आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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वाह्ह्ह आद० कांता जी ,सरसराती हुई हवा के गुजरने से उसका ध्यान सामने गया जहाँ नदी के किनारे तटस्थ विश्वास का वटवृक्ष अपने विस्तार से नई पौध को जीना सिखा रहा था।--प्रकृति भी अपनी विरासत छोड़ती है हमें बहुत कुछ सिखाती है मगर हम ही सीखना नहीं चाहते |बहुत सुन्दर लघु कथा हुई दिल से बधाई लीजिये |
मेहनत और विश्वास में बहुत ताकत होती है, और अपनी संपदा को बचा कर जो कार्य कथा के नायक ने किया वह सराहनीय है| बहुत ही अच्छा सन्देश देती रचना के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीया कांता रॉय जी|
हार्दिक बधाई आदरणीय कांता रॉय जी।बेहतरीन लघुकथा।बहुत मार्मिक और संवेदन शील वर्णन किया है!
बहुत खूब आदरनीय कांता रॉय जी लघुकथा बहुत बढ़िया बनी है . बधाई आप को .
बहुत ही सुन्दर लघु कथा हुई है, बहुत बहुत बधाई आपको आ
“विरासत”
होरी के गोदान के बाद भी उसके पोते मंगल के दिन नहीं फिरे थे। किसानी ने उसे जीवित तो रखा लेकिन उसकी त्रासदियाँ कम नहीं हुई। कितने ही बिल्डर उससे जमीन खरीदने आये लेकिन उसने अपने बुरे वक़्त में भी बित्ता भर जमीन भी नहीं बेचीं। उस दिन जब मंगल खेत में काम कर रहा था तो उसने देखा कि पेड़ पर एक मैना अपना घोंसला बना रही है और पास ही डाल पर फुदकती गौरैया जैसे उसे समझा रही हो। तभी खेत से लगी सड़क पर कार आकर रुकी और बिल्डर के ख़ास खन्नाजी उतरे।
“अरे मंगल आज भारी बारिश और आँधी-तूफ़ान के आसार है. ऐसे में कहाँ तुम खेत में काम करने आ गए।”
“का करे मालिक! काम नहीं करेंगे तो खायेंगे का?”
“भाई मैंने तो तुम्हें इतना अच्छा ऑफर दिया था...?”
दोनों बात करते-करते उसी पेड़ के नीचे पहुँच गए। मंगल ने देखा कि पेड़ की डाल पर फुदकती गौरैया उस मैना को लगातार समझा रही है कि तुम्हारे बाप दादा भले ही इस पेड़ पर रहे हो लेकिन इस आँधी-तूफ़ान में इस पेड़ का बचना मुश्किल है। मगर वह मैना जैसे सब कुछ अनसुना करते हुए बस अपने काम में मग्न रही।
“क्या सोच रहे हो मंगल?”
“सोच नहीं रहा मालिक, उस मैना को देख रहा हूँ।”
खन्ना जी को फिजूल की बातें वैसे भी पसंद नहीं थी इसलिए उस बात को अनसुना करते हुए बोले:
“अच्छा.. तुमने फिर क्या सोचा है?”
मंगल जवाब देता उससे पहले ही अचानक जोरों की हवा चली और आँधी आने लगी। कुछ पेड़ तेज़ हवा को नहीं झेल सके और गिरने लगे। खन्नाजी भी जैसे-तैसे अपनी कार की तरफ भागे। मंगल उसी पेड़ के नीचे खड़ा रहा। जब आँधी थमी तो उसने फिर घोंसले की तरफ़ देखा। मैना घोंसले के कुछ बिखरे तिनके समेटकर फिर उसे संवारने में व्यस्त हो गई थी। मंगल भी फिर खेत में काम करने लगा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
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