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सही कहा आपने यही बात मैं अपनी प्रतिक्रिया में कह चुका हूँ
सुंदर रचना के लिए बधाई आदरणीय सुनील जी
हार्दिक बधाई आदरणीय सुनील वर्मा जी!!सुंदर लघुकथा !
अति आत्मविश्वास ले डूबा , अच्छे मर्म को शाब्दिक किया है आपने इस कथा में ,बधाई आपको आदरणीय सुनील जी
मोहरों को प्रतीक बना सुंदर रचना .
वाह !!! प्रतीकों का सहारा लेकर हार और जीत की अदभुत लघुकथा का लेखन हुआ है आज भी आपका हमेशा की ही तरह। कम शब्दों में गहरी बात कहने की विलक्षण क्षमता है आपमें। कबूल फरमाइए आदरणीय सुनील जी।
जहाँ किसी टीम में आपस में तालमेल न हो समन्वय ना हो तो यही होना है संगठन ही शक्ति है और शक्ति में ही जीत है बहुत बढ़िया सन्देश देती हुई लघु कथा हार्दिक बधाई आपको सुनील जी .
सफ़ेद हों या काले, मोहरों को तो उसे चलाने-नचाने वाले ही जीतते-हारते हैं. लेकिन इसके बावज़ूद आपकी प्रस्तुति की लाक्षणिकता भली लगी. हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीय सुनीलजी.
"मुझे शतरंज की मोहरे बनकर जीना स्वीकार नहीं |" बहुत ही बढ़िया सन्देश है| इस सन्देश परक रचना हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आ० कल्पना जी|
आदरणीय कल्पना भट्ट जी आप का कथानक बढ़िया है. सन्देश भी उम्दा दिया है. बधाई आप को इन दोनों के लिए.
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