Tags:
Replies are closed for this discussion.
युवाओं के भटकाव को लेकर बहुत ही सुन्दर दृश्यांकन किया है आपने आदरणीय मनन कुमार जी। मुझे स्वयं के स्तर पर ये कथा बहुत ही पसब्द आई है। बधाई प्रेषित है।
मनन जी प्लाट आपका बहुत बढ़िया मगर ... ... बुरा मानेंगे ? कोई बात नहीं क्षमा पहले मांग लेता हूँ। गोष्ठी है तो रचना पर विचार-विमर्श को आप अन्यथा न लें। भाषा के मामले में आप पर माँ सरस्वती की कृपा है जो आपको दूर तक ले जा सकती है। मगर हुनमान जी की तरह आपको शक्ति याद दिलानी पड़ती है। भैया , रचना को कसिए थोड़ा और इसके अंत में हम मास्टरों की तरह उपदेश सा न दें तो बढ़िया रचना। मैंने टिप्पणी पर जितनी मेहनत की , उसका दुगुना रचना पर श्रम करें। अगली गोष्ठी में आपको देखते ही मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाए तो कोई बात बने। नाम को सार्थक करो छोटे भाई। रचना पर मनन करो थोड़ा। एक बार फिर क्षमा-याचना
आ० प्रदीप नील जी की स्टेटमेंट पर मेरे भी हस्ताक्षर समझे जाएँ आ० मनन कुमार सिंह जी !
बहुत ही कमाल की लघुकथा, आज की पीडी जैसा बदलाव ला रही है, कई बार हमारी समझ से बाहर लगता है. ये जैसे बात और विवहार करते , कई बार अजीब लगता , बहुत ही सुंदर लघुकथा के लिए बधाई
बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर , थोड़ा स्वयं नियंत्रण जरुरी है | बहुत बहुत बधाई आपको
हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार जी !अच्छा प्रयास!
लोक-प्रियता
सेवा-निवृत श्री शिवकुमर एक “साहित्यिक-सरोज” मंच से जुड़कर अपने पत्रकार मित्र के माध्यम से अध्यक्ष जी और उनके वरिष्ट साथियों की रचनाए पत्र में यदा कदा प्रकाशित कराकर चहेते बन गए,तथा अपना प्रथक मंच बना सभी साथियों को अपने मंच से जोड़ने में सफल हो | वहां शाश्त्रीय छंदों के विधान की भाषा को अपनी शैली में लिखने के अतिरिक्त नए नए नामों से कुछ “लोक-छंद” लोकप्रिय करने के लिए श्रेष्ठ रचनाकार का चयन कर सम्मान-पत्र देना शुरू किया | एक साथी कैलाश नाथ ने फिर एक प्रथक मंच बनाकर शिवकुमार जी की एक “विधा” का शिल्प-विधान अपने मंच पर प्रकाशित किया तो शिव कुमार आग बबूला हो गए और अपने विश्वस्त शिष्य से इसे चोरी करना बता विरोध कराया | इस पर कैस्लाश नाथ ने अपने मंच से उस विधा को हटा दिया | इसे अपना अपमान बताकर यह कहते हुए तीव्र विरोध जताने लगे कि इसे हटाने से तो गलत सन्देश जा रहा है | उस विधा के नीचे “रचयिता गुरु शिवकुमार” लिखना चाहिए था | “साहित्य-सरोज” मंच के पुरोधा तक विवाद पहुंचा तो वस्तुस्थिति जानकार शास्त्रीय छंदों से खिलवाड़ को पाप कृत्य समझते हुए शिवकुमार की “लोकप्रिय गुरु” कहलाने की आकांक्षा भांपते हुए उन्हें सलाह दी कि आपको तो राजनीति में ------
(मौलिक व अप्रकाशित)|
साहित्य में राजनीति. बहुत खूब. बधाई.
हार्दिक आभार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय जी
बहुत सारी मंचों अक्सर ही राजनीति होती है , जोड़ तोड़ भी बहुत हॉट है अध्यक्ष पद के लिए , सुंदर लघुकथा के लिए बधाई
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |