आदरणीय साथिओ,
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टूटी बाउंडरी
प्रोफेसर साहब ने घर की टूटी बाउंडरी बाल को रिपेयर कराने के लिए एक मजदूर और मिस्त्री को लाकर काम कराना प्रारंभ कर दिया। मजदूरों से काम कभी कराया तो था नहीं इसलिए, वह उनको काम समझाकर अपने पढ़ने लिखने में लग जाते और बीच बीच में काम का निरीक्षण करने आ जाते। बीड़ी पीते देख वे उन्हें समझाते कि इससे शरीर को बहुत नुकसान होता है। मजदूर भी उनकी बातों से सहमत होते परन्तु तर्क भी देते कि साहब, क्या करें आदत है, थोड़ा सुस्ता लेते हैं । और, जोर से मुंह से धुआॅं बाहर निकालते जिसे देख प्रोफेसर अन्दर चले जाते। दोपहर में मिस्त्री जब खाना खाने अपने घर चला जाता मजदूर वहीं पर बैठ कर साथ में लायी रोटियाॅं, नमक मिर्च के साथ खाने लगता। यह देख प्रोफेसर की दयालु पत्नी उसे अचार और सब्जी दे दिया करती।
काम पूरा होने पर प्रोफेसर ने उनकी मजदूरी के पैसों का भुगतान किया। मिस्त्री तो पैसे लेकर चला गया, मजदूर बैठा रहा। प्रोफेसर की पत्नी ने पूछा,
‘‘ क्या बात है, पैसे कम हैं क्या? लो, बीस रुपये और ले लो।’’
सुनकर मजदूर जोर से रोने लगा इतना कि प्रोफेसर पति पत्नी दोनों को उसे शान्त करने में बहुत प्रयत्न करना पड़ा। शान्त होते ही वह सिसकते हुए बोला,
‘‘ माताजी ! पता नहीं अब कहाॅं काम मिलेगा, किस किस की दुतकार , डाॅंट फटकार और गालियां सुनना पड़ेंगी। पिछले सात माह से यहाॅं वहाॅं मजदूरी करते करते पता नहीं क्यों , पहली बार आपके यहाॅं अपने घर जैसा लगा ।’’
‘‘क्यों? पहले क्या मजदूरी नहीं करते थे?’’ प्रोफेसर की पत्नी ने आश्चर्य से पूछा।
‘‘ नहीं माताजी ! गाॅव में हमारी तीस एकड़ उपजाऊ जमीन है, माता पिता भी हैं। बारहवीं फेल हो जाने पर मैं ही घर की खेती सम्हालने लगा। परन्तु पिताजी की रोज रोज की डाॅंट फटकार से ऊबकर मैं भाग आया और मजदूरी करने लगा। आपके यहाॅं आकर मुझे लगा कि अपना घर ही ठीक होता है। इसीलिए आॅंखे भर आईं । ’’
‘‘ अरे बेटा ! अपने घर वापस लौट जाओ, मां बाप तो संतान के भले के लिए ही डाँटते हैं, इसका क्या बुरा मानना? ’’
मौलिक व अप्रकाशित
बहुत भावपूर्ण रचना प्रदत्त विषय पर, माँ बाप तो भले के लिए ही डांटते हैं| बधाई इस रचना के लिए
आदरणीय TRSakul जी आप ने नीड़ की ओर- भाव को व्यक्त करती सुंदर लघुकथा कही हैं. बधाई आप को.
आ० शुक्ल जी भावपूर्ण कथा के लिए धन्यवाद .
जनाब टी आर शुक्ल साहिब ,प्रदत्त विषय पर सुन्दर लघुकथा हुई है, मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
विषयांतर्गत बढ़िया भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ. त्रैलोक्य रंजन शुक्ल जी। मज़दूर के रोने, सिसकने में सब कुछ बयां हो गया। अंत में मज़दूर का कोई भावपूर्ण विचारोत्तेजक संवाद जोड़ा जा सकता है। सादर।
आदरणीय डॉ. टी. आर. सुकुल जी, प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा है पर मुझे इसमें कुछ कमियाँ नज़र आयीं. एक तरफ़ तो मजदूर इतना ग़रीब है कि सिर्फ नमक-रोटी खाता है और दूसरी तरफ़ उसके पास तीस एकड़ ज़मीन भी है. इससे कहानी में दो ट्रैक हो जाते हैं : पहला हिस्सा एक ग़रीब मज़दूर पर केन्द्रित है और दूसरा हिस्सा एक भटके हुए युवा पर. यदि कहानी दोनों में से किसी पर केन्द्रित रहती तो बेहतर होता. बहरहाल, मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
प्रदत्त विषय पर सुन्दर कथा ..हार्दिक बधाई आदरणीय सुकुल जी
आ. भाई सुकुल जी, अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।
सुंदर और संदेशपरक लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है आ० डॉ टी आर सुकुल जी.
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