क्या है जीवन, आज समझने मैं आया हूँ
कठिन समय का दर्द सदा ही पाया मैंने
बस आशा का गीत हमेशा गाया मैंने
जब तुम बनते धूप, बना तब मैं साया हूँ
जन्म काल से सत्य एक जो जुड़ा हुआ है
मानव की उफ़ जात बनी ये आदत कैसी
सदा ज्ञात यह बात मगर क्यों भूले जैसी
वहीँ शून्य आकाश एक पथ मुड़ा हुआ है
आया है जो आज उसे निश्चित है जाना
इस माटी का मोह, रहे क्यों साँझ सकारे?
इस माटी का रूप बदल जायेगा प्यारे
फिर भी रे इंसान…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on March 22, 2016 at 10:44pm — 31 Comments
Added by रामबली गुप्ता on March 21, 2016 at 10:57am — 11 Comments
221/2121/122/1212
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आसानियों के साथ परेशानियाँ रहीं,
गर रौशनी ज़रा रही, परछाइयाँ रहीं.
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क़दमों तले रहा कोई तपता सा रेगज़ार,
यादों में भीगती हुई पुरवाइयाँ रहीं.
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नाकामियों में कुछ तो रहा दोष वक़्त का,
ज़्यादा कुसूरवार तो ख़ुद्दारियाँ रहीं.
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ऐसा नहीं कि तेरे बिना थम गया सफ़र
हाँ! ज़िन्दगी की राह में तन्हाइयाँ रहीं.
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क़िरदार.. कुछ कहानी के, कमज़ोर पड़ गए
कुछ लिखने वाले शख्स की कमज़ोरियाँ रहीं.
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मिलते…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on March 18, 2016 at 9:08pm — 19 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 7, 2016 at 9:53pm — 11 Comments
2122 2122 2122 212
रात का सन्नाटा' मुझपे मुस्कुराया देर तक
हाथ पर उनको लिखा लिखके मिटाया देर तक
आज ऐसा क्या हुआ क्या साजिशें हैं शाम की
आरजू जिसकी नहीं वो याद आया देर तक
उल्फतें हैं हसरतें हैं और ये दीवानगी
नाम तेरा होंठ पे रख बुदबुदाया देर तक
है अज़ब मंज़र वफ़ा की रहगुज़र में आजकल
चाहतें उस शख्स की जिसने रुलाया देर तक
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Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 7, 2016 at 9:30pm — 24 Comments
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