कहाँ रहते वो कैसे रहते
उनसे न होती अपनी बात
वैर भाव की बात नही ये, अब उनसे न कोई दुआ-सलाम।।
खैरियत भी वो नहीं पूछते
क्या प्रेमभाव की करूँ मैं बात
अच्छे-खासे रिश्ते उनसे, न जानें क्यूँ वो रहते नाराज।।
हसी-मजाक, टिटौली चलती
हमारी कौन सी लगी उन्हें बुरी बात
कल तक थे जो अपनों से बढ़कर, है आज उसने दूरी खास।।
आना-जाना लगा रहता था
मिलजुल कर पहले रहते…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on February 21, 2023 at 9:38am — 4 Comments
प्यार-शहादत का दिन ये
क्यूं जज़्बात से किसी के खेले
एक ओर है पुलवामा की घटना
उधर, ले प्रेमियों के दिल हिचकोले।।
कितनों के सुहाग उजड़ गए
दुनियाँ, कितनों के लाल थे छोड़े
भाई बिन कितनी बहनें रोती
कितने, पिता की याद में रोते।।
कोई खुश है प्रेम को पाकर
कोई इंतजार में इत-उत डोले
रात-दिन है कोई जागता
कुछ प्रेमी की याद में रोते।।
बड़ा है दिन ये दोनों का ही
क्यूं अहमियत न इसकी समझें
श्रृद्धा-सुमन तू…
Added by PHOOL SINGH on February 14, 2023 at 9:30am — No Comments
अज्ञातवास जब समाप्त हुआ
पांडवों में साहस भरा
कनक सदृश तप कर आए
उनमें प्रखर उत्साह का तेज बड़ा।।
कायर दहलता विपत्ति में अक्सर
शूरमा विचलित न कभी हुआ
गले लगाकर हर दुःख-विध्न को
धीरज से उसका तेज हरा।।
कांटो भरी राह पर चलकर
उफ्फ तक न वो कभी किया
धूल के गहने पहन चरण में
साहस के सहारे बढ़ता गया।।
उद्योग निरत नित करता रहता
उसने सब सुख-सुविधाओ का त्याग किया
शूलों के सदा समूल विनाश को
राह स्वयं के विकास की…
Added by PHOOL SINGH on February 12, 2023 at 8:29am — 2 Comments
हवन की अग्नि बुझ चुकी थी
शिक्षा प्राप्ति की आई बात
गुरू द्रोण ने जब इंकार किया तो
भगवान परशुराम की आई याद।।
नीड़ो में था कोलाहल जारी
फूलों से महका उपवन
ज्ञान की जिज्ञासा थी मन में भड़की
निकला खोज में जिसकी कर्ण।।
द्वार तृण-कुटी पर परशु भारी
आभाशाली-भीषण जो भारी भरकम
धनुष-बाण एक ओर टंगे थे
पालाश, कमंडलू, अर्ध अंशुमाली एक पड़ा लौह-दंड।।
अचरज की थी बात निराली
तपोवन में किसनें वीरता पाली
धनुष-कुठार…
Added by PHOOL SINGH on February 11, 2023 at 7:21am — No Comments
सूर्य कहलाएं पिता थे जिसके
माता सती कुमारी
जननी का क्षीर चखा न जिसने
वो वीर अद्भुत धनुर्धारी।।
निज समाधि में निरत रहा जो
स्वयं विकास किया था भारी
पालना बनी थी आब की धारा
बिछौना बनी पिटारी।।
ज्ञानी-ध्यानी, प्रतापी-तपस्वी
जिसका पौरुष था अभिमानी
कोलाहल से दूर नगर के
जो सम्यक अभ्यास का था पुजारी।।
नतमस्त्क करता प्रतिबल को
लगाता घात विजय की खूब दिखा
प्रचंडतम धूमकेतु-सा…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on February 10, 2023 at 11:00am — No Comments
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