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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-109

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 109वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब मज़हर इमाम साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"कुछ लोग अभी लौट के आए हैं सफ़र से "

221       1221     1221        122

मफ़ऊलु     मुफाईलु       मुफाईलु       फ़ऊलुन

(बह्र: हजज मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ)

 

रदीफ़ :- से

काफिया :- अर( सफर, हुनर, घर, सहर, नज़र, सर आदि)

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 26 जुलाई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 27 जुलाई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा, अर्थात मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है |

 

नियम एवं शर्तें:-

 

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

 

विशेष अनुरोध:-

 

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

 

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मंच संचालक

राणा प्रताप सिंह 

(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

श्रीमान आदरणीय Naveen Mani Tripathi जी बहुत उम्दा बहुत ख़ूब ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें सादर।

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,तरही मिसरे पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

दरिया में उतरिये न फ़क़त जुल्म के डर से ।
पानी न गुज़र जाए कहीं आपके सर से ।।

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ग़ौर करें ।

जुमलों की हक़ीक़त को जरा उनसे पता कर ।
भटके मिले जो लोग शराफ़त की डगर से ।।

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ग़ौर करें ।

कातिल हुई है भीड़ यहां मुद्दतों के बाद ।
निकलो न अकेले ही कहीं रात में घर से ।।

इस शैर के ऊला मिसरे की  बह्र चेक करें ।

खामोशियों के साथ सहा दर्दे सितम जो ।
गिर जाएगा वो शख्स ज़माने की नज़र से ।।

इस शैर के ऊला मिसरे का शिल्प कमज़ोर है,देखियेगा ।

गैरों की मुसीबत से लड़ा आदमी जो है ।
तौला उसे ही जायेगा दुनिया में गुहर से ।।

इस शैर के ऊला मिसरे का शिल्प कमज़ोर है,देखियेगा ।

हर शय का जहाँ आखिरी अंजाम क़ज़ा है ।
जीना है अगर जी तू यहां अपने हुनर से ।।

इस शैर के ऊला में 'जहाँ' शब्द है तो सानी में 'वहाँ' शब्द आना चाहिए ।

इन घोसलों पे किसकी नजर लग चुकी है अब ।
पूछा है परिंदों ने यही राज़ शजर से ।।

इस शैर के ऊला मिसरे का शिल्प कमज़ोर है,देखियेगा ।

रिश्ते  कई  हैं  आज  वसीयत  के लिए वो।
मतलब नहीं था जिनको मेरी खोज खबर से ।।

इस शैर का भाव पूरी तरह स्पष्ट नहीं हुआ,देखियेगा ।

जब से गयी है लौट के आई नहीं है वो ।
क्या कह दिया साहिल ने मुहब्बत में लहर से ।।

ये शैर कुछ ठीक है,लेकिन उर्दू के हिसाब से सहीह शब्द "लह्र" है,नोट कर लें ।

गिरह 
हालात जरा  पूछ तू मंजिल की डगर के ।
कुछ लोग अभी लौट के आये हैं सफर से ।।

इस शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ देखें ।

आ0 समर साहब महत्वपूर्ण इस्लाह हेतु हार्दिक आभार और नमन । 

क़ातिल हुई है भीड़ यहां मुद्दतों के बाद 

यहाँ द इजाफ़त का अक्षर है 

क़ातिल 22 हुई 11है2 भी2 ड़1 य1 हाँ2 मुद2 द्1 तों1 के 2 बा2  

द इजाफ़त में है

नवीन जी आदाब 

ग़ज़ल के उम्दा प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें

आ. भाई नवीन जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

आदरणीय नवीन जी , समर sir सब कह ही चुके हैं। नुक़्ते बहुत सी जगह पर छूट गए हैं। नज़र...,ज़ुल्म, क़ातिल, ख़ामोशियों इत्यादि

4th शेर के उला  मिसरे में (सहे जो )शायद ज़्यादा उचित हो

लग रहा है आज नवीन जी  वाली बात नहीं आई। सादर

नवीन त्रिपाठी जी ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई, ये ग़ज़ल आपके स्तर की नहीं लगी मुझे बाकी समर सर ने विस्तृत टिप्पड़ी कर दी है सलाह पर ग़ौर करें 

"जब से गयी है लौट के आई नहीं है वो ।
क्या कह दिया साहिल ने मुहब्बत में लहर से ।।"

आदरणीय त्रिपाठी जी बहुत बढ़िया बधाई स्वीकार करें |

ना लौटने का फैसला कड़वा है जहर से।
दिल बैठ गया है तेरे जाने की खबर से।।१।।


पूछेंगे हंसी राहों में क्या-क्या थे नजारे।
कुछ लोग अभी लौट के आए हैं सफ़र से।।२।।


जब बेवफा के नाम से बदनाम हुए हम।
तब हो गए आजाद जमाने की फिकर से।।३।।


नफरत के हो या फिर तेरे जज्बात के बादल।
बरसे जो कभी हम पे, तो जी जान से बरसे।।४।।


आसूं थे बड़े चैन से आंखों के मकां मैं।
देके गम आखिर में निकाले गए घर से।।५।।


हाले दिल किस से कहें बोलो कहें कैसे।
घायल हुए थे हम भी कभी तीरे नजर से।।६।।


कितनी भी 'अमित' भूलने की तुम करो कोशिश।
आऊँगा बहुत याद जो गुजरोगे इधर से।।७।।


मौलिक एवं अप्रकाशित

आदरणिय अमित कुमार "अमित"जी
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल।
बधाई स्वीकार करेंं।

आदरणिय बरसे पर शंका है।

आदरणीय रचना भाटिया जी गजल पसंद करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ।

आदरणीय Amit Kumar "Amit" जी बहुत बहुत बधाई बहुत सुन्दर ग़ज़ल की

 कितनी भी 'अमित' भूलने की तुम करो कोशिश।
आऊँगा बहुत याद जो गुजरोगे इधर से।।७।। शानदार सादर

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