आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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वाह! मनोभावों का बड़ी बारीकी से चित्रण किया है आपने सुनील भाई. मानव मन की लाचारी ,गरीब की विवशता,क्षणिक आवेश औए इन सब से ऊपर माँ होने का भाव.. बहुत सुंदर कथा.ह्रदय से अनंत शुभकामनाएं और बधाइयाँ .
हार्दिक बधाई आदरणीय सुनील जी! बहुत सुंदर रचना! जिसकी जितनी हैसियत उसका उतना ही आक्रोश!पर कभी कभी इंसान आक्रोश में अपना ही नुकसान कर लेता है!
सुंदर लघुकथा के लिए बधाई हो
अद्भुत प्रस्तुति।
आक्रोशित व्यक्ति सही गलत भूल जाता है हर हाल में अपने को हानि पहुँचाने वाले को किसी भी हद तक जाकर सबक सिखाना चाहता है आक्रोश को बखूबी उकेरा है आपने सुनील जी हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको , रही बात शबरी की तो हाँ कुछ अखर तो रहा है ये नाम क्योंकि यहाँ पर दुर्भावना अपने चरम पर है .ऐसा मेरा विचार है ,,
दुर्भावना वश किये गए अपने ही कृत्य से व्यथित होने पर स्वयं पर आक्रोश और पश्च्याताप में जलाने की सुंदर लघु कथा } वाह ! हार्दिक बधाई श्री सुनील वर्मा जी
गजब का आक्रोश प्रकट कर दिया आपने और आत्मावलोकन भी! सशक्त लघुकथा हुई है आदरणीय सुनील वर्मा जी!
जनाब सुनील साहिब , प्रदत्त विषय पर आधारित सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
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