आज झुरमुट से उजास में
शुभ्र नूतन सा गुलाबी प्रभात
तुम से की, शरमाते हुए ,
आज कितने दिनों के बाद
तुमसे अकेले में की मुलाक़ात
और अपलक रही थी निहार…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 28, 2015 at 9:30am — 6 Comments
नूतन वर्ष सुहाना आता
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नूतन वर्ष सुहाना आता
माता की गोदी में चढ़ कर
मन ही मन हर्षाता
दिनकर चुनरी लाल उड़ाता
शीतल पवन झकोरे लाता
कच्ची कच्ची धूप मनोहर
मलिया शगुन सुनाता
बगिया की गोदी में खिल कर
दिवस मल्हारें गाता ।
कलियाँ खिल कर युवा हो गईं
झोली भर कर सुगंध ले आईं
अंगनाई उर महके चन्दन
तितली काया सौरभ धोई
भोर की गोदी सूरज चढ़ कर…
Added by kalpna mishra bajpai on March 21, 2015 at 9:30am — 12 Comments
आँगन के ऊपर बना ,सरिया का आकाश
दाना नीचे है पड़ा खा पाती मैं काश ॥
अंबर पर उड़ते मिले ,चतुर सयाने बाज
जीवन कितना है कठिन ,हम जैसों का आज ॥
सूरज दादा भी तपें ,करें गज़ब का खेल
सूख गए वन बावड़ी,बची न कोई बेल ॥
एक दिवस में क्या मिले,कैसे रखलूँ धीर
सोच सोच ये बात को,मन में उठती पीर ॥
मन करता है आज भी,आँगन फुदकूँ जाय
झूला झूलूँ तार पर......मुन्नी लख हर्षाय ॥
अप्रकाशित व मौलिक
कल्पना मिश्रा…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 21, 2015 at 12:00am — 13 Comments
मन भावन पैगाम सब ,रक्खे बड़े सम्हाल
आते जब भी सामने,कहते सारा हाल ॥
स्नेह पगे जो शब्द हैं,करते अब मनुहार
इक-इक पाती प्रेम की,कहती बात हजार ॥
आखर में जब तुम दिखो,भर आती है लाज
आवेदन ये प्रेम का ,भर जाते है आज ॥
बिना कहे सब बोलती,हृदय की ये बात
आमंत्रण देती रहीं ,सपनों की बारात ॥
पाती में मिलते रहे ,सूखे सुमन गुलाब
मन मंदिर ले बाचती, खुशबू भरी…
Added by kalpna mishra bajpai on March 16, 2015 at 12:00pm — 11 Comments
गंगा माँ की गोद में,बसा कानपुर धाम
सरसैया के घाट पर, उगती सहर तमाम ॥
महा आरती मात की, कर लो हृदय लगाय
कट जायें संकट सभी ,सुंदर सरल उपाय ॥
हिमगिर के उर से बही,पसरी वसुधा गोद
लहराती वो चल पड़ी,भरती मन आमोद ॥
मोक्षदायनी याद में , कहाँ भागीरथ आज
उनका तप बल याद कर,सफल बना लो काज ॥
गंगा गीता गाय को , प्यार करें भगवान
मानव इसको भूल…
Added by kalpna mishra bajpai on March 12, 2015 at 11:30am — 20 Comments
पुस्तक गुण की खान है,सीखें रखती गोय
जो उसका प्रेमी बना ,जग में जय जय होय॥
सखी भरी है ज्ञान से,उर में रखती भाव
पढ़-पढ़ के हासिल करो,रहे न ज्ञान अभाव॥
इस पूरे संसार की,जो रखती है थाह
दुनियाँ में कैसे मिली,किसको कहाँ पनाह॥
वर्ण-वर्ण मिल बन गई,सुंदर सुखद किताब
मनसा वाचा कर्मणा ,रख लो खूब हिसाब ॥
गुणी जनों ने बैठ कर,लिखे सुघर मंतव्य
रुचि जिसकी जिसमें रहे, खोजो वो…
Added by kalpna mishra bajpai on March 11, 2015 at 10:00am — 9 Comments
नारी अब चेतन हुई ,बदला उसका रूप
हर मौसम हर समय वो ,लेती नए स्वरूप
लेती नए स्वरूप ,आसमां पर छा जाती
सहती हर संघर्ष ,दिलेरी खूब दिखाती
स्वाभिमान को जान,स्वयं पर जाती वारी
खूब कमाती मान ,आज कीशिक्षित नारी ॥
अप्रकाशित व मौलिक
कल्पना मिश्रा बाजपेई
Added by kalpna mishra bajpai on March 8, 2015 at 4:00pm — 12 Comments
घूँघट पट क्यों ओढ़ती,तुम पर मैं बलिहार
घट मेरे बसती सदा,तुम पर जान निसार ॥
गोरी तुम मैं सांमला,प्रीत घनेरी होय
राधा वर मैं बन गया,जो होए सो होय ॥
बंशी मेरी टेरती , तुम को सुबहो शाम
दर्शन श्यामा के बिना ,हमें कहाँ आराम॥
बहुत हुआ अब चुप रहो,नटवर नागर नन्द
मदन माधुरी डालते, भरते दिल आनन्द ॥
पुष्प लता है बावरी ,प्रेमातुर संसार
कंठ कंठ में रम रहा ,दामोदर करतार॥
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 4, 2015 at 3:00pm — 9 Comments
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