साथियों,
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एक अच्छी गजल के लिए बधाई आदरणीय।हाँ, 'मगर फिर भी से बचना', कहा गया है मुझे,सादर।
उम्र भर मैं अलग रहा उससे
वो मगर फिर भी पा गया है मुझे...वाह वाह ...आदरणीय मुनीश तनहा जी खूबसूरत कलाम्के लिए दिली दाद और मुबारकबाद|
आदरणीय मुनीश तन्हा भाई जी, हमेशा की तरह इस बार भी अच्छी ग़ज़ल कही है, बहुत बहुत बधाई।
अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय मुनीश तन्हा |
आइना वो दिखा गया है मुझे
किस अदा से रुला गया है मुझे।
ख्वाब रंगीं दिखा के गुलशन का
इक कफ़स में फँसा गया है मुझे।
कैसे कर्जे से छूट पाऊंगा
कीमती मय पिला गया है मुझे।
कुछ न सीखा ये मानता हूँ मगर
सब्र करना तो आ गया है मुझे।
वोट मांगा है उसने हक़ से "अरुण"
मानो रिश्वत खिला गया है मुझे।
(स्वरचित और अप्रकाशित)
जनाब अरुण साहिब,
बेहतरीन अश्आर मुबारकबाद आपको,
अच्छी ग़ज़ल हुई है आ. अरुण जी
बधाई स्वीकार करें
आ. अरुण निगम सर, क्या खूब ग़ज़ल हुई है। हर शे'र बेहतरीन हुआ है हार्दिक बधाई आपको इस ग़ज़ल के लिए
आइना वो दिखा गया है मुझे
किस अदा से रुला गया है मुझे।
ख्वाब रंगीं दिखा के गुलशन का
इक कफ़स में फँसा गया है मुझे।
उम्दा गज़ल हुयी है आदरणीय अरुण कुमार साहब बधाई स्वीकारें ।
जनाब अरुण कुमार निगम जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
आदरणीय अरुण कुमार निगम जी काबिलेतारीफ गजल मन प्रसन्न हुआ दिली बधाई
वाह्ह्ह वाह्ह्ह अरुण जी शानदार ग़ज़ल हुई है दिल से दाद हाज़िर है गिरह भी खूब हुई
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