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Naveen Mani Tripathi's Blog – January 2017 Archive (6)

ग़ज़ल क्या गिला है रुक्मिणी से

2122 2122

तुम मिली थी सादगी से ।

याद है चेहरा तभी से ।।



जिक्र आया फिर उसी का ।

जब गया उसकी गली से ।।



बादलों का यूं घुमड़ना ।

है जमीं की तिश्नगी से ।।



यूं मुकद्दर आजमाइश ।

कर गई फ़ितरत ख़ुशी से ।।



गीत भंवरा गुनगुनाया ।

आ गई खुशबू कली से ।।



मैकशों का क्या भरोसा ।

वास्ता बस मैकशी से ।।



सिर्फ राधा ढ़ूढ़ते हो ।

क्या गिला है रुक्मिणी से ।।



जोड़ता है रोज मकसद ।

आदमी को आदमी से… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on January 31, 2017 at 10:30pm — 12 Comments

ग़ज़ल- इसे जुल्म में न शुमार कर

11212 11212 11212 11212

है नई नई ये मेंरी ख़ता इसे जुल्म में न शुमार कर ।

है जो आशिकी का ये दौर अब इसे इस तरह न तू ख्वार कर ।।



उसे जिंदगी से नफ़ा मिला मुझे दर्द का है सिला मिला ।

ये हिसाब अब न दिखा मुझे न तिजारतों में दरार कर ।।



वो हवा चली ही नहीं कभी वो दरख़्त को न नसीब थी ।

मेरे फ़िक्र की है ये आरज़ू तू इसी चमन में बहार कर ।।



यहाँ चाहतों में है दम कहाँ कई चाहतें भी दफ़ा हुईं ।

है मुहब्बतों का सवाल ये कहीं जिंदगी को निसार कर… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on January 26, 2017 at 12:44am — 4 Comments

ग़ज़ल - झोंका कोई हिज़ाब उठाता ज़रूर है

221 2121 1221 212*

जुर्मो सितम में उसके इज़ाफ़ा ज़रूर है ।

चेहरा जो आईनो से छुपाता ज़रूर है ।।



गोया वो मेरा साथ निभाया ज़रूर है ।

पर हुस्न का गुरूर जताता ज़रूर है ।।



महफ़ूज़ मुद्दतों से यहां दिल पड़ा रहा ।

तुमने मेरा गुनाह संभाला ज़रूर है ।।



बेख़ौफ़ जा रहा है वो बारिश में देखिये ।

शायद किसी से वक्त पे वादा ज़रूर है।।



आबाद हो गया है गुलिस्तां कोई मगर ।

निकला किसी के घर का दिवाला ज़रूर है।।



गुम हो सके न आज तलक भी ख़याल से… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on January 22, 2017 at 3:05pm — 14 Comments

ग़ज़ल

2122 2122 212

चाँद को जब भी सवाँरा जाएगा ।

टूट कर कोई सितारा जाएगा ।।



है कोई साजिश रकीबों की यहाँ ।

जख़्म दिल का फिर उभारा जाएगा ।।



सिर्फ मतलब के लिए मिलते हैं लोग ।

वह नज़र से अब उतारा जाएगा ।।



कुछ अदाएं हैं तेरी कातिल बहुत ।

यह हुनर शायद निखारा जाएगा ।।



रिंद है मासूम उसको क्या खबर ।

जाम से बे मौत मारा जाएगा ।।



उम्र गुजरी है वफादारी में सब ।

बेवफा कहकर पुकारा जाएगा ।।



टूट जायेंगी वो दिल की… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on January 20, 2017 at 2:39am — 15 Comments

ग़ज़ल- बिजलियाँ कुछ गिराया करो

212 212 212

रुख से जुल्फें हटाया करों ।

तुम नज़र यूँ ही आया करो ।।



चाँद पर हक़ हमारा भी है ।

अब तो नज़रें मिलाया करो ।।



है अना ही अना चार सू ।

जुल्म इतना न ढाया करो ।।



कर दो आबाद कोई चमन ।

खुशबुओं को लुटाया करो।।



बारहा जिद ये अच्छी नही ।

बात कुछ मान जाया करो ।।



गो ये सच है की मजबूर हूँ ।

आइना मत दिखाया करो ।।



है ज़रूरी तो जाओ मगर ।

वक्त पर लौट आया करो ।।



बेवफा मत कहो तुम उसे… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on January 10, 2017 at 1:30am — 9 Comments

ग़ज़ल --दर्द की तासीर बन दिल में ठहर जाते हैं लोग

2122 2122 2122 212



इस तरह कुछ जोश में हद से गुज़र जाते हैं लोग।

जुर्म की हर इन्तिहाँ को पार कर जाते हैं लोग ।।



हर तरफ जलते मकाँ है आदमी खामोश है ।

कुछ सुकूँ के वास्ते जाने किधर जाते हैं लोग ।।



अहमियत रिश्तों की मिटती जा रही इस दौर में ।

है कोई शमशान वह अक्सर जिधर जाते हैं लोग ।।



यह शिकन ज़ाहिर न हो चेहरा न हो जाए किताब।

आईने के सामने कितना सवर जाते हैं लोग।।



गाँव खाली हो रहा कुछ रोटियों की फेर में ।

माँ का आँचल छोड़ कर… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on January 8, 2017 at 4:09pm — 8 Comments

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