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आदरणीया रीता गुप्ताजी, आपने आकांक्षा शब्द को बड़े ही सह्ज अन्दाज़ में उतार दिया है. आपकी कथ्य शैली प्रवहमान है तथा कथा का विस्तार सहज है. आपकी प्रस्तुति की सार्थकता अकथनीय है. यह अवश्य है कि आदरणीय योगराजभाईसाहब के कहे का संज्ञान लिया जाना आवश्यक है.
एक अच्छी कोशिश के लिए हृदयतल से बधाइयाँ स्वीकार करें.
सादर
हार्दिक बधाई आदरणीय रीता जी!समाज के कई पहलू एक साथ उजागर करती हृदय स्पर्शी लघुकथा!
वाह नीता जी सुन्दर संयोग का ताना बना बुना है आपने कसे हुए शिल्प के साथ हार्दिक बधाई स्वीकार करें
किस का भला करने का एक सुंदर सन्देश देती रचना के साथ ही उसकी कम्मो की कार में बैठ घूमने की आकांक्षा पूरी होने बात इस कहना को शीर्षक के सन्दर्भ में सार्थक बना रही है | बहुत बहुत बधाई आदरणीया रीता गुप्ता जी
कर भला हो भला.. बच्ची ने तो सोचा भी ना होगा कि वह कितना बड़ा काम कर रही है..ये तो हम आप जैसे बड़े ही जान सकते हैं...किन्तु समाज को कम्मों जैसे बच्चों कीबहुत आवश्यकता है... बढ़िया कथ्य .एक बार पुनः संपादन कर छोटा सा दोष आगया है उस को दुरुस्त कर ले ..सादर..
अपनी अपनी उम्मीदें और इच्छाएं , बहुत सुन्दर रचना प्रदत्त विषय पर | बधाई क़ुबूल कीजिये इस बढ़िया प्रस्तुति पर
तुरंत परिवर्तन हो गया, मार के आगे भूत भी भागते हैं | सुनील वर्मा जी बधाई आपको इस सकारात्मक सृजन के लिये|
//आँख अगली सुबह खुली जब पल्लवी ने आकर आवाज देते हुए जगाया "सुनिये..उठिये..चाय तैयार है"
प्रत्युत्तर में रजाई के अंदर से ही आवाज आयी "आप चलिए.. मैं हाथ मुँह धोकर आता हूँ।"
अपने पति के मुँह से अपने लिये 'आप' का संबोधन सुनकर वर्षों से अपने हिस्से का सम्मान पाने की आकांक्षा पाले पल्लवी के चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी।//
आपकी लघुकथा में कालखंड दोष आ गया है भाई सुनील वर्मा जी I
पत्नी को "आप" कह कर ही तो संबोधित करना है न भाई सुनील वर्मा जी ? तो उसके लिए अगले दिन तक का इंतज़ार क्यों ? वहीँ कहलवा दें, असर भी तुरंत दिखेगा और कालखंड दोष से मुक्ति भी मिलेगी लघुकथा को I आशा है कि आप मेरा इशारा समझ गए होंगे I
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