आदरणीय साथिओ,
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युवाओं में रफ़्तार की दीवानगी ऐसे ही कहर बरपा देती है ... हार्दिक बधाई इस उत्तम रचना के लिए आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी
हार्दिक बधाई आदरणीय मुहम्मद आरिफ़ जी।बेहतरीन प्रस्तुति ।एक कहावत है कि जो हर काम की जल्दी में रहते हैं वे ऊपर भी जल्दी ही जाते हैं।
सुंदर लघु कथा के लिए बधाई श्री मुहम्मद आरिफ साहब
फ़र्ज़ (अँधेरी राहों के मुसाफ़िर )
" कई दिन से नज़र है तुझ पर मेरी, ये क्या बाँटता फिर रहा है इनको? गन्दगी फैला रहा है यहाँ।"
कहते हुए मजबूती से उसका हाथ पकड़ लिया पुलिस वाले ने।
" अरे ! मेरा हाथ छोड़ो ,इसमें क्या बुराई है ?मैं अपनी संस्था की ओर से ये काम कर रहा हूँ।"
" चल ये सफ़ाई अब थाने चलकर ही देना ,तुम जैसे लोग ही समाज़ को बिगाड़ रहे हैं।"
" आय -हाय थानेदार साहब इस भलेमानुष को क्यों परेशान कर रहे हैं। छोड़ दीजिए इनको।" झुण्ड को देख और थानेदार, सुनकर सिपाही थोड़ा नरम पड़ा।पर माना नहीं उसे थाने पहुंचाकर ही दम लिया।
" साहब ! ये आदमी कई दिन से किन्नरों को ये चीज़ बाँट रहा है।" कहते हुए सिपाही ने उसके झोले से ढेर सारे पैकेट निकाल कर इंस्पेक्टर की मेज पर रख दिए।
ढेर देखते ही इंस्पेक्टर की आँखें चौड़ी हो गई।
" क्यों बे ! ये क्या है ?" फाड़ खाने वाली आवाज़ थी उसकी।
" सर !जो भी है आपके सामने ही है।।"
" मुझे सिखा रहा है ?तुझे, मैं अँधा दिखाई दे रहा हूँ? तुझे शर्म नहीं आती किन्नरों के बीच समलैंगिगता फैलाते हुए ?" इंस्पेक्टर ने उसे घुड़का।
" सर ! फैला नहीं रहा हूँ , वे लोग अनजान मौत की गलियों में दौड़ रहे हैं ,हम तो उन लोगों की जान बचाने की कोशिश कर रहे हैं।"
"तुम क्या डॉक्टर हो ?"
"सर, हमारे न बाँटने से सच्चाई बदल तो नहीं जायेगी। हमारी संस्था तो उन्हें एच .आई.वी. के प्रति जागरूक करने की पहल कर रही है।"
" हूँ उ उ... "
इंस्पेक्टर ने हिक़ारत से ढेर को घूरते हुए कहा।
" सर ! वे भी हमारे ही भाई बन्धु हैं। हम तो अपना फ़र्ज़ अदा कर रहे हैं जिससे वे लोग अँधेरी गलियों से बच सकें। "
" वे बच्चे हैं क्या ?जो उन्हें समझाया जाय।समाज उन्हें पूछता नहीं और ये हैं कि ..."इंस्पेक्टर की आवाज़ में अब व्यंग था।
" सर , अगर वे समाज से तिरष्कृत तो क्या हम भी शुतुरमुर्ग की तरह आँख बन्द कर लें। "
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मौलिक एवम् अप्रकाशित
वह वाह आ० जानकी जी, बहुत ही कसी हुई और सधी हुई लघुकथा कही हैI विषय में नयापन तो है ही पर सन्देश भी गजब है इस लघुकथा मेंI पन्च-पंक्ति भी ज़बरदस्त हैI बहुत बहुत बधाई स्वीकार करेंI
//"तुम क्या डॉक्टर हो ?"
"सर, हमारे न बाँटने से सच्चाई बदल तो नहीं जायेगी। हमारी संस्था तो उन्हें एच .आई.वी. के प्रति जागरूक करने की पहल कर रही है।"//
"तुम क्या डॉक्टर हो?" के जवाब में जो उस आदमी ने कहा वह पूरी तरह स्वाभाविक नहीं लगताI हाँ या न में जवाब देने की बजाय ये लेक्चर नुमा जवाब कुछ अटपटा सा लगा, इसे पुन: देख लेंI
एक नए कथानक को लेकर बहुत बढ़िया रचना लिखी है आपने, विषय को परिभाषित करती इस बेहतरीन रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
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