नवगीत:
तुमने खेली हमसे होली
संजीव 'सलिल'
*
तुमने खेली हमसे होली
अब हम खेलें.
अब तक झेला बहुत
न अब आगे हम झेलें...
*
सौ सुनार की होती रही सुनें सच नेता.
अब बारी जनता की जो दण्डित कर देता..
पकड़ा गया कलेक्टर तो क्यों उसे छुडाया-
आम आदमी का संकट क्यों नजर न आया?
सत्ता जिसकी संकट में
हम उसे ढकेलें...
*
हिरनकशिपु तुम, जन प्रहलाद, होलिका अफसर.
मिले शहादत तुमको अब आया है अवसर.
जनमत का हरि क्यों न मार…
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Added by sanjiv verma 'salil' on March 19, 2011 at 11:52pm —
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प्रेम के रंग में सब रंग जाएं, दिन है ठेल-ठिठोली का
मिटें नफ़रतें बढ़े मुहब्बत, तभी मज़ा है होली का ।
एक न इक दिन भर जाते हैं, घाव बदन पर जो लगते
ज़ख़्म नहीं भरता है लेकिन, कभी भी कड़वी बोली का ।
ज़ात-धरम-सिन-जिंस न देखे, बदन में जा कर धंस जाए
कोई अपना सगा नहीं होता, बंदूक़ की गोली का ।
कभी महल में रहता था वो, क़िस्मत ने करवट बदली
नहीं किराया दे पाता है, अब छोटी-सी खोली का ।
दूर से तुम अहवाल पूछ कर, रस्म अदा क्यों करते हो
पास…
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Added by moin shamsi on March 19, 2011 at 9:24pm —
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रंग-बिरंगी प्यारी-प्यारी,
होली की भर लो पिचकारी ।
इक-दूजे को रंग दो ऐसे,
मिटें दूरियां दिल की सारी ।
तन भी रंग लो मन भी रंग लो,
परंपरा यह कितनी न्यारी ।
रंगों का त्योहार अनोखा,
आज है पुलकित हर नर-नारी ।
प्रेम-पर्व है आज बुझा दो,
नफ़रत की हर-इक चिंगारी ।
जाति-धर्म का भेद भुला दो,
मानवता के बनो पुजारी ।
मेलजोल में शक्ति बहुत है
वैर-भाव तो है बीमारी ।
Added by moin shamsi on March 19, 2011 at 9:23pm —
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ग़ज़ल
आँख सपनीली सुहानी है अभी.
झील में रंगीन पानी है अभी.
पंख टूटे कैद…
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Added by राजेश शर्मा on March 19, 2011 at 7:00pm —
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'हंसी-ठिठोली', मस्तियों की "टोली"... करें 'अठखेली', बन "हमजोली"...
हर 'साल' की तरह... लो फिर आई "होली"... ... ...…
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Added by Julie on March 19, 2011 at 6:30pm —
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यूकेलिप्टस से बाएं को मुडके...
सफ़ेद कुरते में निकला था दिन अकेला सा..
जेब में रख गुलाल की पुडिया..
गाल उसका छुआ था...हौले से...
सजा दिए थे सभी रंग एक ही पल में... नीले,पीले, गुलाबी और हरे..
और एक रंग गिर गया था वहीँ...
घर के बारामदे की चौखट…
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Added by Sudhir Sharma on March 19, 2011 at 5:52pm —
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ऐसे खेलो फाग, राग -रंग मन में जागे.
नफ़रत रंग से यूँ धुल जाए, बस अपनापन लागे.
बस अपनापन लागे,यही होली का रंग है.
इसे खेलने का सबका,पर अपना -अपना ढंग है.
कोई दूर से भर पिचकारी,गोरा अंग भिंगाये.
कोई गोरे गाल पे मल-मल,लाल गुलाल लगाए.
दूर -दूर से देखके जिनको, थक गए थे ये नैन.
वही खड़ी थी पास हमारे, होली की थी रैन.
होली की थी रैन, फ़ायदा झट से उठाया.
उनके रुखसारों पे, धीरे -धीरे रंग…
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Added by satish mapatpuri on March 19, 2011 at 2:46pm —
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कविता : - रंगों की बूँदें
लाल लाल हरी…
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Added by Abhinav Arun on March 19, 2011 at 1:30pm —
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यूं तो गुज़री हूँ बहुत बार खुद की नज़रों से..
हो न यूं अबकी जो गुजरूँ तो गुज़र ही जाऊं मैं..
आईने ने बहुत है साथ निभाया मेरा ..
कहीं जाऊं…
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Added by Lata R.Ojha on March 19, 2011 at 1:38am —
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होली आई रे आई रे होली आई रे ,
लेकर दोस्तों की तकरार ,
संग में चुनावी तेवहार ,
देखो दोस्त करे लड़ाई रे ,
होली आई रे आई रे होली आई रे ,
आगे पार्नव की पुकार ,
फिर दीदी का बेवहार ,
करे कभी मिलन कभी जुदाई रे ,
होली आई रे आई रे होली आई रे ,
कांग्रेस में मची हाहाकार ,
लाल भी थोड़ा परेशान ,
हिंदी भासियो की यहा नहीं कोई सुनवाई रे ,
होली आई रे आई रे होली आई रे ,
सबका डंका बाजे यार ,
जीतेगा होगी जय जयकार ,
जित के लिए हैं जरुरी…
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Added by Rash Bihari Ravi on March 18, 2011 at 6:09pm —
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होली की मुबारकबाद के साथ आप के लिए चन्द दोहे
सहजन फूला साजना,महुआ हुआ कलाल
मौसम दारु बेचता,हाल हुआ बेहाल
गेंहू गाभिन गाय सा,चना खनकते दाम
महुआ मादक हो गया,बौराया है आम
गौरी है कचनार सी,नैनों भरा उजास
पिया बसंती हो गए,आया है मधुमास
फगुनाया मौसम हुआ,अलसाया सा गात
चौराहे होने लगी तेरी मेरी बात
सतरंगी है…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 18, 2011 at 12:42pm —
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है दंभ अब किन बातों का !
