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*खेत खलिहान*
कृषक बेचारा सिसक रहा है,खेतों औ खलिहानों में
सदा सूखती जातीं फसलें,देखो आज सिवानों में
पड़ीं दरारें खेतों की ये,दिल पे वज्र गिरातीं हैं
खलिहानों की रौनक फीकी,पल में सब कह जातीं हैं
संसाधन की कमी कहीं पर , सरकारी लाचारी है
घर में किसान की विधवा है,जो किस्मत की मारी है
दिन दिन खेतों खलिहानों की,दशा बिगड़ती जाती है
देख फसल की बर्बादी बस ,मौत नजर ही आती है
विकास की इस हो हल्ला में,सूख रही हरियाली है
खेत बाग वन उजड़ रहे हैं,नहीं कहीं खुशहाली है
किल्लत खेतों में पानी की,मुँह का छिना निवाला है
फसल नहीं अब खलिहानों में,कहीं दाल में काला है
खून पसीना बहा बहा कर,ये किसान क्या पाता है
मन की इच्छा रही अधूरी,हाथ रगड़ रह जाता है
खेतों औ खलिहानों में जब,वापस बहार आएगी
कोना कोना जगमग होगा,किस्मत ही खुल जाएगी
एक कृषक का दर्द बहुत मार्मिक ढंग से उभर कर सामने आया है आ० डॉ छोटेलाल सिंह जी. अंत में आपने एकदम दुरुस्त लिखा है कि जब खेत खलिहान में भर आई तब देश का कोना कोना खुशहाल हो जायेगा. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
आदरणीय योगराज जी सादर अभिवादन आपके उत्साह वर्धन से मन प्रसन्न हुआ लेखनी सफल हुई बहुत बहुत धन्यवाद
किसानों की बेबसी-लाचारी , शोषण आदि को रेखांकित करती बहुत ही बेहतरीन रचना । हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय छोटे लाल जी ।
जनाब डॉक्टर छोटे लाल साहिब,बहुत ही सुन्दर रचना हुई है ,प्रदत्त विषय पर ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।
विषयांतर्गत परिस्थितियां शाब्दिक करती बढ़िया पेशकश। हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ छोटे लाल सिंह जी।
आ. भाई छोटेलाल जी, बेहतरीन रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
आद0 डॉ भैया सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर ताटंक छंद में बढिया और दमदार प्रस्तुति। बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर सादर।
जनाब डॉ.छोटेलल सिंह जी आदाब,प्रदत्त विषय से पूर्ण न्याय करती बहुत उम्दा रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
रचना किस विधा में है ये भी लिखना चाहिए ताकि नये लिखने वालों को समझने में आसानी हो ।
हार्दिक बधाई आदरणीय छोटे लाल सिंह जी। बेहतरीन रचना।
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