आदरणीय साथियो,
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सुंदर सीख भरी लघु कथा। बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी।
अपनी अपनी बारी
'रात सिर में बहुत दर्द था।बेटे से दवा ली थी।'
'मुझे नहीं बताई।'पति दुखी भाव से बोला।
'दवा खाकर सोए थे न,इसीलिए।'
'ओह,शर्मिंदा हूं।आप सोने जाने के पहले आईं थी कहने कि सर में दर्द है,सोने जाती हूं।मैने ही उदासीन भाव से 'गुड नाइट' कहा था।'पति लजाया हुआ बोला।
'नहीं।ऐसी कोई बात नहीं है,सर जी। अभी सर दर्द कम है।रात ज्यादा थी।'भार्या बोली और कुछ काम करने चली गई।
पति सोचने लगा,' मैं ही दोषी हूं। हर बार उसने मेरे लिए ही बहुत कुछ झेला है।मुझे भी।मेरी भावनाओं को भी। चाह कर भी मैं उसके मन की नहीं कर पाया हूं।जाने क्यों,पता नहीं। मेरी जवां उमंगों को कुछ वर्ष पहले तक जिस अंदाज में थामती रही थी,उससे कभी पता ही नहीं चला कि उसे सांसारिकता की क्रियाएं बिलकुल ही नापसंद हैं। कभी वैसा बोलती भी थी, तो उसे मैंने हल्के में लिया या कभी मैने सोचा कि औरत तो वैसे भी भाव खाती ही है।पीछे पीछे तो मर्द को ही भागना पड़ता है। धिक्कार है मुझपर कि मैने उसके सर दर्द को भी अपने बूढ़े मन की उमड़ती ख्वाहिश पर हवा में उड़ा दिया। वह भारी कीमत चुकाती रही है अबतक।अब मेरी बारी है।'
'मौलिक व अप्रकाशित '
बहुत भावपूर्ण और सुंदर लघुकथा लिखी है आपने आ मनन कुमार सिंह जी, महिलाएं जिंदगी भर चुपचाप बहुत बड़ी कीमत चुकाती हैं. बहुत बहुत बधाई इस शानदार रचना के लिए
हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार जी।समाज में नारी जाति के साथ होने वाले भेद भाव पर आधारित बेहतरीन लघुकथा।
आपका हार्दिक आभार भाई तेजवीर जी।
आपका दिली आभार आ.भाई विनय जी।
आदरनीय मनन जी, मुझे लगता है , हम इक दुसरे से खुल कर बात करना भूलते जा रहे हैं जब कोई बोलना भी चाहता , उस के अरमान अंदर ही रह जाते , हमारा ध्यान , मोबाइल , टी वी की तरफ चला जाता है , कभी शांत मन हो तो बात हो , ऐसा ही लघुकथा में हुआ , हम सब कुछ गरंटी का तौर पे ही लेते , अच्छी लघुकथा के लिए , मुबारक
आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन लघुकथा हुई है हार्दिक बधाई।
पत्नी की कीमत अक्सर पति को देर से ही पता चलती है। ख़ैर देर आये दुरुस्त आये। हार्दिक बधाई इस रचना के लिये आदरणीय मनन जी। एक जगह पत्नी के संवाद में पति को 'सर' कहे जाना अखर रहा है।//'नहीं।ऐसी कोई बात नहीं है,सर जी।//
अच्छी लघुकथा है आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। थोड़े सम्पादन की आवश्यकता प्रतीत हो रही है। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।
कीमत- लघुकथा
आज राजेश बहुत दुखी था, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर रजत उससे इतना रुखा व्यवहार क्यों करता है. उसे तो याद भी नहीं है कि कभी उसने उसके साथ किसी भी तरह का गलत व्यवहार किया हो, बल्कि वह हमेशा उसका समर्थन ही करता था अपने ऑफिस में. और आज तो बात भी ऐसी थी जिसमें उसे बधाई देना बनता ही था. दरअसल कल ही पदोन्नति का परिणाम आया था और उसके ऑफिस से रजत इकलौता था जिसे पदोन्नति मिली थी. उसे याद आया कितने रूखे तरीके से रजत ने उसकी बधाई का जवाब दिया था "धन्यवाद, वैसे हम लोग भी अब आगे बढ़ सकते हैं, है कि नहीं?
घर पर उसके चेहरे को देखते ही बाबूजी ने समझ लिया कि आज ऑफिस में कुछ हुआ है. "क्या हो गया राजेश, कोई गंभीर मसला है तो मैं मदद करूँ? उसके बाबूजी आज भी उसके अच्छे दोस्त हैं और हर मुश्किल घड़ी में उसके खेवनहार भी.
उसने पहले तो सोचा कि बात टाल जाए लेकिन फिर उसने बाबूजी को बता ही दिया "आखिर रजत मुझसे ऐसा व्यवहार क्यों करता है बाबूजी, मैंने तो कभी भी उसको यह महसूस नहीं होने दिया कि वह आरक्षित वर्ग से है?
बाबूजी ने एक गहरी सांस ली और उसको समझाते हुए बोले "देखो राजेश, सदियों से हमारे पुरखों ने जो उनके साथ किया है, उसकी कीमत तो हमको चुकानी ही पड़ेगी. तुम निराश मत हो, शायद आगे चलकर रजत को एहसास हो कि पुरखों के द्वारा की गयी गलतियों की सजा आने वाली पीढ़ियों को नहीं देनी चाहिए".
मौलिक एवं अप्रकाशित
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी।समाज में व्याप्त एक कड़वी सच्चाई को उकेरती हुई बेहतरीन लघुकथा।
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