1-
हुआ प्रभात
उपासना मे लीन
ऋषी तल्लीन
कर जल अर्पण
हुआ प्रशन्न चित
2-
ऋतु बसंत
खिले कमल दल
स्वर्णिम धरा
पुष्प-पुष्प भ्रमर
करते रसपान
3-
रति-अनंग
नृत्य प्रेम मगन
शिव प्रचंड
भष्मित तन-मन
भयभीत हैं गण
४-
पाँव पखारें
कृष्ण गोपियों संग
देखते रास
शूल विधे असंख्य
नारी वेश में शिव
५-
कर श्रृंगार
नाग,देव,असुर
हरी में हर
नृत्य हुआ…
Added by Meena Pathak on February 15, 2014 at 7:55pm — 6 Comments
आज सुबह पूजा कर के कल्याणी देवी कमरे मे बैठ गयीं | ठण्ड कुछ ज्यादा थी तो कम्बल ओढ़ कर आराम से कमरे मे गूंज रही गायत्री मन्त्र का आनंद ले रही थी | आँखे बंद कर के वो पूरी तरह से गायत्री मन्त्र मे डूब चुकी थीं तभी अचानक खट-खट की आवाज से उन्होंने आँखे खोली | कोई दरवाजा खटखटा रहा था | बहू रसोई मे थी और पतिदेव पूजा कर रहे थे सो उनको ही मन मार कर कम्बल से निकलना पड़ा | अच्छे से खुद को शाल मे लपेटते हुए उन्होंने गेट खोला तो चौंक गईं | एक मुस्कुराता हुआ आदमी सुन्दर सा गुलाब के फूलों का गुलदस्ता लिए खड़ा…
ContinueAdded by Meena Pathak on February 14, 2014 at 5:18pm — 15 Comments
वो मुर्गे की बांग
वो चिडियों की चीं-चीं
वो कोयल की कूक
अब वो भोर कहाँ ..
वो जांत का घर्र-घर्र
वो चूड़ी की खन-खन
वो माई का गीत
अब वो भोर कहाँ ..
वो कंधे पर हल
वो बैलों की जोड़ी
वो घंटी का स्वर
अब वो भोर कहाँ ..
वो पहली किरन
वो अर्घ-अचवन
वो पार्थी की पूजा
अब वो भोर कहाँ ..
वो माई की टिकुली
वो पीला सिन्दूर
वो पायल की छम-छम
अब वो भोर कहाँ ..
वो…
Added by Meena Pathak on February 12, 2014 at 3:00pm — 17 Comments
लो,फिर याद आई
आँसुओं की बाढ़ आई
थी उनके करीब इतने
वो थे मुझमे मै थी उनमे |
कहा था कभी
चली जायेगी ससुराल
कैसे रहूँगा तुम बिन,
खुद छोड़ गये साथ
ये भी ना सोचा
कैसे रहूँगी उन बिन |
बरसों बीत गये
निहारते हुए राह
ना कोई सन्देश ना कोई तार
खड़ी हूँ अब भी वहीं
संभाले दर्द का सैलाब
छोड़ गये थे पापा जहाँ |
मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Added by Meena Pathak on February 5, 2014 at 3:00pm — 16 Comments
कितना कहा था कि घरेलू लड़की लाओ...पर मेरी कोई सुने तब ना...सब को पढ़ी-लिखी बी-टेक लड़की ही चाहिए थी...अब ले लो कमाऊ बहू...मुंह पर कालिख मल के चली गई, अरे...उसे किसी और से प्रेम था तो मेरे बेटे की जिंदगी क्यों खराब की ...पहले ही मना कर देती तो ये दिन तो ना देखना पड़ता हमें..अब मै किसी को क्या मुंह दिखाऊँगी...सब तो यही कहेंगे ना कि सास ही खराब होगी ..उसी के अत्याचार से तंग आ कर बहू ने घर छोड़ा होगा..हे राम ! अब मै कहाँ जाऊँ...क्या करूँ...अरे...कोई उसे समझा-बुझा के घर ले आओ...मै उसके पाँव पकड़ लेती…
ContinueAdded by Meena Pathak on February 3, 2014 at 7:00pm — 6 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |