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Kalpna mishra bajpai's Blog – February 2014 Archive (9)

मैं और मेरा "मन"

मैं आज चिड़ी सी उड़ती फिरती हूँ,

खुद चढ़ अंबर का व्यास नापती हूँ ,

कर दिया किसी ने झन-झन मेरे पर को,

मैं आँखों के दो दीप लिए फिरती हूँ ।

मैं प्रेम-सुधा रस पान किया करती हूँ ,

मैं कभी ना खुद का ध्यान किया करती हूँ ,

जग जाकर पूछे उनसे जो अपनी कहते ,

मैं अपने दिल का गीत सुना करती हूँ ,

मैं सुर- बाला सा, उन्माद लिए फिरती हूँ ,

मैं नए -नए उपहार लिए फिरती हूँ ,

यह मंगलदाई, संसार ना मुझ को भाता ,

मैं खुद की…

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Added by kalpna mishra bajpai on February 27, 2014 at 7:00pm — 4 Comments

अतुकांत

बचपन का गाँव

नीम की छांव

छोटा सा कोना

कच्चा सा आँगन

बहुत याद आता है ।

गाँव के मेले 

ढेरों झमेले

दोनें में चाट

बर्फ को गोला

बहुत याद आता है ।

बचपन की सखियाँ

डिब्बे में गुड़ियाँ

छोटा सा गुड्डा

उन से बतयाना

बहुत याद आता है ।

सावन के झूले

हाथों में मेंहदी

काँच की चूड़ी

निवौली की पायल

बहुत याद आते है…

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Added by kalpna mishra bajpai on February 25, 2014 at 8:51pm — 5 Comments

कह-मुकरियाँ (१२ से १८) - कल्पना मिश्रा बाजपेई

12-)

तोल-मोल कर जब ये बोले ।

दिल के तालों को ये खोले ।

कभी ना होती इसे थकान,

क्या सखी साजन ?

ना सखि जुवान !

13-)

भारत माँ का सच्चा लाल ।

लंबा कद और ऊँचा भाल ।

इस पर बनते लाखों गान,

क्या सखि साजन ?

ना सखि जवान !

14-)

सर्दी गर्मी या हो बरसात।

हर दम रहता है तैनात ।

कभी ना करता आले बाले ,

क्या सखि छाते ?

ना सखि ताले!

15-)

गर्मी में मिलता ना…

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Added by kalpna mishra bajpai on February 24, 2014 at 11:00pm — 10 Comments

कह-मुकरियाँ - कल्पना मिश्रा बाजपेई

1-)

छू जाता  है तन को मेरे। 

कह जाता  है मन को मेरे ।

उसको हरदम है कुछ कहना,

क्या सखि साजन ?

ना सखि नैना !

2-)

छूते है तन मन को मेरे ।

बिन बोले ही मेरे तेरे ।

मिल जाते हम सब के संग,

क्या सखि साजन ?

ना सखि रंग !

3-)

दिल को मेरे छू जाती है ।

भावनाओं को सहलातीं है ।

इन की नहीं है कोई म्यादे ,

क्या फरियादें ?

ना सखि यादें !

4-)

टिकट…

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Added by kalpna mishra bajpai on February 24, 2014 at 7:30pm — 7 Comments

दीप -शिखा (कल्पना मिश्रा बाजपेई)

आज बता दे दीप -शिखा प्रिय 

मैं तुझ सी बन जाऊँ कैसे ?

दीप तले है नित अँधियारा 

फिर भी तू अँधियारा हरता

पल -पल तू, धुआँ रूप में

हर पल, खुद की व्यथा उगलता

देख रही हूँ ज्योति तेरी,में

तेरा व्याकुल ह्रदय मचलता

पर कालिमा हरने में ही

दीप तेरा यह जीवन जलता

मानवता को रोशन कर के  भी

मैं उजयारा कर पाऊँ कैसे ?

उढ़कर आता जब परवाना

आलिंगन करने तुझको

आखिर वह,जल ही…

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Added by kalpna mishra bajpai on February 21, 2014 at 10:00pm — 3 Comments

जिन्दगी

ज़िंदगी कसौटियों पर कस कर

निखरती सी गई

जितनी ये तबाह हुई

उतनी संभरती सी गई

आदमियत और गद्दारी में आकर

घुलती सी गई

कभी ये राम,रहीम ,नानक

में बँटती सी गई…

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Added by kalpna mishra bajpai on February 16, 2014 at 10:25am — 12 Comments

दरख़्त की आशा

आस बांधे खड़ा था

धूप से तन जल रहा था 

जेष्ठ भी तो तप रहा था

आस थी बरसात की

प्यास थी एक बूंद की

आ गिरेगी शीश पर

तृप्त होगी देह तब

यह सोच कर उत्साह मन में हो रहा था

घन-घटा चहूँ ओर छाती जा रही थी

मलय शीतल उमड़-घुमड़ के बह रही थी 

मेघ घिर-घिर आ रहे थे

मोर भी संदेश मीठा दे रहे थे

हर्ष दिल में हो रहा था

आनंद से छोटे बड़े सब घूमते

बाल मन से थे धरा को चूमते

एक दूसरे से मिल रहे जैसे गले

उल्लास…

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Added by kalpna mishra bajpai on February 8, 2014 at 4:30pm — 6 Comments

कविता (बेटी के दिल से)

खड़ी-खड़ी देखती हूँ जब मैं पिता की ओर

मन हुलसाती बाबा हांथ न बढ़ाते हैं



भैया को मंगाया गया चन्दन का पालना

मेरे लिए बांस का खटोला बिछाते हैं



भैया के खेलने को मोटर कार और बाजा

मेरे लिए खेलने को लाले रोज पड़ते हैं



भैया के खाने को दूध और बताशा खीर

मेरे लिए रोटी दाल बहुत बताते हैं



भैया के पढ़ने को विदेश पठाया गया

मेरे लिए अक्षर ज्ञान बहुत बताते हैं



भैया को बना के दिये महल-दुमहला खूब

मेरे लिए छोटी सी पालकी मंगाते… Continue

Added by kalpna mishra bajpai on February 4, 2014 at 10:15pm — 10 Comments

कविता (कल्पना मिश्रा बाजपेई)

बाबुल,मेरा मन आज भयो जैसे पाखी

जो मैं होती बाबा तेरे घर गौरैया

नित आंगन तेरे आती

जो मैं होती बाबा तेरी खरक की गैया 

नित खरक में दर्शन तेरे पाती

जो मैं होती बाबा तेरे द्वार निमरिया

नित शीतल छाँव बिछाती

जो मैं होती बाबा तेरे सिर का साफा

नित धूप से तुम्हें बचाती

जो मैं बाबा शगुन चिरैया

नित मीठे गीत सुनाती

मेरा मन आज भयो जैसे पाखी

मैं तो भई बाबा बेमन बिटिया

दूर देश जाके ब्याही 

मन ही मन…

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Added by kalpna mishra bajpai on February 3, 2014 at 9:00pm — 11 Comments

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