मैं आज चिड़ी सी उड़ती फिरती हूँ,
खुद चढ़ अंबर का व्यास नापती हूँ ,
कर दिया किसी ने झन-झन मेरे पर को,
मैं आँखों के दो दीप लिए फिरती हूँ ।
मैं प्रेम-सुधा रस पान किया करती हूँ ,
मैं कभी ना खुद का ध्यान किया करती हूँ ,
जग जाकर पूछे उनसे जो अपनी कहते ,
मैं अपने दिल का गीत सुना करती हूँ ,
मैं सुर- बाला सा, उन्माद लिए फिरती हूँ ,
मैं नए -नए उपहार लिए फिरती हूँ ,
यह मंगलदाई, संसार ना मुझ को भाता ,
मैं खुद की…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 27, 2014 at 7:00pm — 4 Comments
बचपन का गाँव
नीम की छांव
छोटा सा कोना
कच्चा सा आँगन
बहुत याद आता है ।
गाँव के मेले
ढेरों झमेले
दोनें में चाट
बर्फ को गोला
बहुत याद आता है ।
बचपन की सखियाँ
डिब्बे में गुड़ियाँ
छोटा सा गुड्डा
उन से बतयाना
बहुत याद आता है ।
सावन के झूले
हाथों में मेंहदी
काँच की चूड़ी
निवौली की पायल
बहुत याद आते है…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 25, 2014 at 8:51pm — 5 Comments
12-)
तोल-मोल कर जब ये बोले ।
दिल के तालों को ये खोले ।
कभी ना होती इसे थकान,
क्या सखी साजन ?
ना सखि जुवान !
13-)
भारत माँ का सच्चा लाल ।
लंबा कद और ऊँचा भाल ।
इस पर बनते लाखों गान,
क्या सखि साजन ?
ना सखि जवान !
14-)
सर्दी गर्मी या हो बरसात।
हर दम रहता है तैनात ।
कभी ना करता आले बाले ,
क्या सखि छाते ?
ना सखि ताले!
15-)
गर्मी में मिलता ना…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 24, 2014 at 11:00pm — 10 Comments
1-)
छू जाता है तन को मेरे।
कह जाता है मन को मेरे ।
उसको हरदम है कुछ कहना,
क्या सखि साजन ?
ना सखि नैना !
2-)
छूते है तन मन को मेरे ।
बिन बोले ही मेरे तेरे ।
मिल जाते हम सब के संग,
क्या सखि साजन ?
ना सखि रंग !
3-)
दिल को मेरे छू जाती है ।
भावनाओं को सहलातीं है ।
इन की नहीं है कोई म्यादे ,
क्या फरियादें ?
ना सखि यादें !
4-)
टिकट…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 24, 2014 at 7:30pm — 7 Comments
आज बता दे दीप -शिखा प्रिय
मैं तुझ सी बन जाऊँ कैसे ?
दीप तले है नित अँधियारा
फिर भी तू अँधियारा हरता
पल -पल तू, धुआँ रूप में
हर पल, खुद की व्यथा उगलता
देख रही हूँ ज्योति तेरी,में
तेरा व्याकुल ह्रदय मचलता
पर कालिमा हरने में ही
दीप तेरा यह जीवन जलता
मानवता को रोशन कर के भी
मैं उजयारा कर पाऊँ कैसे ?
उढ़कर आता जब परवाना
आलिंगन करने तुझको
आखिर वह,जल ही…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 21, 2014 at 10:00pm — 3 Comments
ज़िंदगी कसौटियों पर कस कर
निखरती सी गई
जितनी ये तबाह हुई
उतनी संभरती सी गई
आदमियत और गद्दारी में आकर
घुलती सी गई
कभी ये राम,रहीम ,नानक
में बँटती सी गई…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 16, 2014 at 10:25am — 12 Comments
आस बांधे खड़ा था
धूप से तन जल रहा था
जेष्ठ भी तो तप रहा था
आस थी बरसात की
प्यास थी एक बूंद की
आ गिरेगी शीश पर
तृप्त होगी देह तब
यह सोच कर उत्साह मन में हो रहा था
घन-घटा चहूँ ओर छाती जा रही थी
मलय शीतल उमड़-घुमड़ के बह रही थी
मेघ घिर-घिर आ रहे थे
मोर भी संदेश मीठा दे रहे थे
हर्ष दिल में हो रहा था
आनंद से छोटे बड़े सब घूमते
बाल मन से थे धरा को चूमते
एक दूसरे से मिल रहे जैसे गले
उल्लास…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 8, 2014 at 4:30pm — 6 Comments
Added by kalpna mishra bajpai on February 4, 2014 at 10:15pm — 10 Comments
बाबुल,मेरा मन आज भयो जैसे पाखी
जो मैं होती बाबा तेरे घर गौरैया
नित आंगन तेरे आती
जो मैं होती बाबा तेरी खरक की गैया
नित खरक में दर्शन तेरे पाती
जो मैं होती बाबा तेरे द्वार निमरिया
नित शीतल छाँव बिछाती
जो मैं होती बाबा तेरे सिर का साफा
नित धूप से तुम्हें बचाती
जो मैं बाबा शगुन चिरैया
नित मीठे गीत सुनाती
मेरा मन आज भयो जैसे पाखी
मैं तो भई बाबा बेमन बिटिया
दूर देश जाके ब्याही
मन ही मन…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 3, 2014 at 9:00pm — 11 Comments
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