आदरणीय साथिओ,
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जनाब गोपाल नारायण जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती बढ़िया लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
कृपया आयोजन में अपनी सक्रियता भी दिखाएँ ।
आ० डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी, आपकी यह लघुकथा पढ़ते हुए मुझे फिल्म "पूरब और पश्चिम" का वह दृश्य याद आ गया जहाँ सायरा बानो की माँ स्व० शम्मी, बिलकुल इसी तरह फिल्म के नायक मनोज कुमार के सामने एक विचित्र स्थिति उत्पन्न कर देती है. बहरहाल, आपकी कथा का अंत उस फिल्म जैसा नहीं है. यहाँ कैरी की माँ स्वयं ही उसे भारत जाने की आज्ञा दे देती है. लघुकथा बहुत ही उत्तम हुई है और प्रदत्त विषय पर भी पूरी उतर रही है, अत: मेरी हार्दिक बधाई स्वीकर करें आदरणीय.
देशप्रेम के जज़्बे से लबरेज़ कथा के लिये बधाई आद० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ।
बहुत भावपूर्ण रचना प्रदत्त विषय पर, इंडिया और भारत का फ़र्क़ बढ़िया से बताया आपने. बहुत बहुत बधाई इस बढ़िया प्रस्तुति के लिए आ
बहुत बहुत बधाई आदरणीय गोपाल भाई जी।स्मरणात्मक शैली में लिखी लघुकथा संदेशपरक है।दुआ है भाषावादियों/विवादियों की नजर न पड़े,नहीं तो आंग्ल भाषा के शब्दों की बहुतायत जान खा जायेगी,सादर।
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ।लाज़वाब लघुकथा।
आ. भाई गोपाल नारायन जी, सुंदर कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।
आ.जनाब गोपाल नारायण साहिब ,प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।
बहुत बढिया। कितनी भी कमियाँ हों पर अपना देश अपना ही होता है। देश से पलायन करने वालों को आईना दिखाती शानदार रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय
वाह! इंडिया नहीं भारत कहना चाहिए| बहुत बढ़िया कथा हुई है आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी | हार्दिक बधाई आदरणीय|
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , इस भावपूर्ण प्रस्तुति पर ह्रदय से बधाई , सादर।
बहुत बढ़िया या लघुकथा, बधाई स्वीकार करें
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