आंखे फाड़े काली रातों का !
विकट जो चुप्पी छाती है,
और तभी सुनामी आती है !
बौने से जो अब पेड़ खड़े,
साधी चुप्पी से मौन धरे !
ऐसी ऊँची झपटे मन को विकल कर जाती है!
और तभी सुनामी आती है !
देख अवयव अब मिश्रण का,
जो कहीं चूक हो जाती है ...
जीवन तरंग रेडियो सी बन जाती है !
भरते थे हुंकार शक्ति का,
हाथों…
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Added by Sujit Kumar Lucky on March 18, 2011 at 9:06am —
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1. समारू - छग प्रदेशाध्यक्ष का फैसला होली के बाद होगा।
पहारू - ऐसी न जाने कितनी होली बीत गई है।
2. समारू - सुरेश कलमाड़ी से सीबीआई ने दूसरी बार पूछताछ की।
पहारू - जितनी बार पूछताछ कर ले, कमाई थोड़ी न कम पड़ने वाली है।
3. समारू - पायलटों ने फर्जी मार्कशीट से नौकरी हथिया ली।
पहारू - हर जगह फर्जी ही तो छाए हुए हैं।
4. समारू - जांच के बाद ही जापानी खाद्य वस्तुएं भारत आएंगी।
पहारू - तब तो चाइना के बल्ले-बल्ले।
5.…
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Added by rajkumar sahu on March 17, 2011 at 10:54pm —
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इस का कब पक्का नाता है
मौसम है,आता, जाता है
सपनों को समझाऊँ कैसे
जब जी चाहे तू आता है
कोई नदी दीवानी होगी
तभी समंदर अपनाता है
सन्नाटा चाहे दिखता हो
एक बवंडर गहराता है
बच्चा जब सीधा बूढ़ा हो
खून रगों में जम जाता है
जिन्हें चलाना आता,उन का
खोटा सिक्का चल जाता…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 17, 2011 at 10:19pm —
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कलियाँ फूट रहीं हैं यादों की शाखों में,
कुछ ख्वाब सजे हैं इन सूनी आँखों में..
भींगी-भींगी सी शक्लों में शक्लें हैं फूलों की.
फूलों सी तितलियों या तितलियाँ फूलों सी.
न पूछो मेरी मंजिल क्या है.. अभी तो बस इरादा किया है..
न हारेंगे कभी उम्र भर, किसी और से नहीं, खुद से कहा है
ये जीवन पथ है अद्वितीय, मत 'लीक' पकड़ कर चला करो..
खुद खोजो अपनी राह नयी, खुद दीपक बनकर जला करो..
Added by Pranjal Mishra on March 17, 2011 at 9:55pm —
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फ़ेसबुक पर मेरी ६ मार्च की पोस्ट से उद्धरत:-
"राजा अब्दुल्लाह इसे आवामी जन विद्रोह को शिया विद्रोह- इरानी षडयन्त्र के नाम पर
क्रूरतापूर्वक दमन कर दे."
आज जब इस वक्त मैं यह लिख रहा हूँ, बुधवार की रात
को पर्ल चौक बहरीन पर सऊदी सैनिकों की उपस्थिती में एक नीम फ़ौजी कार्यवाही करके
वहां गत दो माह से चल रहे…
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Added by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on March 17, 2011 at 6:49pm —
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इन अकेली वादियों में चले आये
(मधु गीति सं. १७१७, दि. १० मार्च, २०११)
इन अकेली वादियों में चले आये, भरा सुर आवादियों का छोड़ आये;
गान तुम निस्तब्धता का सुन हो पाये, तान नीरवता की तुम खोये सिहाये.…
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Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on March 17, 2011 at 1:06pm —
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सूना सा है वो घर अब ..बहुत बदला हुआ ..
यादों का जमघट भी है ..कुछ..धुंआ धुंआ..
निगाहें हर बार उस चौखट पे जा पहुँचती है....…
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Added by Lata R.Ojha on March 17, 2011 at 1:34am —
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OBO पर आकर बहुत अच्छा लगा. यहाँ पर एक से एक उस्ताद शायर और कवियों की रचनाएं पढ़कर आनंद आ गया.
अपनी एक नयी ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ, आप सब से मार्गदर्शन की आशा है.
अँधेरा है नुमायाँ बस्तियों में
उजाले कैद हैं कुछ मुट्ठियों में
ये पीकर तेल भी, जलते नहीं हैं…
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Added by Saahil on March 16, 2011 at 8:07pm —
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Added by अमि तेष on March 16, 2011 at 12:30pm —
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