२१२२/२१२२
मत निकल तलवार लेकर
जय मिलेगी प्यार लेकर।१।
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युद्ध नित बर्बाद करता
जी तनिक यह सार लेकर।२।
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जग मिटा कर दुख सुनाने
जायेगा किस द्वार लेकर।३।
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इस भवन का क्या करूँगा
तुम गये आधार लेकर।४।
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नेह की दुनिया अलग है
हो जा हल्का भार लेकर।५।
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बोझ सा हरपल है लगता
दब गये आभार लेकर।६।
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कर गया कंगाल सब को
हर भरा सन्सार लेकर।७।
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टूटती रिश्तों की माला
जोड़ ले कुछ तार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2021 at 10:38pm — 4 Comments
२२१/२१२२/२२१/२१२२
वैसे तो उसके मन की बातें बहुत सरस हैं
पर काम इस चमन में फैला रहे तमस हैं।१।
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पहले भी थीं न अच्छी रावण के वंशजों की
अब राम के मुखौटे कैसी लिए हवस हैं।२।
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ये दौर कैसा आया मर मिट गये सहारे
चहुँदिश यहाँ जो दिखतीं टूटन भरी वयस हैं।३।
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पसरी जो आँगनों में उन से हवा लड़ेगी
इन से लड़ेंगे कैसे जो मन बसी उमस हैं।४।
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उस गाँव में हैं अब भी बेढब सुस्वाद…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 21, 2021 at 9:19am — 10 Comments
२१२२/२१२२/२१२२
बेड़ियाँ टूटी हैं बोलो कब स्वयम् ही
मुक्ति को उठना पड़ेगा अब स्वयम् ही।१।
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बाँधकर उत्साह पाँवों में चलो बस
पथ सहज होकर रहेंगे सब स्वयम् ही।२।
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पहरूये ही सो गये हों जब चमन के
है जरूरत जागने की तब स्वयम् ही।३।
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अब न आयेगा यहाँ अवतार हमको
करने होंगे मान लो करतब स्वयम् ही।४।
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कल जो सेवक हैं कहा करते थे देखो
हो गये है आज वो साहब स्वयम्…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2021 at 7:30am — 14 Comments
काँटा चुभता अगर पाँव को धीरे धीरे
आ जाते हम यार ठाँव को धीरे धीरे।१।
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कच्ची कलियाँ क्यों मरती बिन पानी यूँ
सूरज छलता अगर छाँव को धीरे धीरे।२।
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खेती बाड़ी सिर्फ कहावत होगी क्या
निगल रहा है नगर गाँव को धीरे धीरे।३।
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कौन दवाई ठीक करेगी बोलो राजन
पेट देश के लगी आँव को धीरे धीरे।४।
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जीत कठिन भी हो जाती है सरल उन्हें
जो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 14, 2021 at 7:38am — 8 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
पहने हुए हैं जो भी मुखौटा किसान का
हित चाहते नहीं हैं वो थोड़ा किसान का।१।
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बन के हितेशी नित्य हित अपना साधते
बाधित करेंगे ये ही तो रस्ता किसान का।२।
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नीयत है इनकी खोटी ये करने चले हैं बस
दस्तार अपने हित में दरीचा किसान का।३।
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होती इन्हें तो भूख है अवसर की नित्य ही
चाहेंगे पाना खून पसीना किसान का।४।
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स्वाधीन हो के देश में किस ने उठाया है
रुतबा किया सभी ने है नीचा किसान का।५।
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सब के टिकी हुई है ये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 7, 2021 at 10:28am — 10 Comments
हम तो हल के दास ओ राजा
कम देखें मधुमास ओ राजा।१।
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रक्त को हम हैं स्वेद बनाते
क्या तुमको आभास ओ राजा।२।
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अन्न तुम्हारे पेट में भरकर
खाते हैं सल्फास ओ राजा।३।
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पीता हर उम्मीद हमारी
कैसी तेरी प्यास ओ राजा।४।
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हम से दूरी मत रख इतनी
आजा थोड़ा पास ओ राजा।५।
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खेती - बाड़ी सब सूखेगी
जो तोड़ेगा आस ओ राजा।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 4, 2021 at 9:56am — 23 Comments
हर लहर से बढ़ के अब तो रार साथी तेज कर
पार जाने के लिए पतवार साथी तेज कर।१।
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ये लहर ऐसे न साथी साथ देगी अब यहाँ
झील के पानी में थोड़ी मार साथी तेज कर।२।
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जुल्म के पत्थर इसी से कट गिरेंगे देखना
पहले पत्थर पर कलम की धार साथी तेज कर।३।
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काट दी है जीभ इन की चीखना सम्भव नहीं
सच कहेंगी बेड़ियाँ झन्कार साथी तेज…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2021 at 7:58pm — 10 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
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शेष इस में क्या रहा इनकार कहने के लिए
कह गया कनखी में सब दरवार कहने के लिए।१।
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काम जनता के न आयी आज तक ये एक दिन
यूँ तो जनता की रही सरकार कहने के लिए।२।
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इश्तहारों के सिवा जनहित का उसमें कुछ नहीं
शेष है बस नाम ही अखबार कहने के लिए।३।
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काम कोई भी किया ऐसा न जिसका दम भरें
बात ही उस की रही दमदार कहने के लिए।४।
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सब दिहाड़ी पर बुलाए उस के ही मजदूर थे
लोग जितने भी जुटे आभार कहने के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2021 at 3:30am — 3 Comments
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