साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....
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आदरणीय वृष्टि जी, लाजवाब गजल कही। बधाइयाँ।
//इतना नाज़ुक मिज़ाज़ होना मेरा
अपना कातिल बना गया है मुझे//
वाह वाह इस शेर का कहन बेजोड़ है, बहुत खूब, सभी अशआर अच्छे लगें, तीसरे शेर में तकाबुले रदीफ़ ऐब है.बहुत बहुत बधाई।
मोहतरमा वृष्टि साहिबा ..अच्छे अशआर कहे हैं...गिरह भी बड़ी पुख्तगी के साथ लगाईं है, दाद कबूल करें|
आo vrishty जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कहने के लिए दिल से बधाइयां शेर दर शेर दाद कबूल कीजिए
बढ़िया अशआर आदरणीय व्रिष्ट जी | हार्दिक बधाई|
आदरणीया वृष्टि जी, उम्दा ग़ज़ल हुईं है. तीसरा शेर खास तौर पर अच्छा लगा.हार्दिक बधाई
आद0 वी एम वृष्टि जी सादर अभिवादन। क्या शानदार ग़ज़ल कही आपने,, गिरह भी लाजबाब। आपमें गहन चिंतन है। शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद कुबुल करें।
वस्ल तेरा तो भा गया है मुझे
तू भले ही भुला गया है मुझे।1.
.
प्यार पलता रहा जिगर में यहाँ
हुस्न तेरा चिढ़ा गया है मुझे।2
.
प्यास बढ़ती गई,थमी ही नहीं,
जाम भर तू दिखा गया है मुझे।3
.
क्या करूँ शिकवे' तुझसे' यार बता
खार ही तू चुभा गया है मुझे।4
.
हौसलों की बुलंदी' पाल जिऊँ?
तुंग से तू गिरा गया है मुझे।5
.
ख्वाहिशें दी बता, हुआ तू' ख़फा
इक दफा में फँसा गया है मुझे।6
.
अश्क मैं बेबहर, वफ़ा था' कभी,
वक्त चुपके चुआ गया है मुझे।7
.
राह भटका, असातिजा ही' यहाँ
दो कदम बस चला गया है मुझे।8
.
बादलों की दुआ मिली ही कहाँ
सब्र करना तो' आ गया है मुझे।(तरह)।9
."
मौलिक व अप्रकाशित"
जनाब मनन कुमार जी आदाब,अच्छी कोशिश है,बधाई लें ।
कृपया आयोजन की दूसरी ग़ज़लों पर अपनी प्रतिक्रया देकर सक्रियता दिखाएँ ।
आपका आभार आदरणीय समर जी,नमन।
कृपया आयोजन में अपनी सक्रियता दिखाएँ ।
आदरणीय मनन कुमार सिंह जी अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई।
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