Added by AVINASH S BAGDE on January 2, 2014 at 10:30am — 26 Comments
१ )
लाता एक नया रंग सा,
कुछ अलग एक नया ढंग सा,
कभी नशा सा, कभी मदहोशी सी,
मेरी ज़ुबान पे कभी ख़ामोशी सी।
प्यार ....... बस तेरा प्यार .......
२)
आस दिलाई फिरसे कसमों ने वादों…
Added by M Vijish kumar on January 2, 2014 at 8:30am — 9 Comments
सभी सम्माननीय पाठकवृंदों को नववर्ष कि शुभकामनाओं सहित
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1222 / 1221 / 1212 / 1222
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सुबह उसकी महक लेकर , हवा मेला सजाती है,
उदासी जुल्फ से उसकी , चुरा के शाम लाती है
वो जब काँपती अंगुली , मेरी लट में फिराती है
यादे बूढ़ी माई की , वो फिर से मन जगाती है
पहुचता हूँ जो उस तक मैं , गुजरती साँझ बेला को
वो दिन भर की कथा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 2, 2014 at 8:00am — 6 Comments
मंच पर सभी विद्वजनों से इस्लाह के लिए
२१२२ १२१२ २२१
पैरवी मेरी कर न पाई चोट
पास रहकर रही पराई चोट
फलसफे अनगिनत सिखा ही देगी
असल में करती रहनुमाई चोट
महके चन्दन पिसे भी सिल पर तो
रोता कब है कि मैनें खाई चोट
सब्र का ही तो मिला सिला हमको
सहते रहकर मिली सवाई चोट
तन्हा ढ़ोता है दर्द हर इंसां
क्यूँ तू रिश्ते बढ़ा न पाई चोट…
ContinueAdded by vandana on January 2, 2014 at 8:00am — 22 Comments
गुस्ताख निगाहें भी पहली नज़र में फिसल गई ,
जी भर के देख भी न पाया ,
इसमें मेरा क्या कसूर था।
नादान दिल के कदम भी लड़खड़ाते-लड़खड़ाते संभल गए ,
दूरी मै तय न कर पाया ,
इसमें राहों का क्या कसूर था।
चंद लम्हा भी तेरे बिन रेह न सका, तेरे प्यार में इतना मजबूर हुआ ,
वक़्त ने हरकत ऐसी ली,
इसमें मेरा क्या कसूर था।
रूबरू हुआ जब तुझसे मै, मुझपे सवार तेरा फितूर हुआ ,
ज़ोर किसी का कहाँ चलता है ,
इसमें दिल का…
Added by M Vijish kumar on January 1, 2014 at 8:30pm — 12 Comments
उत्थान पतन के बीच साल फिर बीत गया,
बस आशा और निराशा के संग बीत गया।
कुछ दु:ख मिले कुछ आहत मन उल्लसित हुआ,
वह सुख मिले बस इंतजार में बीत गया।
नव वर्ष किरण फिर आशा की लेकर आया,
जनगण मन के मन-मन में फिर उल्लास जगा।
यह जगा रहे उल्लास पूर्ण हो अभिलाषा,
जनता की भाषा बने तंत्र की परिभाषा।
अपराध न हो, हर नारी को सम्मान मिले,
हर मुरझाए…
Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on January 1, 2014 at 8:09pm — 7 Comments
ग़ज़ल
बहर-।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ (प्रथम प्रयास)
..
कभी चाँदनी सी खिला करे,
कभी धूप बन के सजा करे।
..
सभी चाहतों से हों देखते,
तू नज़र-नज़र में बसा करे।
..
कोई ख़्वाब में हो सँवारता,
कोई राहतों की हवा करे।
..
जहाँ लड़खड़ाएँ क़दम वहीं,
कोई हाथ बढ़ के वफ़ा करे।
..
रहें मंज़िलें तेरे सामने,
हो कठिन डगर तो हुआ करे।
..
जिसे देखता हूँ मैं ख़्वाब में,
वही शख़्स तुझमें मिला करे।
..
मेरा फ़न रहे,तेरी सादगी,
मेरी हर…
Added by Ravi Prakash on January 1, 2014 at 6:00pm — 12 Comments
नई सुबह के स्वागत् में, हम वंदनवार लगायें।
रंग बिरंगे फूलों से, घर आंगन द्वार सजायें॥
नये वर्ष के अभिनंदन में, गीत नया हम गायें।
मंगल की सब करें कामना, मिलकर जश्न मनायें॥
फूल खिले हैं, बगिया महकी , हैं भँवरे मंडराये।
भ्रमर सरीखे हम भी झूमे , गुंजन करते जायें ॥
कुहू -कुहू जब कोयल कूके, चहुँदिश मस्ती छाये।
हम भी ऐसी बोली बोलें , मन सबका…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 1, 2014 at 12:30pm — 28 Comments
॥ नये साल की पहली ग़ज़ल मेरे भगवान को समर्पित ॥
ॐ श्री साई नाथाय नमः
11212 11212
मेरी शायरी का असर है तू
मेरी ज़िन्दगी का हुनर है तू
मै हूँ एक बुझती सी आग बस
मुझे फिर जला दे ,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 1, 2014 at 8:30am — 35 Comments
आँखों देखी 8 - दक्षिण गंगोत्री में सांस्कृतिक उत्सव
शीतकालीन अंटार्कटिका के विविध रंग हमें दिख रहे थे और हम उनमें डूबते जा रहे थे. लेकिन, जैसा कि मैंने पहले कहीं कहा है, देश और परिवार से इतनी दूर रहकर अवर्णनीय कठिन परिस्थितियों का सामना करना इतना आसान नहीं था. अंटार्कटिका के इतिहास में कई ऐसे उदाहरण हैं जिनसे पता चलता है कि ऐसी विषम परिस्थितियों में रहकर अभियान दल के सदस्यों में शारीरिक समस्याओं के साथ ही मानसिक समस्याएँ भी उत्पन्न…
ContinueAdded by sharadindu mukerji on January 1, 2014 at 3:43am — 5 Comments
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