परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के ३० वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है|इस बार का तरही मिसरा मुशायरों के मशहूर शायर जनाब अज्म शाकिरी साहब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत गज़ल से लिया गया है| तो लीजिए पेश है मिसरा-ए-तरह .....
"रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है "
२१२२ ११२२ ११२२ २२
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन
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मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
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बहुत सुन्दर सर जी
बेहतरीन अशआर निकाले हैं आपने बेहद खूबसूरत इस ग़ज़ल के लिएढेरों मुबारकबाद
भाई हरजीत सिंह खालसा जी, आभार.
वाह वाह ...अरुण जी मजा आ गया .....वैसे तो सारे शेर मजेदार हैं पर जो शेर दिल से निकला है उसका ज़ायका ही अलग है
शौक है खर्च का दौलत भी लुटाती है बहुत
खूब लड़ती है मुझे प्यार मगर करती है |6|
ढेर सारी दाद कबूलिये|
शुक्रिया भाई राणा प्रताप सिंह जी..................
आदरणीय अरुणजी, आपकी मजाहिया ग़ज़ल हर तरह से खुश कर गयी है. दिल से मुबारकबाद कह रहा हूँ.
इस ग़ज़ल को आपने भाभीजी को जरूर सुना कर ही पोस्ट किया होगा, यह मान कर चल रहा हूँ. या, दुर्ग से परे रहने का फ़ायदा उठा रहे हैं, भाईसाहब !? :-)))
बहरहाल, इस शेर पर तो दिल से दाद लीजिये -
शौक है खर्च का दौलत भी लुटाती है बहुत
खूब लड़ती है मुझे प्यार मगर करती है
कुछ मिसरों के वज़्न-ऐब आदि पर सुधी जन ही विशेष कहेंगे, इस आशा के साथ बधाई-बधाई-बधाई .. .
आदरणीय, दिल से शुक्रिया.....हकीक़त में गणित जस्ट अपोजिट है...इधर तो (खर्च की) जल्दी जल्दी है, उधर आहिस्ता..आहिस्ता
इधर मिसरे तक का वजन उठाया नहीं जा रहा है , भला फायदा कहाँ से उठाया जा सकेगा :-))))))))))))))))))))))))))))
हा हा हा... .
मैंने बाइक भी नहीं बदली कई सालों से
वो हमेशा यूँ ही ए सी में सफर करती है |2| - तक़दीर अपनी अपनी जो हुआ करती है
भाँप के उसके इरादे मैं काँप जाता हूँ
जब मेरी ओर कभी तिरछी नज़र करती है |3| -नजरों की धार छुरी से क्या कम होती है
मेरी हिंदी तो जुबां से न निकल पाती है
जब भी अंग्रेजी में वो चटर-पटर करती है |5| - तुम पढ़े, पर अमल वे ही किया करती है
शौक है खर्च का दौलत भी लुटाती है बहुत
खूब लड़ती है मुझे प्यार मगर करती है |6 - लड़े वही जो प्यार भी दिल से करती है ।
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह सुन्दर मज़ाहिया,,,,,,,,,,,लेकिन चिन्तन योग्य ,,,,,,,बहुत बहुत मुबारकबाद आपको,,,,,,,,,,,,,,,
आभार कवि-राज बुन्देला जी........
आदरणीय लक्ष्मण भाई साहब , इस शानदार दाद के लिए तहेदिल से शुक्रिया........................
भाँप के उसके इरादे मैं काँप जाता हूँ
जब मेरी ओर कभी तिरछी नज़र करती है |3|ACCEDENT TO HO HI CHUKA HAI...
शौक है खर्च का दौलत भी लुटाती है बहुत
खूब लड़ती है मुझे प्यार मगर करती है |6|..WAH..अरुण कुमार निगम JI maza aa gaya.
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