ओ बी ओ में हो रहा, उत्सव का आगाज |
आठ वर्ष तक का सफ़र,साक्ष्य बना है आज ||
दूर दृष्टि बागी लिए, खूब बिछया साज |
योगराज के यत्न से, बना खूब सरताज | |
काव्य विधा को सीखते, विद्वजनों…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 2, 2018 at 2:30pm — 27 Comments
माथे की बिन्दी
कोई ताज़ी भूलें, कुछ नए आँसू
हमारा अब अलसाया-सा बन्धन
ले आता है ओठों पर रूक-रूक एक ही सवाल ---
सुबह से गोधूली तक के अल्प समय में
तिरछी परछाइयाँ डूबने से पहले ही
मेरे प्यार, भूल गए तुम प्यार की पहचान
तुम कैसे इतने बदल गए ?
समुद्र से करती कोमल-स्पर्श संवेदित हवाएँ
लहरों के ओठ बन्द कर उन्हें सुलातीं थीं जो
उन हवाओं के भी जैसे मिजाज बदल…
ContinueAdded by vijay nikore on April 2, 2018 at 11:00am — 10 Comments
22 22 22 22
मूर्खों का सम्मेलन हो फिर,
बीतीं बातें,चिंतन हो फिर।1
उम्र हुई तो क्या होता है
सुन्नत,चाहे मुंडन हो फिर।2
अपने तर्क उठाते रहिये
औरों का बस खंडन हो फिर।3
जात-धरम अवसाद हुए कब?
मुँहदेखी हो,मंडन हो फिर।4
भाषा,भनिति अबला जैसी
नाच नचा लें,ठन-ठन हो फिर।5
पीठ नहीं पूजी जाये तो
चलते-फिरते अनबन हो फिर।6
पढ़ने से परहेज भला है
मतलब कुछ हो, लेखन हो…
Added by Manan Kumar singh on April 1, 2018 at 9:08pm — 14 Comments
Added by Sushil Sarna on April 1, 2018 at 1:05pm — 9 Comments
एक दिन तंग आकर ज़िंदगी मौत से बोली-" आख़िर तू मुझे कब तक डसती रहेगी ?"
मौत खिलखिलाकर बोली-" जब तक तू जीने की हठ करती रहेगी ।"
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on April 1, 2018 at 9:00am — 8 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 1, 2018 at 8:24am — 13 Comments
सूँघा हमने फूल को, महज समझ कर फूल
था कागज का तो मना, अपना 'अप्रैल फूल'।१।
हम में दस ही मूर्ख हैं, नब्बे हैं हुशियार
लेकिन ये दस कर रहे, हर दुख का उपचार।२।
मूरख कब देता भला, मूर्ख दिवस को मान
इस पर कृपा कर रहा, सहज भाव विद्वान।३।
भोले भाले का उड़ा, खूब कुटिल उपहास
मूर्ख दिवस पर सोचते, वो हैं खासमखास।४।
दसकों से सर पर रहा, बेअक्लों का…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2018 at 7:28am — 20 Comments
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