अपने नहीं होते

ये दोष हमारा था,बेखुद थे नहीं तो यूँ
नज़रों के चुभे दिल में शर अपने नहीं होते

बेनाम से रह जाते,हैं रिश्ते यहाँ कितने
रहते तो हैं जो दिल में,पर अपने नहीं होते

माँ-बाप के साये से,होता है मुकम्मल घर
ईंटों के बने ढाँचे,घर अपने नहीं होते

ग़ुस्ताख़ मेरे नैनों ने दिल्लगी की,वर्ना
इल्ज़ाम वफाओं के,सर अपने होते

हो चाहे गुमाँ उसको, ये सच है मगर कड़वा
पाले हुए पंछी के,पर अपने नहीं होते

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मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती हुई हो अथवा किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो तो अविलम्ब सूचित करें|

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जनाब बहुत शुक्रिया ;;;;;मेरी ग़ज़ल के शेरों में जो खामी नज़र आई हैं उसके लिए निवेदन है कि......टाइप मिस्टेक की वजह से मिसरे बहर से बाहर लग रहे हैं ...जैसे शेर 3में ..में की जगह मैं ....गनीमों की जगह..गनिमों , शेर5...सय्याद ..की जगह ...सैयाद....शेर6....खम हर किसी चौखट पे ...की जगह ...खाँ हर एक चौखट पर ....शेर7 ...ना की जगह न ...कैसे ...की जगह केसे .शेर8..में की जगह मैं ...तसव्वुर की जगह ...तसवउर शेर9..यक़ीन की जगह ..यॅकिन...टाइप हो गया ....मेरे हिसाब से ग़ज़ल के सारे शेर बहर में हैं....शुक्रिया

laxman dhami- "हो भीड़ भले बेढब हर अपने नहीं होते"-  मिसरे में छोटी सी व्याकरणिक त्रुटि सम्भवतः अनदेखी रह गयी है -'हर अपना नहीं होता' या फिर 'सभी अपने नहीं होते'

आदरणीय राणा प्रताप जी, मुझे मेरे 'हरे' हुए मिसरे का दोष समझ में नहीं आ रहा.. अगर स्पष्ट करें तो बहुत कृपा होगी!!
जयनित जी आपके उस मिसरे में तक़ाबुले रदीफ़ नुमाया है

सभी साधुजन से प्राथना है कि मेरी संशोधित तरही ग़ज़ल के बारे में राए फरमाए, मेहरबानी होगी 

जो छोड़ कि भागे वो नर अपने नही होते  I
जो झुक गये हर दर सर अपने नही होते  I
हम छोड़ जो आये थे उनके निशाँ बाकी हैं, 
जो याद बहुत आयें घर अपने नहीं होते  I
कुछ साथ हमारे तो उनका रहा नाता है ,
ये ऐसे तो कभी दामन तर अपने नही होते  I
हो लाख हमारे पर अपने जो न लगते हैं ,
हम साथ निभाते क्या गर अपने नहीं होते  I
वो कह गए हमको तुम खूंटें से हो बंधे ,
पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते  I
जो तुम दिखाए हमको वो दर न कभी देखें, 
वो कौन बता दर जो दर अपने नहीं होते  I
है उस बताई धीरे से बात मुझे ये भी ,
डरते हैं जो खुद से वो डर अपने नहीं होते I

"मौलिक व अप्रकाशित"

आ० राणाप्रताप जी, लोगो के मार्गदर्शन से मैने गजल को निम्न प्रकार संशोधित किया है आप उचित समझे तो  इसे स्थापित करने की कृपा करें , सादर .

दो चार हमारे  भी गर अपने नही  होते

रहते हैं जहाँ पर हम  घर अपने नहीं होते

हैं मस्त हजारों  सारा आलम है न्यारा  

हम भी कुछ हंस लेते यदि डर अपने नहीं होते

 भरते न उजालों से जो जिन्दगी खुद अपनी   

उनका तन हो तो हो पर कर अपने नहीं होते

 है मुक्त नहीं अब भी यह भारत की नारी

पाले हुए पंछी के, पर अपने नहीं होते

 रिश्ते भी जो  सच्चाई की ताब न रख पाएं 

वो लाख बनें अपने पर अपने नही होते

आदरणीय राणा प्रताप भाई , संकलन के उपलब्ध कराने के लिये आपका बहुत बहुत आभार । मेरी गज़ल मे हो एक मिसरा लाल हुआ है , उसे निम्न अनुसार बदलने की कृपा करें _ जो कर्ज़ इन गाँवों के , सर अपने नहीं होते  , को -

जो कर्ज़ है गाँवों के , सर अपने नहीं होते  --   इस मिसरे से प्रतिस्थापित करने की कृपा करें।

                                                                                                                    सादर निवेदित

नमस्कार सर
आपने ऊपर बहर लिखने की शुरुवात करके बहुत अच्छा किया
बहुत बहुत धन्यवाद

मेरे हरे मिसरे

तहरीर उन्हें दी थी पढ़ने से ज़रा पहले

इसका दोष कृपिया समझा दें
बहुत बहुत आभार
आपके हरे मिसरे में भी तक़ाबुले रदीफ़ है

आदरणीय राणा सर, आयोजन की सफलता हेतु बहुत बहुत बधाई एवं इस संकलन हेतु हार्दिक आभार. सादर 

मोहतरम जनाब राणा साहिब। ..... निम्नलिखित संशोधन करने की कृपा कीजिये। .... शुक्रिया

1 .  ( शेर नंबर 3 सानी मिसरा )..... साज़िश में ग़नीमों की अर अपने नहीं होते /

2. ( शेर नंबर 5 ऊला मिसरा ).... सय्याद के पिंजरे से आज़ादी मिले कैसे। . दोष समझ नहीं आया

3. ( शेर नंबर 6 सानी मिसरा )... ख़म हर किसी चौखट पे सर अपने नहीं होते /

4. ( शेर नंबर 7  ऊला मिसरा ).... ना जाने दुआ कैसे वो मांगते हैं रब से /

5. ( शेर नंबर 8 ऊला  मिसरा ).....होते हैं सितारे जब गर्दिश में मोहब्बत के। .. दोष समझ नहीं आया 

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